राधास्वामी!!0
7-06-2020-
आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन
- कल से आगे
:-【 राधास्वामी- मत के तीन साधन】:
-(11) यह एक आम तजुर्बे की बात है कि जब मनुष्य अपनी तवज्जुह अंतर्मुख किया चाहता है तो उसको संसार की याद सताती है अर्थात संसार के जिन कामों में वह अपनी तवज्जुह देता रहा है और जिन जानदारों से उसका संबंध रहा है उनके गुनावन और उनके रूप ध्यान में आकर उसके मन को चंचल कर देते हैं।
इसलिए अंतरी साधन के हर अनुरागी के लिए पहली कठिनाई इन्हीं विघ्नों का सामना है। वैसे संसार के पदार्थ असंख्य है पर मनुष्य के दिमाग पर उनका असर सिर्फ नाम और रूप की शक्ल में पड़ता है और अभ्यास के समय नाम और रूप ही की धारें उसके मन को चंचल उसकी तवज्जुह को चलायमान करती है।
इन धारों को रोकने के लिए सबसे उत्तम उपाय यह है कि मनुष्य अपने मन को एक चित्ताकर्षक नाम और रूप में लगाने की कोशिश करें । जैसे शरीर बच्चे एक चित्ताकर्षक खेल में लग कर दूसरी शरारतों से रुक जाते हैं ऐसे ही अभ्यासी का मन एक हृदयग्राही नाम रूप के ध्यान में लग कर दूसरे नामों और रूपों की याद भूल जाता है ।
यह सत्य है कि इस क्रिया से अभ्यासी का मन पूरे तौर स्थिर तो नहीं हो जाता परंतु उसकी चंचलता में काफी कमी अवश्य हो जाती है। राधास्वामी- मत में इन साधनो को सुमिरन और ध्यान की युक्तियां कहते हैं ।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग 1-
परम गुरु हुजूर साहबजी
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महाराज!
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