Friday, July 3, 2020

संसार चक्र ( नाटक )






**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

【 संसार चक्र】

- कल से आगे

-( दोनों गौर से सामने देखते हैं, इतने में तीनो अजनबी यके के बाद दिगरे गठरियाँ सिर से उतारकर पीठ पर बाँधते हैं ताकि दोनों हाथ खाली हो जायँ और गठरियों में से रुमाल निकाल कर मुट्ठियों में ले लेते हैं मगर दैवयोग से दुलारेलाल ठोकर खाता है। गोविंद उलट कर पीछे देखता है और अजनबियों के हालत देखकर मुआमला ताड जाता है।)


गोविंद- महाराज सावधान !

 दुलारेलाल -क्यों क्या हुआ?

( गोविंद एक अजनबी पर झपटता है,n दुलारेलाल दूसरे पर और इंदुमती बूढे के हाथ पकड लेती है)

गोविंद - गिरा लो इन बदमाशों को, महारानी जी! मत छोडना इसके हाथों कै।

(गोविंद और दुलारेलाल दो आदमियों को धक्का देकर गिरा देते हैं। दुलारेलाल तलवार सूय लेता है और कडक कर बोलता है।)

 दुलारेलाल-जान की खैर चाहते हो तो चुपचाप जमीन पर.लेटे रहो,नही अभी एक एक का सिर काट डालूँगा। दोनो शख्स हम लेटे है, हमारी फिक्र न करेंः

J ( दुलारेलाल इंदुमती की मदद के लिये बढता है और एक धक्का देकर बूढे को गिरा देता है।)

दुलारेलाल-पडा रह जमीन पर हरामजादे, जरा भी हिला तो तलवार का मजा चक्खैगा।

बूढा-नई म्हाराज मन्ने क्यों हिलना है पर म्हारा अपराध क्या है?

(इतने में पीछे से चार सिपाही को एक लड़का भागते हुए नजर आते हैं।)

  गोविंद -वही लड़का मालूम होता है।

 इंदुमती भगवान तेरी कृपा!

 दुलारेलाल-ईश्वर तेरी माया!

 (सिपाही व लडका आ पहुँचते है।)

लड़का - ये है राजा साहब और यह बुड्ढा नत्थू पंडित है, यह दूसरा गोवर्धन है और तीसरा मोहनराम है।।

अफसर सिपाही-मगर वह चौथा कहां है? राजा साहब! क्या कोई इनका साथी भाग गया है?

 दुलारेलाल-(हैरान हो कर) अरे गजब हुआ एक साथी हाथ से निकल गया।

(गोवर्धन की तरफ गौर सै देखकर)

अरे बदमाश! तू ही कल रानी के दान करने का मश्वरा देता था- रगें सियार-अब इस भेष में?

 अफसर सिपाही-(अपने साथियो से) अच्छा इन सबके हथकडियाँ लगाओ।

हाँ राजा साहब! इन का साथी किधर को भागा है?

दुलारेलाल-बात यह है कि रास्त चलतै चलते एक शख्स इस बूढे की गठरी छीन कर भाग निकला। मैंने उसका तअक्कुब(पीछा) किया। कुछ देर बाद वह गठरी फेंक कर भाग गया। मैं नहीं कह सकता वह किधर गया।

लडका-इसी बहाने से ये लोग राजा साहब को बडी सडक से इधर ले आये।( सिपाही हथकडियाँ लगाते हैं ।तीनों की मुट्ठियों के अंदर से रुमाल बराबमद होते हैं। रुमालों में एक एक कोने पर एक एक मंसूरी पैसा बंधा है ।राजा दुलारेलाल कुंड पर जाने का इरादा मौकूफ करके घर लौट आता है।

(सिपाही अपना रास्ता लेते हैं)

इंदुमती -ए बेटा ! हमें भूल मत जाना ,हमारे यहां जरूर आना।
( लड़का दूर से हाथ जोड़कर नमस्कार करता है सिपाहियों के हमराह चला जाता है।)



। क्रमशः                 

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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