**परम गुरु हुजूर महाराज
प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे :- (6)
तीसरी कुव्वत रूहानी यानी चेतन सुरत यह आत्मा की- यह ताकत पूरे और सच्चे परमार्थी गुरू से मिलकर और उनका और प्रेमी अभ्यासियों का सत्संग करके और अपने मालिक के चरणो में मोहब्बत और दुनिया से वैराग्य करने से और मन और सुरत को साफ करके घट में ऊँचे की तरफ चढ़ाने से जागती है।
जो कोई अपने मन और इंद्रियों को रोक कर और सच्चे मालिक और सतगुरु का प्रेम हृदय में धर कर बराबर अभ्यास करे, वह एक दिन अपनी सचरत की ताकत को जगा सकता है और फिर बिना उसके मांगे देशों में नामवरी फैलती है और दूर-दूर से मर्द और औरत और लडके वाले उसके पास आकर उसकी पूजा और प्रतिष्ठा करते हैं और अपने जीव के वास्ते मुक्ति और नजात हासिल करने के लिए उस को एक बड़ा वसीला अपना समझ कर उसकी सेवा और खिदमत तन मन और धन से करते हैं।
और सिर्फ उसकी जिंदगी में नहीं बल्कि उसके नाम और निशान की पूजा और अदब कसरत से मुल्कों में जारी होता है और हर एक देश के लोग, मर्द और औरत और लड़के, उसके नाम और उसकी बानी को गा कर अपना जन्म सुफल करते है। इस किस्म के लोग अपने-अपने दर्ज के मुआफिक संत और साध और औतार स्वरुप और महात्मा ओंर पैगंबर और औलिया कहलाते हैं।
उनका मालिक आप उनको प्यार करता है और उनकी इज्जत और महिमा और बढ़ाई बढाता है और उनके मत को, जो अपने मालिक के हुक्म से जारी करें दूर-दूर तक फैलता है
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**.
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