**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -रोजाना वाकिआत-19 अक्टूबर 1932- बुधवार:- लखनऊ से खबरें आ रही है कि मौलाना शौकत अली साहब का सितारा फिर ऊंचाई पर है और उन्हे हिंदू मुस्लिम फूट दूर करने में बहुत कुछ कामयाबी हासिल हो रही है ।अखबारी खबरें अक्सर एक तरफा होती हैं इसलिए उनका जल्द ऐतबार नहीं करना चाहिए। लेकिन अगर यह खबरें दुरुस्त निकल आए और हिंदुओं, मुसलमानों और सिखों में सहमति हो जाए तो मुमकिन है कि दंगों के नेताओं के दृष्टिकोण में भी कुछ रुचिकर परिवर्तन देखने में आवे।। आज ड्रामा के तीन एक्ट खत्म करके चौथा और आखिरी एक्ट शुरू कर दिया गया। ड्रामा का नाम रखा है" संसार चक्र "।।
(20 अक्टूबर 1932- बृहस्पतिवार):- अब तबीयत कुछ बेहतर है लेकिन शिकायत गई नहीं। चलने फिरने से तकलीफ बढ़ जाती है।
ड्रामा संसार चक्र खत्म कर दिया गया। कुल चार एक्ट और 20 सीन है। राजा दुलारे लाल साधारण मनुष्यों की तरह मन के अंगों में बरतता है। लड़का पैदा होने की खुशी में नाच मुजरे कराता है और उन्हीं का आसक्त बन जाता है।
2 वर्ष बाद लड़का मर जाता है। कुछ आंखें खुलती है। गम दूर करने के लिए यात्रा को निकलता है कुरुक्षेत्र जाता है। वहाँ ठगों के बस में पड़ जाता है।
एक लड़का उसकी जान बचाता है। फिर गोदावरी जाता है। वहां कथा सुनाता है । कथा में बहस शुरू हो जाती है। तुलसी बाबा एतराजों के जवाब देते हैं ।
अगले दिन राजा साहब पेददापुरम कथा के मजबून पर रोशनी डालते है। दुलारे लाल को अंतरी साधन का शौक हो जाता है। जुगती सीख कर साधन करते हैं।
समझ में आ जाता है कि दुनिया क्या है। घर वापस आने पर राज्य का इंतजाम बदल डालते है। सब प्रजा सुखी हो जाती है ।
यह है कहानी का खुलासा। बहस में लॉक, ह्यूम रोशियों वगैरह फिलास्फरों की थ्योरियाँ बयान होती है और बिलआखिर नतीजा निकल जाता है कि आत्मा व परमात्मा का मन विधि से ज्ञान नहीं हो सकता लेकिन दिल से हो सकता है।
इसलिए महात्माओं ने हृदय की सफाई पर जोर दिया है। ठगों की कारस्तानियाँ भी दिलचस्प शैली में बयान हुई है। यह लोग हर किस्म के भेष बनाकर मुसाफिरों का खून करते थे और भवानी माता की भक्ति करके अपने दिलों को संतोष देते थे की मुसाफिरों का कत्ल देवी की सेवा है। जा बजा गाने भी दर्ज किए गये है।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -
सत्संग के उपदेश- भाग 2
-कल से आगे:-
इस पर सवाल किया जा सकता है-" तो फिर क्या हुजूर राधास्वामी दयाल की शरण लेने या अहातए सत्संग के अंदर डेरा जमा लेने पर भी आराम ना मिलेगा?" इसका जवाब यह है कि सच्चे मालिक की सच्ची शरण लेते ही आप से आप प्रेमीजन को सच्ची शांति मिल जाती हैं और उसके दिल में इस प्रश्न का सवाल पैदा होने के लिए गुंजाइश ही नहीं रहती। इस किस्म के सवालात नाममात्र के लिए शरण लेने वाले ही के दिल में पैदा हुआ करते हैं।
गौर का मुकाम है कि जब किसी प्रेमीजन को यह यकीन हुआ कि सच्चे कुल मालिक हुजूर राधास्वामी दयाल ने उसे अपनी शरण में ले लिया है और वह जानता है कि वह मालिक परम सत्ता, परम चेतनता व परम आनंद का भंडार है तो कुदरती तौर पर उसका मन यह कहेगा कि ऐसे समर्थ पुरुष की गोद में बैठ जाने पर मेरे लिए अपनी जरूरतों के मुतअल्लिक़ फिक्रों में पडना नामुनासिब है । मेरे लिए यही मुनासिब है कि एक आज्ञाकारी पुत्र की तरह अपने स्वार्थी और परमार्थी कर्तव्य पालन करता रहूँ और हर हालत में नतीजे को उन दयाल की मौज पर छोड़कर अपनी तवज्जुह अंतर में उनके चरणों में जोड़ता रहूँ ।उन दयाल की मौज से जो कुछ होगा वह ऐन मेरी बेहतरी के लिए होगा । उनसे बढ़कर न कोई समर्थ है, न समझदार है और न हितकारी है। अगर बावजूद मेरी मुनासिब कोशिश के नतीजो के खिलाफ उम्मीद प्रकट होता है तो इसमें मेरा क्या कसूर है और इससे ज्यादा मैं कर ही क्या सकता था? यह.नतीजा महज जाहिरन् मेरे खिलाफ है, दरअसल यह मेरे लिये मुफीद होगा क्योंकि यह नही हो सकता कि सच्चे कुल मालिक कु दयि.शामिले हाल रहते हुए और मेरी जानिब से अदायगीए फर्ज के मुतअल्लिक़ किसी किस्म की कोताही न होते हुए भी मेरा अकाज हो जाय।।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
*परम गुरु हुजूर महाराज
-प्रेम पत्र -भाग 1-
कल से आगे:-
(14)
जैसे हाकिम ने हुकुम दे रक्खा है जो कोई डॉक्टरी या वकालत यह मुन्सफी या इंजीनियरिंग का इंतिहान अपनी लियाकत और काबिलियत का मुकर्रर किये हुए इम्तिहान लेने वालों के सामने जाकर देवें और उनके अफसर की सनद या परवाना हासिल करके पेश करें तब वह उन ओहदों के पाने के लायक समझा जाएगा , इसी तरह मालिक के दरबार से हुकुम है कि जो कोई पूरे गुरु का परवाना हासिल करेगा, वही महल में दखल पावेगा।
इस वास्ते जिसने पूरे गुरु का संग नहीं किया और ना उनकी प्रसन्नता और दया हरसिल की उसका सच्चा उद्धार कभी नहीं होगा और न उसको सच्चे मालिक का कभी दर्शन मिलेगा ।।.
.(15) यह बात गौर करके समझने के लायक है कि मालिक को हर कोई हर वक्त सब जगह मौजूद मानते हैं और उसकी मौजूदगी का यकीन भी करते हैं ,पर लोगों का यह हाल है कि जैसे उनके मन में तरंगे उठती है उसी मुआफिक कार्यवाही भली और बुरी करते हैं और जरा भी मालिक का खौफ बुरे काम के सोचते हैं और करते वक्त नहीं करते। हाकिम और बिरादरी का थोड़ा मान कर चाहे किसी बुरे काम से बच जावें , और जो उस काम के जाहिर होने का खौफ नहीं है तो हाकिम और बिरादरी का भी डर नहीं आता है ।
यह हाल कुल दुनियादारों और आम परमार्थियों का है , यानी उनके दिल में गुरू और मालिक का खौफ जैसा चाहिए बिल्कुल नहीं आता है, सिवाय उस हालत के कि जब कोई उनकी औलाद या माल के नुकसान होने का किसी काम करने से खौफ दिलावे।
सो यह बात कम अक्ल वाले लोग मानते हैं और जो थोड़ी-बहुत विद्या बुद्धि और चतुराई रखते हैं, वह ऐसे को भी धोखा देना समझ कर मन में नहीं लाते ।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
राधास्वामी................
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