Wednesday, June 17, 2020

मानवता के मिशाल बाबा फ़क़ीर चंद





मानवता मंदिर या मनुष्य बनो मंदिर की स्थापना बाबा फकीर चंद (१८८६- १९८१) ने होशियारपुर, पंजाब, भारत में वर्ष १९६२ में की थी।[1] अपने मानवता धर्म के मिशन को फैलाने के लिए फकीर ने सेठ दुर्गा दास की वित्तीय सहायता से मंदिर की स्थापना की जो वर्ष १९८१ में उनके निधन तक उनका कार्यक्षेत्र बना रहा।[2][3] इस मंदिर में फकीर के गुरु शिव ब्रत लाल की मूर्ति स्थापित है और साथ ही संत मत, राधास्वामी मत और सूफ़ी मत के अन्य प्रमुख गुरुओं की तस्वीरें भी लगी हैं। मंदिर के परिसर में फकीर की समाधि उस स्थान पर बनाई गई है जहाँ उनके वसीयतनामे के अनुसार उनकी अस्थियाँ को समाधि दी गई है। इस पर मानवता का झंडा लहराया गया है। यद्यपि फकीर के संत मत (दयाल फकीर मत) में समाधि आदि का कोई स्थान नहीं है, तथापि इस संबंध में की गई उनकी वसीयत का तात्पर्य मानवता की नि:स्वार्थ सेवा से रहा है।[4][5] फकीर लाइब्रेरी चैरीटेबल ट्रस्ट इस मंदिर का कामकाज देखता है। मंदिर में ही शिव देव राव एस.एस.के. हाई स्कूल चलाया जा रहा है जहाँ विद्यार्थियों से कोई फीस नहीं ली जाती। तथापि उनके माता-पिता को एक वचन-पत्र देना पड़ता है कि वे तीन से अधिक बच्चे पैदा नहीं करेंगे।[6][7] इस प्रकार 'मानवता मंदिर' मानवता और देश के कल्याण के लिए फकीर की इस विचारधारा का प्रचार-प्रसार कर रहा है कि परिवार कल्याण़ कार्यक्रम को धर्म में ही शामिल किया जाए.[8][9] मंदिर के कार्यकलापों में एक द्विमासिक पत्रिका 'मानव-मंदिर' का प्रकाशन भी है।[10] ट्रस्ट एक मुफ्त डिस्पेंसरी के साथ-साथ मुफ्त लंगर भी चलाता है। ट्रस्ट के द्वारा रखरखाव किए जा रहे पुस्तकालय में बहुत पुस्तकें है जिनमें शिव ब्रत लाल, फकीर चंद और कई अन्य संतों की दुर्लभ पुस्तकें संग्रहित हैं। विश्व में बाबा फकीर चंद के अनुयायियों और उनके आगे अनुयायियों की संख्या लाखों में है। संयुक्त राज्य अमेरिका में और कनाडा में भी इनके कुछ अनुयायी हैं।

 फकीरचंद उमर 94 साल पुत्र पंडित मस्तराम पुत्र श्री दसौंधी राम वासी मकान नं. 18 रेलवे मंडी होशियारपुर दा हां. जोकि मैंने आपणे गुरु महर्षि शिव व्रतलाल बरमन जी जोकि मेरे सत्गुर थे. उनके हुकम अते आज्ञा के मुताबिक कि शरीर छोड़ने से पहले शिक्षा को बदल जाना, उनका हुकम था इस लई मैंने सेठ दुर्गादास जो अब मर चुके हैं, उनकी मदद से आज से पहले अठारह साल होए हैं, मानवता मन्दिर की बुनियाद रखी थी, और उसका ट्रस्ट कायम किया गया है, जो कि रजिस्टर्ड है. मेरे मरने के बाद मेरे खून का कोई ट्रस्टी नहीं बन सकता है हाँ पर सेवा कर सकता है, मन्दिर में नौकरी कर सकता है, मगर मन्दिर के इन्तजाम में कोई दख़ल नहीं दे सकता है. मैंने आपणे जिन्दगी के तजरबे रूहानी, गृहस्थी, मज़हबी लाईन पर सफ़र करने के बाद यह नतीजा निकाला है कि सबसे पहले दुनिया को इन्सान बनने की ज़रूरत है. इस लई मैंने गृहस्थ, सोशल और पोलिटिकल लाईन वालों को इन्सान बनने की आवाज़ दी है. मेरी मन्दिर से गैर हाजिरी में श्री मुन्शी राम भगत जो यहाँ के सेक्रेटरी हैं उनको नामदान देने, जीवों को हिदायत करने और दुखी अशांत प्राणियों की मदद करने के लिए, उनको मुकरर किया है और इनके बाद जां इन की मौजूदगी में डाक्टर I.C. शर्मा जो बडे तालीम याफ़ता और परमार्थ और अभ्यास वग़ैरा के हैं वो मेरी जगह काम करेंगे और वोह जब यहाँ नहीं होंगे तो भगत मुन्शीराम जी मेरी जगह सत्गुरु की हैसीयत में काम करेंगे. बाकी मन्दिर का सारा हिसाब किताब ट्रस्ट के हाथ में रहेगा, यह ट्रस्ट की जुमेवारी होवेगी. मैंने शिशु स्कूल खोला हुआ है, यहाँ लडकों से कोई फीस नहीं ली जाती. पहली दफा जब बच्चा दाखल होता है तो उनके मां बाप से तहरीर लेनी पड़ेगी कि तीन बच्चों से ज्यादा बच्चे पैदा न करें, अगर तीन से ज्यादा पहले हों तो आईंदा न पैदा करें. बाकी सारा काम ट्रस्ट के हवाले है, मेरा इससे कोई मतलब नहीं है. मेरे मरने के बाद मेरी हडिडयां मानवता मन्दिर में गाड़ दें और उनके ऊपर मानवता मंदिर का झंडा जेहड़ा कि इस वक्त मानवता मंदिर पर लहराता है, वो झंडा मेरी हड्डियों पर खड़ा कर देवें. मेरा ट्रस्ट किसी दूसरे ट्रस्ट जां संस्था से कोई तुअलक नहीं रखता है, मैंने न किसी संस्था से कुछ लिया है बल्कि दिया है. मेरे सत्गुरु की समाधि जिला बनारस में लोगों ने बनवा दी है. मेरे संतमत में समाधि, कबर, मकबरा जां मरे होए महापुरुषों की पूजा नहीं है. इस लई मेरा कोई संबंध शिव समाध से नहीं है. इज्जत के ख्याल से कुछ न कुछ सालाना देता रहा हूँ. अगर मेरी मरजी के मुता‍बिक वहाँ कोई आचार्य काम करे जब तब हो सकेगा मैं मदद करता रहूँगा वरना नहीं. और न ही उनका कोई हक़ मुझ पर है. मेरे नाम पर बहुत से देश विदेश में मानवता के सैंटर खुले हुए हैं. वहाँ के आचार्य अपना अपना काम करते हैं. उनका और मेरे ट्रस्ट का सिवाए प्रेम के और संबंध नहीं है. इसलई हुण मैं बकायमी होश हवास अते दरुस्ती अकल नाल बराए हित मन्दिर मज़कूर पहली अते आखरी वसीयत लिख दिती है कि प्रमाण रहे.

तिथि 20.4.1980

 फकीरचंद उमर 94 साल पुत्र पंडित मस्तराम पुत्र श्री दसौंधी राम वासी मकान नं. 18 रेलवे मंडी होशियारपुर दा हां. जोकि मैंने आपणे गुरु महर्षि शिव व्रतलाल बरमन जी जोकि मेरे सत्गुर थे. उनके हुकम अते आज्ञा के मुताबिक कि शरीर छोड़ने से पहले शिक्षा को बदल जाना, उनका हुकम था इस लई मैंने सेठ दुर्गादास जो अब मर चुके हैं, उनकी मदद से आज से पहले अठारह साल होए हैं, मानवता मन्दिर की बुनियाद रखी थी, और उसका ट्रस्ट कायम किया गया है, जो कि रजिस्टर्ड है. मेरे मरने के बाद मेरे खून का कोई ट्रस्टी नहीं बन सकता है हाँ पर सेवा कर सकता है, मन्दिर में नौकरी कर सकता है, मगर मन्दिर के इन्तजाम में कोई दख़ल नहीं दे सकता है. मैंने आपणे जिन्दगी के तजरबे रूहानी, गृहस्थी, मज़हबी लाईन पर सफ़र करने के बाद यह नतीजा निकाला है कि सबसे पहले दुनिया को इन्सान बनने की ज़रूरत है. इस लई मैंने गृहस्थ, सोशल और पोलिटिकल लाईन वालों को इन्सान बनने की आवाज़ दी है. मेरी मन्दिर से गैर हाजिरी में श्री मुन्शी राम भगत जो यहाँ के सेक्रेटरी हैं उनको नामदान देने, जीवों को हिदायत करने और दुखी अशांत प्राणियों की मदद करने के लिए, उनको मुकरर किया है और इनके बाद जां इन की मौजूदगी में डाक्टर I.C. शर्मा जो बडे तालीम याफ़ता और परमार्थ और अभ्यास वग़ैरा के हैं वो मेरी जगह काम करेंगे और वोह जब यहाँ नहीं होंगे तो भगत मुन्शीराम जी मेरी जगह सत्गुरु की हैसीयत में काम करेंगे. बाकी मन्दिर का सारा हिसाब किताब ट्रस्ट के हाथ में रहेगा, यह ट्रस्ट की जुमेवारी होवेगी. मैंने शिशु स्कूल खोला हुआ है, यहाँ लडकों से कोई फीस नहीं ली जाती. पहली दफा जब बच्चा दाखल होता है तो उनके मां बाप से तहरीर लेनी पड़ेगी कि तीन बच्चों से ज्यादा बच्चे पैदा न करें, अगर तीन से ज्यादा पहले हों तो आईंदा न पैदा करें. बाकी सारा काम ट्रस्ट के हवाले है, मेरा इससे कोई मतलब नहीं है. मेरे मरने के बाद मेरी हडिडयां मानवता मन्दिर में गाड़ दें और उनके ऊपर मानवता मंदिर का झंडा जेहड़ा कि इस वक्त मानवता मंदिर पर लहराता है, वो झंडा मेरी हड्डियों पर खड़ा कर देवें. मेरा ट्रस्ट किसी दूसरे ट्रस्ट जां संस्था से कोई तुअलक नहीं रखता है, मैंने न किसी संस्था से कुछ लिया है बल्कि दिया है. मेरे सत्गुरु की समाधि जिला बनारस में लोगों ने बनवा दी है. मेरे संतमत में समाधि, कबर, मकबरा जां मरे होए महापुरुषों की पूजा नहीं है. इस लई मेरा कोई संबंध शिव समाध से नहीं है. इज्जत के ख्याल से कुछ न कुछ सालाना देता रहा हूँ. अगर मेरी मरजी के मुता‍बिक वहाँ कोई आचार्य काम करे जब तब हो सकेगा मैं मदद करता रहूँगा वरना नहीं. और न ही उनका कोई हक़ मुझ पर है. मेरे नाम पर बहुत से देश विदेश में मानवता के सैंटर खुले हुए हैं. वहाँ के आचार्य अपना अपना काम करते हैं. उनका और मेरे ट्रस्ट का सिवाए प्रेम के और संबंध नहीं है. इसलई हुण मैं बकायमी होश हवास अते दरुस्ती अकल नाल बराए हित मन्दिर मज़कूर पहली अते आखरी वसीयत लिख दिती है कि प्रमाण रहे.

तिथि 20.4.1980
फकीरचंद उमर 94 साल पुत्र पंडित मस्तराम पुत्र श्री दसौंधी राम वासी मकान नं. 18 रेलवे मंडी होशियारपुर दा हां. जोकि मैंने आपणे गुरु महर्षि शिव व्रतलाल बरमन जी जोकि मेरे सत्गुर थे. उनके हुकम अते आज्ञा के मुताबिक कि शरीर छोड़ने से पहले शिक्षा को बदल जाना, उनका हुकम था इस लई मैंने सेठ दुर्गादास जो अब मर चुके हैं, उनकी मदद से आज से पहले अठारह साल होए हैं, मानवता मन्दिर की बुनियाद रखी थी, और उसका ट्रस्ट कायम किया गया है, जो कि रजिस्टर्ड है. मेरे मरने के बाद मेरे खून का कोई ट्रस्टी नहीं बन सकता है हाँ पर सेवा कर सकता है, मन्दिर में नौकरी कर सकता है, मगर मन्दिर के इन्तजाम में कोई दख़ल नहीं दे सकता है. मैंने आपणे जिन्दगी के तजरबे रूहानी, गृहस्थी, मज़हबी लाईन पर सफ़र करने के बाद यह नतीजा निकाला है कि सबसे पहले दुनिया को इन्सान बनने की ज़रूरत है. इस लई मैंने गृहस्थ, सोशल और पोलिटिकल लाईन वालों को इन्सान बनने की आवाज़ दी है. मेरी मन्दिर से गैर हाजिरी में श्री मुन्शी राम भगत जो यहाँ के सेक्रेटरी हैं उनको नामदान देने, जीवों को हिदायत करने और दुखी अशांत प्राणियों की मदद करने के लिए, उनको मुकरर किया है और इनके बाद जां इन की मौजूदगी में डाक्टर I.C. शर्मा जो बडे तालीम याफ़ता और परमार्थ और अभ्यास वग़ैरा के हैं वो मेरी जगह काम करेंगे और वोह जब यहाँ नहीं होंगे तो भगत मुन्शीराम जी मेरी जगह सत्गुरु की हैसीयत में काम करेंगे. बाकी मन्दिर का सारा हिसाब किताब ट्रस्ट के हाथ में रहेगा, यह ट्रस्ट की जुमेवारी होवेगी. मैंने शिशु स्कूल खोला हुआ है, यहाँ लडकों से कोई फीस नहीं ली जाती. पहली दफा जब बच्चा दाखल होता है तो उनके मां बाप से तहरीर लेनी पड़ेगी कि तीन बच्चों से ज्यादा बच्चे पैदा न करें, अगर तीन से ज्यादा पहले हों तो आईंदा न पैदा करें. बाकी सारा काम ट्रस्ट के हवाले है, मेरा इससे कोई मतलब नहीं है. मेरे मरने के बाद मेरी हडिडयां मानवता मन्दिर में गाड़ दें और उनके ऊपर मानवता मंदिर का झंडा जेहड़ा कि इस वक्त मानवता मंदिर पर लहराता है, वो झंडा मेरी हड्डियों पर खड़ा कर देवें. मेरा ट्रस्ट किसी दूसरे ट्रस्ट जां संस्था से कोई तुअलक नहीं रखता है, मैंने न किसी संस्था से कुछ लिया है बल्कि दिया है. मेरे सत्गुरु की समाधि जिला बनारस में लोगों ने बनवा दी है. मेरे संतमत में समाधि, कबर, मकबरा जां मरे होए महापुरुषों की पूजा नहीं है. इस लई मेरा कोई संबंध शिव समाध से नहीं है. इज्जत के ख्याल से कुछ न कुछ सालाना देता रहा हूँ. अगर मेरी मरजी के मुता‍बिक वहाँ कोई आचार्य काम करे जब तब हो सकेगा मैं मदद करता रहूँगा वरना नहीं. और न ही उनका कोई हक़ मुझ पर है. मेरे नाम पर बहुत से देश विदेश में मानवता के सैंटर खुले हुए हैं. वहाँ के आचार्य अपना अपना काम करते हैं. उनका और मेरे ट्रस्ट का सिवाए प्रेम के और संबंध नहीं है. इसलई हुण मैं बकायमी होश हवास अते दरुस्ती अकल नाल बराए हित मन्दिर मज़कूर पहली अते आखरी वसीयत लिख दिती है कि प्रमाण रहे.

तिथि 20.4.1980

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