Monday, June 15, 2020

ऐसा भी होता है?





👌🏽👌🏽Bahut hi sundar kavita 👌🏽👌🏽

*कंद-मूल खाने वालों से*
मांसाहारी डरते थे।।

*पोरस जैसे शूर-वीर को*
नमन 'सिकंदर' करते थे॥

*चौदह वर्षों तक खूंखारी*
वन में जिसका धाम था।।

*मन-मन्दिर में बसने वाला*
शाकाहारी *राम* था।।

*चाहते तो खा सकते थे वो*
मांस पशु के ढेरों में।।

लेकिन उनको प्यार मिला
' *शबरी' के जूठे बेरों में*॥

*चक्र सुदर्शन धारी थे*
*गोवर्धन पर भारी थे*॥

*मुरली से वश करने वाले*
*गिरधर' शाकाहारी थे*॥

*पर-सेवा, पर-प्रेम का परचम*
चोटी पर फहराया था।।

*निर्धन की कुटिया में जाकर*
जिसने मान बढ़ाया था॥

*सपने जिसने देखे थे*
मानवता के विस्तार के।।

*नानक जैसे महा-संत थे*
वाचक शाकाहार के॥

*उठो जरा तुम पढ़ कर देखो*
गौरवमय इतिहास को।।

*आदम से आदी तक फैले*
इस नीले आकाश को॥

*दया की आँखें खोल देख लो*
पशु के करुण क्रंदन को।।

*इंसानों का जिस्म बना है*
शाकाहारी भोजन को॥

*अंग लाश के खा जाएं*
क्या फ़िर भी वो इंसान है?

*पेट तुम्हारा मुर्दाघर है*
या कोई कब्रिस्तान है?

*आँखें कितना रोती हैं जब*
उंगली अपनी जलती है

*सोचो उस तड़पन की हद*                 
जब जिस्म पे आरी चलती है॥

*बेबसता तुम पशु की देखो*
बचने के आसार नहीं

*जीते जी तन काटा जाए*,
उस पीडा का पार नहीं

*खाने से पहले बिरयानी*,
चीख जीव की सुन लेते।।

*करुणा के वश होकर तुम भी*
गिरी गिरनार को चुन लेते॥

*शाकाहारी बनो*...!

ज्ञात हो इस कविता का जब TV पर प्रसारण हुआ था तब हज़ारों लोगों ने मांसाहार त्याग कर *शाकाहार* का आजीवन व्रत लिया था।

🙏🌷🍏🍊🍋🍉🍓🙏

*कृपया ये msg मानवता को* जीवित रखने के लिए सभी को भेजें।
*...*

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