अरे मेरे भाई मन जब हल्का रहता हैं तो निरंतर हृदय को अर्थात अंतर्मन को विराटता प्राप्त होती हैं क्यूँकि वो भावरहित शुद्धता, पवित्रता रूपी मौन , निरकारता रूपी शून्य अवस्था में ही विश्राम करता हैं परंतु मन तब तक हल्का नही होता हैं जब तक चित्त की दौड़, भ्रम और तर्क समाप्त नहीं हो जाती हैं जिसकी जुड़ाव सीधा प्राण से होती हैं जो उसे शक्ति प्रदान करती हैं इसलिए हर वो साधना विधी अथवा क्रिया जो प्राण से सम्बंधित हैं वो उस परम अवस्था तक ले जाने में सक्षम होती हैं परंतु इसकी ग़लत अभ्यास हज़ारों आंतरिक द्वन्द एवं अनियंत्रित ऊर्जा का भंडार जो कयी भाव, विचार, तत्व , गुण का रूप धारण कर समस्त बाहॉ इंद्रियो और जीव को अपने इशारे पे नचाती हैं।ख़ैर ये दूसरी विषय हैं इसपे बाद में प्रकाश डालूँगा ।
देखो अगर तुम्हें रोना आ रहा हैं और तुमने उसे अपने प्रयास से दवा दिया अर्थात खुल कर स्वतंत्र रूप से रो ना पाओ , हँसी आ रही हो परंतु किसी करनवश स्वतंत्र रूप से दिल खोल कर हंस ना पाओ, क्रोध आ रहा हो परंतु उसे अप्राकृतिक प्रयास से दवा लो, काम ऊर्जा जाग रही हो और तुम असहज रूप से उसे दवाने का असफल प्रयास कर रहे हो अर्थात तुम्हारे मन में हज़ारों उथल पुठल चल रही है द्वन्द चल रही हैं परंतु उसे मुक्त करने के वजाय निरंतर उसमें उलझते जा रहो अथवा कोई भी भाव, बिचार, अथवा तुम्हारे क्रिया स्वरूप प्रक्रिया अंतरकरन में प्रकट होती हैं उसे दवाने अथवा कुचलने की निरंतर कोशिश बिलकुल मत करे ये मन पे कितना विपरीत परिणाम डालता हैं पता है आपको ये प्राणी को इतना संकुचित कर डालता हैं और मन पे अनियंत्रित बोझ डाल देता जिसके फलस्वरूप क्या क्या घटित होती हैं सबको पता हैं😂ऐसा ना करें अन्नथा इसका परिणाम जीव आत्मा चैतन्य “वैश्विक” से बदल कर संकुचित “व्यक्तिगत” रूप में रूपांतरित हो जाता हैं और प्राणी के हृदय में स्वार्थ, अहंकार, क्रोध, जैसी मानसिक विकृतियाँ पैदा हो जाती हैं और इसकी बोझ से प्राणी त्रस्त हो जाता हैं अंतर्द्वंद का ग़ुलाम मोहरा मात्र उसे मुक्त होने दे जो घटित हो रहा उसे सहज और प्रकृतिक रूप से घटित होने दें कुछ देर अपना खेल खेलेगा और तुम एक समय उस अवस्था से स्वयं को मुक्त पाओगे स्वतंत्र पाओगे और अपनी सहजता और शांति से विमुख नहीं रह पाओगे फिर सहजनंद रूपी अवस्था का साक्षात्कार अवश्य होगा और तुम अपने शाश्वत स्वरूप परमआनंद से एकाकार होकर समाधि को प्राप्त भी हो जाओगे बस स्वयं को स्वतंत्र करने की सहज समर्पित रखने की नित्य अभ्यास करो।
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