Tuesday, June 16, 2020

संसारचक्र रोजाना वाक्यात और प्रेमपत्र




**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

 रोजाना वाकिआत- कल का शेष-

उनके भाव गिरने से काश्तकारों की कमर टूट गई और मुल्क के अंदर रुपए की प्रवाह में फर्क आ गया। दूसरे लफ्जों में 40 -50 बरस की फैशन परस्ती और जरूरियातें  जिंदगी में गैर जरूरी इजाफा का असर जो पहले कच्चा अन्न की कीमत बढ़ते रहने से दबा रहा अब जाहिर हो गया है ।



 चुनांचे गौर करो अगर आज गेहूं का भाव चार या पांच  सेर प्रति रुपया हो जाए तो काश्तकारों यानी 85% हिंदुस्तानियों के पास फौरन दुगनी दौलत हो जाए और वह हर साल अबके मुकाबले दुगना रुपया खर्च करने के काबिल हो जाए और मुल्क के अंदर दौगुनी दौलत सर्कुलेट गश्त करने लगे। अब सवाल होता है कि क्या कच्चा अन्न की कीमत तेज होने की कोई उम्मीद है?


 मेरा जवाब नकारात्मक है ? कीमत में इजाफा दो तरीकों से हो सकता है ।कुल बाहरी दुनिया में अकाल पर अकाल पडे या हिंदुस्तान के अंदर सख्त कहतसाली हो । प्रथम वर्णित सूरत नामुमकिन है।


दूसरी सूरत में (जिसका कमोबेश तजुर्बा हम लोगों का हो रहा है) रुस, ऑस्ट्रेलिया वगैरह से सस्ता गेहूं गल्ले की कमी पूरी करेगा और काश्तकारों के लिए सिवाय जीते जी कब्र में ले जाने की कोई चारा ना रहेगा। 

                     
 इसलिए मेरी राय में हमारी मौजूदा मुसीबत के लिए दुनिया में जरूरत से ज्यादा कच्चा अन्न की पैदावार और हिंदुस्तानियों की जरूरियातें जिंदगी में गैरजरूरी इजाफा है।और इसका इलाज सिर्फ ये है कि हिंदुस्तान हस्तकला की तरफ आकृष्ट हो और हम लोग विदेशी गैर जरूरी आशिया का इस्तेमाल तर्क कर दें।.



  🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**







*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

संसार चक्र- कल से आगे-

【 दूसरा दृश्य 】   

     

  (सुबह का वक्त है।राजा दुलारेलाल मय पंडित जी के गरीब मोहताजों में रुपया तकसीम करने निकलते हैं । बस्ती के बाहर एक बुढ़िया को पेड़ के नीचे लकड़ियाँ बीनते देखते हैं उसके पास पहुँच कर हमकलाम होते हैं) 

                                      

 दुलारेलाल- माता! तुम यह क्या करती हो?  (लकड़िया बिनना छोड़कर और खड़ी हो कर)     
                                         
  बुढिया- महाराज ! गरीब दुखिया हूँ , रोटी पकाने के लिए लकड़ियाँ बीनती हूँ।।   

              

 पंडित जी- तुम्हारा कोई संबंधी नहीं है?             

बुढ़िया - महाराज! मेरा सम्बंधी तो एक राम ही है ।।                                                       

दुलारेलाल -तुम्हारे पति को क्या हुआ?               

बुढिया- अर्सा हुआ छोड़ कर चले गये।।                 दुलारेलाल-कितना अर्सा हुआ?                         

बढ़िया-दस वर्ष हुए होंगे।।                                 

पंडित जी- इतने दिन में तुम्हारा गुजारा कैसे चलता है?                                                     

 बुढ़िया -पड़ोस मे लाला बांकेबिहारी लाल रहते हैं उनका अनाज पीसती हूँ, जो मजदूरी मिलती है उसी से पेट भरती हूँ।                               

  (राजा दुलारेलाल पाँच रुपये जेब से निकालकर बुढिया को पेश करते हैं।)                                   

बुढिया- हैं हैंं, मैं यह न लूँगी, मुझ अभागिन का चांदी सोने से क्या वास्ता?                               

  राजा दुलारेलाल -कुछ दिन सुख से काट सकोगी, यह रुपया हम खुशी से देते हैं         ले लो, ले लो ।।                                                   

बुढिया- मेरे भाग में खुशी कहाँ?  निपूती औरत को कभी सुख मिला है? ( जवाब देकर लकड़ियाँ बीनने लगती है)                                   

पंडित जी-( तरस खाकर ) माता !अपने दुख का कुछ हाल तो बतलाओ।।                                 

 बुढिया- क्या करोगे पूछ के दुख का हाल ?

 पैंतालीस वर्ष की उम्र तक मैं और मेरे पतिदेव ने देवताओं की उपासना की कि संतान हो। आखिर एक लडका पैदा हुआ। दो वर्ष तक जिया। फिर उसके माता निकली, अनेक.जतन किये, माथे रगडे, कुछ पेश न गई। देखते ही देखते जमराज नेअपना हाथ चलाया और हम मुंह सिर पीटते रह गये। दस बारह दिन बाद मेरे पतिदेव उदास होकर घर से निकल गये। भगवान् जाने कहां है , कैसे हैं। न कोई पूजा काम आई, न रोना पीटना। संसार में कौन किसी को पूछता है! मरने वाला मरता है ,रोने वाला रोता है।( रोने लगती है)                                                     

   दुलारेलाल-( दिल भर कर ) माता ! तुम हमें अपने घर ले चलो, हम तुम्हें सुखी करेंगे।     

    बुढ़िया- मुझे सुखी करके क्या लोगे ?     

  दुलारेलाल-( चौक कर) तुमको सुखी करके आशीर्वाद लेंगे।।                                         

   बुढिया- मेरे आशीर्वाद से क्या होगा ? मेरे आशीर्वाद में कोई सत्ता होती तो मेरा बच्चा ही क्यों मरता?                                         

दुलारेलाल -माता! तुम आशीर्वाद दो कि मेरा बच्चा अच्छा हो जाय, उसको भी माता निकली है।।                                                 

 बुढिया- तुम बड़े भोले मालूम होते हो।  अगर मेरे कहे से माता अच्छी हो जाती तो मेरा ही बच्चा क्यों मरता और मेरे पति घर से क्यों जाते? जाओ अपना काम करो, इन बातों में क्या धरा है ? यह दुनिया झूठी है, यहाँ  के संबंध झूठे हैं, यहां का सारा व्यवहार झूठा है.

( यह कहकर अपनी लकड़ियों का गट्ठा उठाकर चल देती है । दुलारेलाल ठंडी सांस भर कर रह जाते हैं । पंडित जी उनके चेहरे की तरफ ताकते हैं उनका दुख हल्का करने के लिए सिल्सिलए गुफ्तगूंजारी करते हैं।)

पंडित जी- महाराज! सुनीं आपने बुढिया की बातें ?                                                 

   दुलारेलाल -सुनी और खूब सुनी। पर संसार मिथ्या है तो संसार का दुःख भी मिथ्या होना चाहिए?                                               

पंडित जी- संसार का दुख भी मिथ्या है, सुख भी मिथ्या है, यहां का सारा व्यवहार ही मिथ्या है।**





*परम गुरु हुजूर महाराज

-प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे -(5 )

जिन लोगों से प्राणों के रोकने और चढ़ाने का अभ्यास दुरुस्ती से नहीं बना, या जिनमें पूरी ताकत इस अभ्यास के करने की नहीं पाई गई , उनके वास्ते यह जुगत उपासना की योगी और योगेश्वर ज्ञानियों ने जारी की कि हर एक चक्र में वहां के देवता के स्वरूप का ध्यान करें , और एक खास मंत्र का, जो उसी चक्र के मुतअल्लिक़क है, ध्यान के साथ जाप करें ।।                                                       

 जोकि यह अभ्यास करने से भी मन का सिमटाव और थोड़ी बहुत चढ़ाई मन और प्राणों की ऊंचे स्थानों की तरफ और सफाई अंतर की हासिल होती है, इस वास्ते इस भक्ति मार्ग के जारी होने से किसी कदर आसानी योग के अभ्यासियों  को हुई कि बिना प्राणों पर जोर देने के वह अपनी चढ़ाई का अभ्यास थोड़ा-बहुत करके अंतर का रस ले सकें।।

                                                 

और जिन जीवो के मन और बुद्धि और शरीर ने निहायत स्थूल थे उनके वास्ते क्रिया योग और अनेक तरह के आसनों की जुगत बताई कि जिससे वे अंतर में स्कूल अंग की सफाई करें, सकें यानी अपने अंग अंग को इस कदर साफ रक्खें कि जिससे तमोगुण और बिकारी चाहें दूर या कम होवें, और सतोगुनी बढ़ती जावें, और मालिक के चरणो में प्रेम और सच्ची दीनता पैदा होवे और अंतर्मुख अभ्यास प्राणायाम या मुद्रा या उपासना के अधिकारी हो जावे

 ।क्रमशः     
 

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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