👌🏽👌🏽Bahut hi sundar kavita 👌🏽👌🏽
*कंद-मूल खाने वालों से*
मांसाहारी डरते थे।।
*पोरस जैसे शूर-वीर को*
नमन 'सिकंदर' करते थे॥
*चौदह वर्षों तक खूंखारी*
वन में जिसका धाम था।।
*मन-मन्दिर में बसने वाला*
शाकाहारी *राम* था।।
*चाहते तो खा सकते थे वो*
मांस पशु के ढेरों में।।
लेकिन उनको प्यार मिला
' *शबरी' के जूठे बेरों में*॥
*चक्र सुदर्शन धारी थे*
*गोवर्धन पर भारी थे*॥
*मुरली से वश करने वाले*
*गिरधर' शाकाहारी थे*॥
*पर-सेवा, पर-प्रेम का परचम*
चोटी पर फहराया था।।
*निर्धन की कुटिया में जाकर*
जिसने मान बढ़ाया था॥
*सपने जिसने देखे थे*
मानवता के विस्तार के।।
*नानक जैसे महा-संत थे*
वाचक शाकाहार के॥
*उठो जरा तुम पढ़ कर देखो*
गौरवमय इतिहास को।।
*आदम से आदी तक फैले*
इस नीले आकाश को॥
*दया की आँखें खोल देख लो*
पशु के करुण क्रंदन को।।
*इंसानों का जिस्म बना है*
शाकाहारी भोजन को॥
*अंग लाश के खा जाएं*
क्या फ़िर भी वो इंसान है?
*पेट तुम्हारा मुर्दाघर है*
या कोई कब्रिस्तान है?
*आँखें कितना रोती हैं जब*
उंगली अपनी जलती है
*सोचो उस तड़पन की हद*
जब जिस्म पे आरी चलती है॥
*बेबसता तुम पशु की देखो*
बचने के आसार नहीं
*जीते जी तन काटा जाए*,
उस पीडा का पार नहीं
*खाने से पहले बिरयानी*,
चीख जीव की सुन लेते।।
*करुणा के वश होकर तुम भी*
गिरी गिरनार को चुन लेते॥
*शाकाहारी बनो*...!
ज्ञात हो इस कविता का जब TV पर प्रसारण हुआ था तब हज़ारों लोगों ने मांसाहार त्याग कर *शाकाहार* का आजीवन व्रत लिया था।
🙏🌷🍏🍊🍋🍉🍓🙏
*कृपया ये msg मानवता को* जीवित रखने के लिए सभी को भेजें।
*...*
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