**राधास्वामी!! 02-07-2020
शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-
(
1) होली खेल न जाने बावरिया। सतगुरु को दोष लगावे।।-( प्रीति प्रततीति बढावत दिन दिन। राधास्वामी चरन समावे।। )-(प्रेमबानी-3-शब्द-8,पृ.सं. 298
(2) सुन री सखी पिया की बतियाँ। सुरत मेरी हुई चरनन रतियाँ।।-( सरन तुम्हारी दृढ गहियाँ। चरन रहें तुम्हरे मम मथियाँ।। )-(प्रेमबिलास-शब्द-4,पृ.सं.4)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला- कल से आगे।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 02-07-202
-आज शाम के सतसंग में पढा गया बचन-कल से आगे-(37) ताण्डय ब्रहामण २०/१४/२ में आया है-पहले अकेला प्रजापति ही था,उसका सर्वस्व अर्थात समस्त सम्पति केवल वाणी थी। यदि कोई उसका दूसरा था तो वह वाणी ही थी। उसने विचार किया कि इस वाणी ही को बाहर निकालूँ अर्थात उत्पन्न करूँ। यही इस सबको (प्रकुति को) प्रकाशित करती जायगी। ऐसा सोचकर उसने वाणी को प्रकट किया। काठक सहिंता १२/५/२7/१ में लिखा है-" प्रजापति ही यह था, उसका दूसरा वाणी थी। उससे जोडा खाया, उसने गर्भ धारण किया। वह उससे दूर भागी। उसने इन प्रजाओं को उत्पन्न किया। वह फिर प्रजापति ही में समा गई"। अर्थ स्पष्ट है। प्रजापति अर्थात ब्रह्मा ने समस्त सृष्टि शब्द के द्वारा रची और सृष्टि के आदि में शब्दधार अपने केंद्र से जारी होकर और फिर कुल सृष्टि में लौट गई। मूल में वाच् या वाक् शब्द प्रयुक्त हुआ है जिसका अर्थ सभी कोषों में वाणी या शब्द दिया है। इसके अतिरिक्त शतपथ ब्रहामण १४/४/३/१३ में आया है-" वागेव देवाः, अर्थात शब्द ही देवता हैं। और गोपथ ब्राह्यण पर्व २/१० में आया है- ' वाग्देव:' अर्थात शब्द एक देवता है। और ऐतरेय ब्राहामण २/३८ में आया है- ' वाग्योनि:' अर्थात शब्द योनि अथवा उत्पत्ति स्थान है। और बृहदारण्यक उपनिषद १-२-४-५ में लिखा है:- " उसने(सृष्टि के आदि में मृत्यु अर्थात कालपुरुष ने) इच्छा की कि मेरा दूसरा शरीर उत्पन्न हो तो उसने मन से वाक अर्थात शब्द को उत्पन्न किया और उसके साथ संगठन हुआ.............तो मृत्यु ने उसकी ओर मुँह खोला उसने 'भाँ' शब्द उच्चारण किया, वही वाणी हुई।४।" 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश-भाग-पहला-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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