श्रीविल्लीपुत्तूर - 10 फ़रवरी, 1983-
आज सुबह ‘परम गुरु मेहताजी महाराज के बचन’ से एक बचन पढ़ा गया, जिसमें ज़िक्र था कि किसी बड़े प्रोग्राम के काम में हमें माल, पूँजी और आदमियों की ज़रूरत पड़ती है। अतः आपको आदमियों की ज़रूरत है और आपको अनुशासित रहना है। सतसंग प्रोग्राम को पूरा करने के लिये हम अनुशासित लोग चाहते हैं।
आपको सतसंग का सिपाही बनना है इसलिये केवल अनुशासित ही नहीं बल्कि शरीर से स्वस्थ तथा दिल व दिमाग़ से रोशन भी होना है। अगर आप सतसंग में शामिल हुए हैं तो आपका फ़र्ज़ है कि सतसंग के सिपाही बनें। हुज़ूर राधास्वामी दयाल की योजना मानव-मात्र के उद्धार की है। आप को सतसंग के सिपाही की तरह अपना कर्त्तव्य पालन करना है।
प्रोग्राम पूरा अवश्य होगा- चाहे आप राज़ी से करें या बेराज़ी से, आप लोगों को करना ही है। अगर आप ख़ुशी से करेंगे तो आनन्द मिलेगा। अगर आप हिचकिचायेंगे और प्रोग्राम में हिस्सा नहीं लेंगे तो आपसे ज़बरदस्ती करवाया जायेगा और तब आप उसे सजा समझेंगे। लेकिन हुज़ूर राधास्वामी दयाल सजा नहीं देते, लेकिन आप लोग ऐसा महसूस करते हैं क्योंकि आप उनके आदेशों का पालन नहीं करते।
बल्कि इससे एक सच्चे सतसंगी और हुज़ूर राधास्वामी दयाल के भक्त की तरह आपको सतसंग के भविष्य के प्रोग्रामों में ख़ुशी से पूरी तरह शामिल होने में सहायता मिलेगी। अगर आप सब लोग आपस में सहयोग से काम करें तभी यह सम्भव हो सकता है। सतसंगियों का आपस में मतभेद और झगड़ा नहीं होना चाहिए।
आप लोगों को प्रेम-प्रीति से व्यवहार करना चाहिये। अगर आप लोग इन निदेर्शों (directions) का पालन करेंगे, तो मुझे यक़ीन है कि मालिक की दया आपके साथ रहेगी।
(परम गुरु हुज़ूर डॉ. लाल साहब के बचन, प्रेम प्रचारक 21 मार्च, 1983 का अंश)
No comments:
Post a Comment