**राधास्वामी!
! 18-06-2020-
आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-
(
1) ऋतु बसंत फूली जग माहीं। मन और सुरत चेत हरखाई। राधास्वामी दयाल मिले मोहि आई। आगे की फिर गैल लखाई।।
(प्रेमबानी-3-शब्द-5,पृ.सं.285)
(2) गुरु ज्ञान को जान सोइ मानता है, जो ध्यान सों ज्ञान को काम लावे। मन मार तन जार दस द्वार हो पार, धुर धाम में जाय बिश्राम पावे।।(130)
दिन चार का खेल संसार है यह, पल चार का भोग और राज भाई। जमराज फरमान जिस आन पहुँचे, नहिं शान अभिमान कुछ काम आई।।
(131) (प्रेमबिलास-शब्द-130, 131,पृ.सं.196-97)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे। 🙏🏻
राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
18-06- 2020-
आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे:-
( 24 ) नाम के सुमिरन के संबंध में जो एक बड़ी बात आमतौर भुला दी जाती है यह है कि जिसको जो नाम प्यारा लगता है उसका जप करने लगता है। लोगों को यह मालूम नहीं है कि इस तरह का सुमिरन सिर्फ एक हद तक लाभदायक होता है और सुमिरन के साधन का असली लाभ किसी ध्वन्यात्मक नाम के जपने से प्राप्त होता है।
धवन्यात्मक नामों को बीजमंत्र भी कहते हैं। संतमत की शिक्षा के अनुसार कुल रचना के अंतर्गत 18 दर्जे का स्थान है और हर साल में एक केंद्रीक शक्ति स्थित है जिसकी धारें उस स्थान पर फेल कर उसकी संभाल कर रही हैं और हर कैन्द्रिक शक्ति की धारों से एक-एक शब्द हो रहा है।
इन शब्दों को मानुषी बोली में नकल करने से जो शब्द बनते हैं वे ही ध्वन्यात्मक नाम का बीजमंत्र कहलाते हैं ।इसी कारण कहा गया है कि नाम और नामी अर्थात वाचक और वाच्य
में अनिवार्य और नित्य संबंध रहता है।
तदनुसार ही पतंजलि महाराज के योगदर्शन के समाधिपाद के सूत्र 27 की व्याख्या में व्यास जी लिखते हैं कि इस नाम(ओऊम) के साथ परमात्मा के संबंध है और स्वामी दयानंदजी ने भी अपनी ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में 'ओऊम ' शब्द के श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए यह सूत्र पेश करके व्यास जी के भाष्य का हवाला देते हुए लिखा है कि वाच्य और वाचक( नामी और नाम ) का संबंध योगी समझते हैं (पृ. 105 उर्दू एडिशन)।
इससे स्पष्ट हो जाता है कि साधारण लोग बीजमंत्रों या ध्वन्यात्मक नामों की क्यों कदर नहीं करते। उनकी कदर सिर्फ योगियों ही को होती है क्योंकि वे उनके द्वारा नामी से सहायता पा कर अपनी अंतरी कठिनाईयाँ हल करते हैं और वे अनुभव से जानते हैं कि आध्यात्मिक मंडलों की तरफ कदम बढ़ाने में उनका सुमिरन कितना सहायक होता है।
वर्तमानकाल में, जबकि साधारण हिंदू भाई वेदों और उपनिषदों के स्पष्ट रीति से बतलाने पर पर भी , ब्रह्मा के सर्वोत्तम नाम अर्थात ओम शब्द की गणना करते हुए हरि, शिव ,गणेश आदि नामों के जप में लीन दिखलाई देते हैं तो उनसे कैसे कैसे आशा की जा सकती है कि वह संतो के बतलाए हुए ब्रह्मलोक से परे ध्वन्यात्मक नामों की कदर कर सके?
यही कारण है कि राधास्वामी नाम जिसको राधास्वामी मत के अनुयाई इतना गौरव देते हैं, हमारे अजान मेहरबान भाइयों के लिए हृदय का शूल बन रहा है ।।**
**ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का बचन है:- मियाने इस्मों मुसम्मा चो फर्क नेशस्त बबीं। तो दूर तजल्लिए इस्मा कमाले नामें खुदा। अर्थ- हे प्यारे !जोकि नाम और नामी में भेद नहीं होता इसलिए तू देख ,नामों के प्रकाश में खुदा के नाम का कमाल नजर आता है।। फिर फरमाया है:-
यकीं बदाँ कि तू बाहक नशिस्तई शबो रोज। चूँ हमनशीने तो बशद ख्याले नामें खुदा। चो नाम ओ शुनवम् गर बुबद मरा सद जाँ। फिदाए ओस्त बइज्जों जलाले नामें खुदि। मुईं जगुफ्तने नामश् मलूल कै गर्दद। कि अज खुदास्त मलालत् मलाले नामें खुदा।
अर्थ :-अगर खुदा के नाम का ध्यान अर्थात भावना तेरे हृदय में स्थिर हो गई तो विश्वास रख तो तुझे रात दिन खुदा का संग प्राप्त है। तू दिव्यलोक के आकाश में उड़ कर सैर करने का अधिकारी है पर शर्त यह है कि तू खुदा के नाम रुपी पंखो का आसरा लेकर उडे। जब मुझे खुदा का नाम सुनाई देता है, उसके नाम की विशालता की सौगंध, अगर मेरी सो जाने हों उस पर न्योछावर हो जायँ । भला मुईनुद्दीन मालिक के नाम का सुमिरन से कब उदासीनचित हो सकता है। मालिक के नाम से उदासीनचित होना मालिक से ही उदासीनचित्त होना है।
समझदार के लिए इन कड़ियों में सब कुछ आ गया है और अनसमझ के लिए कुछ भी नहीं आया । इसके लिए कबीर साहब फरमाते हैं:- नाम जपत कुष्टी भला, चू चू पड़े जो चाम। कंचनदेह किस काम की,जा मुख नाहीं नाम।।।
अर्थात वह कुष्टी , जो मालिक का नाम जपता है यद्यपि उसका शरीर गल गल कर कर गिर रहा है, उन लोगों से अच्छा है जिनका शरीर सुवर्ण के समान चमकता है पर जिनकी जबान पर मालिक का नाम नहीं आता।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 (यथार्थ प्रकाश- भाग पहला- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!)**
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