परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -
सत्संग के उपदेश -रोजाना वाकिआत -18 अक्टूबर 1932-
मंगलवार :-अनेक भाइयों ने ख्वाहिश जाहिर की कि उन्हें उस पत्र व्यवहार के पढ़ने का मौका दिया जावे जो अभी कुछ दिन हुए डॉक्टर जॉनसन और मेरे दरमियान हुए। उसके दयालबाग हेराल्ड में छपाई करने की इजाजत दे दी गई। उसमें किसी प्राइवेट मामले का जिक्र नहीं है। अच्छा है सत्संगी भाइयों को मालूम हो जाएगा कि हमें किस किस किस्म के एतराजात के जवाब देने पड़ते हैं ।।
हुकूमते इंग्लिस्तान की तरफ निगाह करके देखो किस बला की काबिलियत रखती है । तमाम बादशाहत में खलबली मची है लेकिन हुकूमत पूरे इत्मीनान से अपने कर्तव्यों को अंजाम दे रही है । जिनके हाथों में हुकूमत की बागडोर है ना वह महात्मा है ना देवता। महज इंसान है ।लेकिन किस बला के? बावजूद हर किस्म की मुश्किलें व मुसीबतें झेलने के उसका सख्त से सख्त दुश्मन प्रशंसा करने के लिए मजबूर हो जाता है । गौर कीजिए कि बादशाहत का इन दिनों का क्या हाल है । ऑस्ट्रेलिया सिवाय अपने नफा के दूसरी बाबत सोचता ही नही। दक्षिण अफ्रीका की कॉलोनी यही राग अलाप रही है कि महाद्वीप अफ्रीका सिर्फ उन्ही की नस्ल के लिये विशिष्ट रहना चाहिये।। कनाडा यूनाइटेड स्टेटस की रीस करने पर तुला है। मिश्र फिरंट सा ही हो रहा है। आयरलैण्ड की बगावत का जिक्र ही क्या। वेल्स और स्कॉटलैण्ड यह भी होम रुल तलब कर रहे हैं और हिंदुस्तान ,यहां भी तलातुम( एक लहर का दूसरी पर थपेडे मारना) मचा है । यह सब बातें हैं लेकिन हुकूमत बर्तानिया का झंडा बेखौफ़ लहलहा रहा है । गजब का इंतजाम ,गजब कि दिलैरी, गजब की बर्दाश्त। आओ हम भी अंग्रेजों की अच्छी बातें अपनी आदत में डाले । यह दुरुस्त है कि न हमारा कोई राज्य है ना हमें दुनिया के राजपाट की ख्वास्हिश। लेकिन यह गुण अपने घर का कामकाज चलाने के लिए भी वैसी ही मुफीद है जैसी दुनिया पर हुकूमत करने के लिये।।
🙏🏻राधास्व
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -
सत्संग के उपदेश - भाग 2 - (52)-
【 आराम काम करने में है】:-
हर शख्स चाहता है कि दुनिया का काम चलाने में उसे हर तरह की सहूलियत मिले बल्कि अगर मुमकिन हो तो उसे अपने व संबंधियों के मुतअल्लिक़ कोई फिक्र या चिंता ना करनी पड़े और सबकी सब सब जरूरते आप से आप पूरी हो जायँ या दूसरे लोग पूरी कर दें।
अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि बहुत से सत्संगी भाई भी ऐसे ख्यालात के शिकार हैं। उनमें से बाज तो यह कहते हैं कि जब कि उन्होंने हुजूर राधास्वामी दयाल की शरण ले ली तो उनकी सब मुश्किलें दूर करना और जरूरतें पूरी करना जो राधास्वामी दयाल का काम है और बाज यह ख्याल रखते हैं कि घर बार छोड़कर सत्संग में जा पड़े , हमारा काम शरण लेना है और जब हम ने शरण ले ली तो हमारी सब जरूरतें के सत्संग पूरी करेगा ।
सत्संग में शामिल होने से हमारा हक हो जाता है कि हमें अपने मुतअल्लिक़ किसी किस्म की फिक्र न करनी पडे और दूसरे लोग हमारे लिए सब इंतजाम करें।
तज्जुब यह भी है कि इस किस्म के ख्यालात भोले भाइयों के दिलों में ऐसे घर किए हैं कि समझाने बुझाने से उनका एकाकी दूर होना नामुमकिन है।
यह बिल्कुल साफ है कि जिस जमात में इस किस्म के लोगों की कसरत होगी उसका थोड़े ही दिनों के अंदर हर पहलू से शुरू हो जाएगा। देखों,जो खुराक इंसान खाता है उसका बहुतसा जुज हज्म होकर खून में बदल जाता है और खून के बढ़ने से ताकत पैदा होती है ।
अगर इस ताकत का मुनासिब इस्तेमाल न किया जाए यानी हाथ ,पाँव व दूसरे अंगों के हिलाने में सर्फ करके खारिज न की जाए तो बुरे ख्यालात पैदा करने लगती है जिनकी वजह से इंसान सहज में बदी के रास्ते पड़ जाता है और रफ्ता रफ्ता उसका हाज्मा कमजोर हो जाता है और तरह तरह के जहर जिस्म के अंदर पैदा होने लगते हैं जिनसे किस्म किस्म की बीमारियाँ पैदा हो जाती है।।
गोल्ड स्मिथ ने एक जगह पर कहा है " उस मुल्क पर भारी तबाही आती है और वह जल्द तबाही लाने वाली बुराइयों का शिकार बन जाता है जिसमें दौलत इकट्ठी हो जाती है इंसानों में तधज्जुल वाकै होता है।" लेकिन मुल्क तबाह हो जार, परमार्थ व स्वार्थ दोनों मटियामेट हो जाए ,मनुष्यजन्म धारण करना मुश्किल हो जाए मगर इन से आरामतलबों में फर्क ना आए ।
वाजह हो कि जब तक हुजूर राधास्वामी दयाल की रक्षा का पंजा सत्संगमंडलु के सिर पर है इस किस्म के जहरीले ख्यालात हल्के के अंदर मुस्तकिल तौर जड पकड़ने न पावेंगे और हजार सूरत से उनके विनाश करने के लिए कोशिश की जाएगी ।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*
*परम गुरु हुजूर महाराज
-प्रेम पत्र -भाग-1-
कल से आगे-( 12 )
इस जगह इतना बयान करना जरूरी है कि चाहे कोई कैसी मजबूती टेक परमेश्वर या किसी अवतार या देवता है पिछले गुरु की रखता होवे, उसका सच्चा उधार बगैर अपने वक्त के संत सद्गुरु या साधगुरु के सत्संग उपदेश के किसी सूरत में मुमकिन नहीं है, क्योंकि हर एक जीव के मन में अनेक तरह के भरम और संशय रहते हैं और दुनिया और उसके व्यवहार और सामान की पकड़ और उसमें अशक्ति हर एक के मन में बहुत धसी रहती है और बहुत से संसारी और प्रमार्थी बातों की समझ अपनी अपनी बुद्धि के मुआफिक हर एक रखता है ।
जब सच्चे परमार्थ और सत्संग में आवे तब उसको खबर अपनी गलती की मालूम होती है और जो ईस्ट कि उसने बांधा है उसका भेद भी पूरा पूरा मालूम होता है।
सब देवताओं और ईश्वर और परमेश्वर ब्रह्म और पारब्रह्म का भेद और दर्जा भी संतों के सत्संग के मालूम होवेगा। और दूसरी जगह यानी और मतों में ईस्ट का निर्णय बहुत कम करते हैं, इस सबब से जीव नीचे और ऊंचे देशों में माया के घेर के अंदर पड़े रहते हैं।
इसी तरह मन और माया का भेद और उनके अनेक दलों की खबर संतों के सत्संग में मालूम पड़ती है पड़ेगी और जुगत चलने और मन माया के बचकर अपने निज घर में पहुंचने की भी वही हासिल होवेगी । अब ख्याल करना चाहिए कि जो कोई अपने बुजुर्गों से सुनकर किसी ईस्ट की टेक बांधे हुए हैं और अपने वक्त के गुरु यानी सच्चे परमार्थ के भेदु का खोज नहीं करते और जो उनका भी लगे तो उसमें उनसे नहीं मिलते ना कोई बात तलाश करना चाहते हैं, तो ऐसे शख्सों को कभी सच्चे मालिक की ख़बर ना होगी और न अपने इष्ट में जैसा कि है सच्ची प्रीति और प्रतीति आवेगी और उनको प्रमार्थ के चाल ढाल की खबर पड़ेगी और न दुनिया और मन माया के धोखों का हाल मालूम होगा और न उनके संशय और भरम दूर होवेंगे।
फिर ऐसे जीवों को असली फायदा परमार्थ का कैसे हासिल हो सकता है ? अपने मन की चाल और ब्यौहार के मुआफिक अपनी भली बुरी करनी का फल सुख-दुख नीच ऊँच जोनो में पावेंगे और सच्ची मुक्ती उनको कभी नहीं मिलेगी।
क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
राधास्वामी
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