राधास्वामी!!
14-06 -2020 -
आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे :-
(20) कोई कोई तो लौकिक विद्याएँ पढ़कर ईश्वर की सत्ता से इनकारी और परमार्थ के विरोधी बन जाते हैं। भला उन्हें कोई क्या समझा सकता है ? उनकी बुद्धि उस पैनी छुरी के समान जो, कागज को टेढाऔर तीरछा ही काटती है, परमार्थ संबंधी हर बात को टेढा ही समझती है और उनके हृदय-कपाट के बंद हो जाने से उनकी इच्छा के विरुद्ध कोई बात अंतर में प्रविष्ट होने ही नहीं पाती।
इसलिए उनका समस्त जीवन अपने विद्धता की महत्ता दिखाने और परमार्थ का विरोध करने में व्यतीत होता है।
जा रुए में दोस्त दिले दुश्मनाँ चे दर याबद।
चिरागे मुर्दा कुजा, शमए आफताब कुजा।।
अर्थ- विरोधियों को भगवंत के सुंदर मुखारविंद से क्या प्राप्त हो सकता है ? कहां बुझा हुआ दीपक और कहां चमकता हुआ सूर्य!
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
(यथार्थ प्रकाश -भाग पहला
-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज)
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