**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -
【संसार चक्र 】
कल से आगे :-
राजासाहब- मुआफ कीजिये! इत्तेफाक कोई चीज नहीं है। जैसे समुद्र में गिरी हुई चीज को पाने की एक लहर दूसरी लहर के सुपुर्द कर देती है और लहरों के आसरे वह धीरे-धीरे किनारे आ लगती है ऐसे ही हमारी जिंदगी की घटनाएं हमें धकेल धकेल कर किनारे तक पहुंचाती है।
दुलारेलाल-( किसी कदर जज्बे में आकर) महाराज। इंदुमती- न हमारा बच्चा मरता, न हम तीर्थ यात्रा को निकलते हैं और न ये ज्ञान की बातें सुनते।
( इतने में तुलसी बाबा पहुंचते हैं। सब खड़े होकर बाबा जी का स्वागत करते हैं और फिर बैठ जाते हैं।)
तुलसी बाबा-( दुलारेलाल से) श्री महाराज ने मुझे पहचाना नहीं ।मैंने महाराज को कल कथा में देखा था। महाराज सुनकर आश्चर्य करेंगे कि मैं भी महाराज की प्रजा हूँ।
इंदुमती- है! क्या आप भूमिगांव के रहने वाले हैं?
तुलसी बाबा- जी हां कोई 10 वर्ष से गृहस्थी त्याग कर यहां चला आया हूँ।
राजासाहब -गृहस्थी क्यों छोड़ दी?
तुलसीबाबा- अब यह पुरानी कथा है, इसको न पूछिये, दुखदाई बातें हैं।(कुछ रुक कर) एक बालक था सो 2 वर्ष का होकर मर गया। बड़ी उम्र की औलाद में बड़ा मोह हो जाता है उसके मरने पर उतना ही दुख होता है।
इंदुमती -क्या आप गाजीपुर में तो नहीं रहते थे ?
तुलसी बाबा-( हैरान होकर) आपको कैसे मालूम?( कुछ रुककर) हाँ मेरा मकान वहीं पर था , न जाने अब है कि नहीं।
दुलारेलाल- बाबा जी !आपका मकान भी मौजूद है, आपकी धर्मपत्नी भी मौजूद है। वह बड़ी प्रेमिन है। 8,9 माह गुजरे हमारा भी बच्चा जाता रहा। हम बड़े दुखी हो गये। इत्तिफाक से वह मिल गई। उन्होंने हमें बड़े अच्छे उपदेश किये। है उन्हीं के कहने से हम यात्रा को निकले। उन्होंने आपका भी जिक्र किया था।
तुलसी बाबा - तो वह मुझे अभी भूल ही नहीं है।
इंदुमती -बड़ी सतवन्ती स्त्री है, मेहनत मजदूरी करके पेट भरती है। आपको उसे छोड़ना नहीं चाहिए था। क्या उसको बच्चे के मरने का दुःख नही हुआ होगा? पिता की निस्बत माता को औलाद से ज्यादा मोहब्बत होती है मगर आपने उस बेचारी की क्या सहायता की? यही न कि छोड़ कर चले आये, वह जाने उसका काम? इतने ज्ञानी होकर आपने बड़ा अनर्थ किया!
तुलसी बाबा - पर उस वक्त तो मैं ज्ञानी नहीं था।
इंदुमती -आपने कल हृदय की शुद्धता पर जोर दिया था। शुद्ध हृदय कोमल होता है। आपको अब उस बेचारी पर तरस खाना चाहिये।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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