Friday, July 3, 2020

रोजाना वाक्यात प्रेमपत्र और संसारचक्र (नाटक )






**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-


रोजाना वाकिआत-

 16 नवंबर 1932- बुधवार:-


सुबह 6:00 बजे की गाड़ी से आगरा के लिए रवाना हो गये। रास्ते भर फिर सत्संगी मिलते रहे ।रात को 8:30 बजे दयालबाग प्रविष्ट हुए। रास्ते में रेल से देखने पर फसलों का बुरा हाल नजर आता था।

                 
मालूम हुआ कि नुमाइश पटना में अंदाजन साढे छः हजार का माल विक्रय हुआ और 280 नए भाइयों और बहनों ने राधास्वामी दयाल की चरन सरन अख्तियार की।      रास्ते में इलाहबाद के भाइयों ने इलाहाबाद में नुमाइश की तारीख को निश्चित करने के लिए  ओर दिया। अभी दिसंबर का बोझ सर पर है। यह टल जाए तब किसी दूसरे काम करने निकले।।                                                     


  17, 18 ,19 ,नवंबर 1932- बृहस्पतिवार से शनिवार -                                             

जरूरी तार प्राप्त होने पर 3 दिन के लिए दयालबाग से गैरहाजिर रहना पड़ा ।           

एक भाई ने हिंदुस्तान टाइम्स दिल्ली की 3 कॉपियाँ पेश की जिनमें नुमाइश पटना के हालात दर्ज है और जिनमें दयालबाग की निर्मित वस्तुओं की  बहुत तारीफ की गई है।

29 नवम्बर का एडीटोरियल पढने के काबिल है। लेकिन कानपुर का रोजाना हिंदी अखबार प्रताप मुद्रित 5 नवम्बर पढकर (मालूम) हुआ कि दयालबाग में जितनी  भी चीजें बनती है उनके सब के सब पुर्जे बाहर से आते हैं। पत्रकार लिखते हैं" यह बात दयालबाग के लिए कलंक स्वरुप है।" क्या इससे बढ़कर कोई शख्स सफेद झूठ तहरीर कर सकता है?

ना मालूम या कैसे नामानिगार है । और किस हिम्मत पर यह अपने स्वयं को देश सेवक करते हैं।।           

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻




*परम गुरु हुजूर महाराज-

प्रेम पत्र- भाग 1-

कल से आगे

-(4 पहली ताकत देह और इंद्रियों की- )


यह बोझ उठाने और हल जोतने से लगाकर उमदा तस्वीर खींचना और लिखना और गाना और बजाना और किस्म किस्म की चीजें कारीगरी के साथ बनाना और तरह-तरह के तमाशे और चालाकी दिखलाना, जैसे नाचने वाले और नट वगैरह दिखलाते हैं।  इन सब कामों का नफा या मजदूरी ज्यादा से ज्यादा है, यानी सैकडो रुपये महीना पैदा कर सकते हैं, मगर बोझ उठाने वाला हल जोतने वाला दो तीन या चार आने रोज से ज्यादा नहीं कमा सकता है।।                                                             

(5)  दूसरी कुव्वत मन और बुद्धि की -यह विद्या या इल्म के पढने से जागती है और यह इल्म मदरसे में उस्ताद से सीखने और मेहनत करने से हासिल  होगा। जो कि जिस इल्म की तरफ शौक के साथ तवज्जुह करें, वह उसी इल्म को कुछ अरसे में सीख सकता है और इम्तिहान देकर राज दरबार से बडे से बडा काम पा सकता है,  जिसमें वह हजारों लाखों बल्कि करोड़ों आदमियों पर हुक्म चला सकता है और मुल्कों का बंदोबस्त करता है और हजारों रुपए की तनख्वाह पाता है और बहुत बड़ी इज्जत और हुकुमत उसको मिलती है और शहरों में नामवरी उसकी होती है और दुनियाँ के सब तरह के भोग और बिलास उसको आसानी से प्राप्त होते हैं ।

क्रमशः

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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L

संसार चक्र



**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

【 संसार चक्र】

- कल से आगे

-( दोनों गौर से सामने देखते हैं, इतने में तीनो अजनबी यके के बाद दिगरे गठरियाँ सिर से उतारकर पीठ पर बाँधते हैं ताकि दोनों हाथ खाली हो जायँ और गठरियों में से रुमाल निकाल कर मुट्ठियों में ले लेते हैं मगर दैवयोग से दुलारेलाल ठोकर खाता है। गोविंद उलट कर पीछे देखता है और अजनबियों के हालत देखकर मुआमला ताड जाता है।)


गोविंद- महाराज सावधान !

 दुलारेलाल -क्यों क्या हुआ?

( गोविंद एक अजनबी पर झपटता है,n दुलारेलाल दूसरे पर और इंदुमती बूढे के हाथ पकड लेती है)

गोविंद - गिरा लो इन बदमाशों को, महारानी जी! मत छोडना इसके हाथों कै।

(गोविंद और दुलारेलाल दो आदमियों को धक्का देकर गिरा देते हैं। दुलारेलाल तलवार सूय लेता है और कडक कर बोलता है।)

 दुलारेलाल-जान की खैर चाहते हो तो चुपचाप जमीन पर.लेटे रहो,नही अभी एक एक का सिर काट डालूँगा। दोनो शख्स हम लेटे है, हमारी फिक्र न करेंः

J ( दुलारेलाल इंदुमती की मदद के लिये बढता है और एक धक्का देकर बूढे को गिरा देता है।)

दुलारेलाल-पडा रह जमीन पर हरामजादे, जरा भी हिला तो तलवार का मजा चक्खैगा।

बूढा-नई म्हाराज मन्ने क्यों हिलना है पर म्हारा अपराध क्या है?

(इतने में पीछे से चार सिपाही को एक लड़का भागते हुए नजर आते हैं।)

  गोविंद -वही लड़का मालूम होता है।

 इंदुमती भगवान तेरी कृपा!

 दुलारेलाल-ईश्वर तेरी माया!

 (सिपाही व लडका आ पहुँचते है।)

लड़का - ये है राजा साहब और यह बुड्ढा नत्थू पंडित है, यह दूसरा गोवर्धन है और तीसरा मोहनराम है।।

अफसर सिपाही-मगर वह चौथा कहां है? राजा साहब! क्या कोई इनका साथी भाग गया है?

 दुलारेलाल-(हैरान हो कर) अरे गजब हुआ एक साथी हाथ से निकल गया।

(गोवर्धन की तरफ गौर सै देखकर)

अरे बदमाश! तू ही कल रानी के दान करने का मश्वरा देता था- रगें सियार-अब इस भेष में?

 अफसर सिपाही-(अपने साथियो से) अच्छा इन सबके हथकडियाँ लगाओ।

हाँ राजा साहब! इन का साथी किधर को भागा है?

दुलारेलाल-बात यह है कि रास्त चलतै चलते एक शख्स इस बूढे की गठरी छीन कर भाग निकला। मैंने उसका तअक्कुब(पीछा) किया। कुछ देर बाद वह गठरी फेंक कर भाग गया। मैं नहीं कह सकता वह किधर गया।

लडका-इसी बहाने से ये लोग राजा साहब को बडी सडक से इधर ले आये।( सिपाही हथकडियाँ लगाते हैं ।तीनों की मुट्ठियों के अंदर से रुमाल बराबमद होते हैं। रुमालों में एक एक कोने पर एक एक मंसूरी पैसा बंधा है ।राजा दुलारेलाल कुंड पर जाने का इरादा मौकूफ करके घर लौट आता है।

(सिपाही अपना रास्ता लेते हैं)

इंदुमती -ए बेटा ! हमें भूल मत जाना ,हमारे यहां जरूर आना।
( लड़का दूर से हाथ जोड़कर नमस्कार करता है सिपाहियों के हमराह चला जाता है।)



। क्रमशः               

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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