Monday, July 6, 2020

सेहत के लिए / कान रोग




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*कान 👂🏻के रोग*

Arogyanidhi🔆🔅
*🔆कान में पीब(मवाद) होने परः*

*🔅पहला प्रयोगः फुलाये हुए सुहागे को पीसकर कान में डालकर ऊपर से नींबू के रस की बूँद डालने से मवाद निकलना बंद होता है।*

*🔅✅मवाद यदि सर्दी से है तो सर्दी मिटाने के उपाय करें। साथ में सारिवादी वटी 1 से 3 गोली दिन में दो बार व त्रिफला गुग्गल 1 से 3 गोली दिन में तीन बार सेवन करना चाहिए।*

*🔅दूसरा प्रयोगः शुद्ध सरसों या तिल के तेल में लहसुन की कलियों को पकाकर 1-2 बूँद सुबह-शाम कान में डालने से फायदा होता है।*

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*🔆बहरापनः*

*🔅पहला प्रयोगः दशमूल, अखरोट अथवा कड़वी बादाम के तेल की बूँदें कान में डालने से बहरेपन में लाभ होता है।*

*🔅दूसरा प्रयोगः ताजे गोमूत्र में एक चुटकी सेंधा नमक मिलाकर हर रोज कान में डालने से आठ दिनों में ही बहरेपन में फायदा होता है।*

*🔅तीसरा प्रयोगः आकड़े के पके हुए पीले पत्ते को साफ करके उस पर सरसों का तेल लगाकर गर्म करके उसका रस निकालकर दो-तीन बूँद हररोज सुबह-शाम कान में डालने से बहरेपन में फायदा होता है।*

*🔅चौथा प्रयोगः करेले के बीज और उतना ही काला जीरा मिलाकर पानी में पीसकर उसका रस दो-तीन बूँद दिन में दो बार कान में डालने से बहरेपन में फायदा होता है।*

*🔅पाँचवाँ प्रयोगः कम सुनाई देता हो तो कान में पंचगुण तेल की 3-3 बूँद दिन में तीन बार डालें। औषधि में सारिवादि वटी 2-2 गोली सुबह, दोपहर तथा रात को लें। कब्ज न रहने दें। भोजन में दही, केला, फल व मिठाई न लें।*

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*🔆कान का दर्दः*

*🔆अदरक का रस कान में डालने से कान के दर्द, बहरेपन एवं कान के बंद होने पर लाभ होता है।*

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*🔆कान में आवाज होने परः*

*🔅लहसुन एवं हल्दी को एकरस करके कान में डालने पर लाभ होता है। कान बंद होने पर भी यह प्रयोग हितकारक है।*

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*🔆🦟🦗कान में कीड़े जाने परः*

*🔅दीपक के नीचे का जमा हुआ तेल अथवा शहद या अरण्डी का तेल या प्याज का रस कान में डालने पर कीड़े निकल जाते हैं।*

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*🔆कान के सामान्य रोगः*

*🔅सरसों या तिल के तेल में तुलसी के पत्ते डालकर धीमी आँच पर रखें। पत्ते जल जाने पर उतारकर छान लें। इस तेल की दो-चार बूँदें कान में डालने से सभी प्रकार के कान-दर्द में लाभ होता है।*

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           आरोग्य निधि 🔆🔅
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[7/3, 07:20] Morni कृष्ण मेहता: 🔆🔅🔆🔅🔆🔅🔆🔅🔆

*🔆🔅हाथीपाँव*
Arogyanidhi 🔆🔅

*🙋🏻अत्यंत पीड़ायुक्त सूजन जो जाँघ एवं पेड़ू के बीच के संधिस्थल से धीरे-धीरे शुरु होकर धीरे-धीरे पैर के नीचे की ओर उतरती जाती है जिसमें रोगी का पैर अत्यंत मोटा अर्थात् हाथी के पैर जैसा हो जाता है उसे हाथीपाँव या श्लीपद रोग कहते हैं। इसमें रोगी बुखारग्रस्त भी रहता है।*

*🔆पहला प्रयोगः सोंठ, काला जीरा, आमी हल्दी, कुचला और रेवंदचीनी का हलुआ बनाकर गर्म-गर्म लगाने से हाथीपाँव में लाभ होता है।*

*🔆दूसरा प्रयोगः सरसों और छोटे करेले के पत्तों को समान मात्रा में लेकर गोमूत्र में मिलाकर गर्म करें। इस गर्म लेप को हाथीपाँव की सूजन पर लगाने से थोड़े ही दिनों में हाथीपाँव की सूजन एवं दर्द दूर होता है एवं उसकी वजह से आनेवाला बुखार भी मिटता है।*

                आरोग्य निधि 🔆🔅
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