**परम गुरु हुजूर महाराज
- प्रेम पत्र- भाग 1-
कल से आगे:-(7)
जीव यानी सत्तपुरुष राधास्वामी की अंश है, जैसे सूरज और सूरज की किरन। रचना से पेश्तर यह सत्तपुरुष राधास्वामी के साथ एक रुप थी।
जब सत्तलोक की रचना के नीचे सत्तपुरुष के चरणों से प्रथम अंश निरंजन यानी कालपुरूष प्रगट हुआ और उसने वास्ते करने तीन लोक की रचना के सत्तपुरुष से सेवा करके आज्ञा मांगी और उसको इजाजत जाती है पुरुष को इजाजत दी गई और वह अकेला रचना न कर सका, तब उस वक्त आद्या को (जो दूसरी अंश सत्पुरुष किया है ) प्रगट करके और उसको बीजा जीवो यानी सुरतों का सुपुर्द करते निरंजन के पास भेजा गया। और इन दोनों ने मिलकर रचना तीन लोक की करी।
(8) त्रिकुटी के मुकाम से माया प्रगट हुई और यह गुबार रुप यानी परमाणु स्वरूप थी। और यह माया असल में एक गिलाफ या तह थी जो चैतन्य पर दसवें द्वार के नीचे बतौर मलाई के दूध पर चढ़ी हुई थी।
जब वह दोनों धारे ,यानी निरंजन और आद्या यानी जोत, इस मुकाम पर आई, तब वह तह अलहदा कर दी गई और वह गुबार यानी परमाणु स्वरूप होकर फैली,और इन तीनों से मिलौनी से निहायत सूक्ष्म धारें तीन गुण-सत,रज,तम की त्रिकुटी से जो त्रिकुटी के निचे है, यह धारें स्वरुपवान् प्रगट हुई।
और पाँच तत्व भी प्रगट हुए और यह तत्व और गुण माया के मसाले के बडे अंश है।
क्रमशः.
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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