**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-रोजाना वाकिआत- 20 नवंबर 1932 -
रविवार:- 10:30 बजे दयालबाग पहुंच गए। दया से सब काम बखैरियत पूर्णता पाये। इन दिनों यहां आगरा यूनिवर्सिटी की कॉन्वोकेशन के उत्सव में खूब चहल-पहल रही। कॉन्वोकेशन एड्रेस सर सीताराम ने दिया। आज शाम को 4:00 बजे सीताराम डॉक्टर मांगलिक के साथ दयालबाग तशरीफ़ लायेः कपड़े व चर्मसाजी के कारखानाजात अवलोकन किये। मैंने सावधानीवश ग्रामोफोन ,फाउंटेन पेन और बिजली के पंखों के अधूरे पार्टस यानी पुर्जे भी दिखलाये ताकि कोई तो यह कहने वाला हो के दयालबाग में पुर्जे तैयार होते हैं और बाहर से पुर्जे मंगवाने का इल्जाम सरासर गलत है। सर सीताराम नया क्लॉक देखकर बहुत खुश हुए। चलते वक्त आपने एक क्लॉक के लिए आर्डर भी दिया। कारखानाजात का मुलाहजा होने के बाद दयालबाग की तरफ से प्रतिष्ठित मेहमान की चाय पानी से सत्कार की गई ।उठते वक्त ईश्वर की हस्ती के मुतअल्लिक़ आजकल के नौजवानों के एतराज का जिक्र आ गया। मैंने कहा नौजवान ज्यादा से ज्यादा यह कहने के हकदार हैं कि उन्हें मालिक नजर नहीं आता । उन्हे यह कहने का हक नहीं है कि मालिक है ही नही या किसी को भी नजर नहीं आ सकता । आखिर में एक कॉपी ड्रामा संसार चक्र की पेश करके मैंने दरख्वास्त की कि समय मिलने पर इसे अध्ययन की प्रतिष्ठित किया जावे और देखा जाए आया मालिक की हस्ती व मालिक के दर्शन के मुतअल्लिक़ जो मर्म इस रचना में बयान हुए हैं कुछ वजन रखते हैं या नहीं। चाय पीने के बाद डेरी देखने तशरीफ ले गये।सर सीताराम डेरी देख कर बेहद खूश हुए। काश डेरी जल्द अपने पाँव पर खड़ी होकर अपना मिशन पूरा करने लगे। रात के सत्संग में पटना के कुछ तजरबात बयान हुए और भी बिहारी भाइयों के उत्साह व सादगी का जिक्र किया गया । क्योंकि अभी जिस्म में कमजोरी की शिकायत कायम है इसलिए ज्यादा बातचीत नहीं की जाती।। 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -
【संसार चक्र】
कल से आगे-【 तीसरा अंक 】
-पहला दृश्य-( गोदावरी शहर के बँगले के बरामदे में राजा दुलारेलाल , रानी इंदुमती और गोविंद बैठे हैं। इतने में कुछ लड़के एक दीवाने के पीछे चिल्लाते हुए सड़क से गुजरते हैं। राजा दुलारेलाल को देखकर दीवाना बँगले के अहाते के अंदर दाखिल होता है और सामने आकर खड़ा हो जाता है। लड़के भी पीछे-पीछे आ जाते हैं।) दीवाना-( दुलारेलाल से) एक पैसा दिलवाईये साहब! दुलारेलाल- पैसे का क्या करोगे? दीवाना -खाएंगे। दुलारेलाल तुम पैसा नहीं खा सकते । दीवाना- जरूर खा सकते हैं। दुलारेलाल- अगर तुम एक पैसा खा लो तो हम तुम्हें चार पैसे देंगे। दीवाना- कोई कसम खाओ तो यकीन आवे। दुलारेलाल- मुझे तलवार की कसम, अगर तुम एक पैसा खा लो तो मैं तुम्हें चार पैसे दूँगा। दीवाना- कसम खा•••••ओ! कहो मत। दुलारेलाल-अरे! सच तो कहता है। एक लड़का-अजी दीवाना है, दीवाना। दुलारेलाल-( दीवाने से) ये तुम्हें दीवाना क्यों कहते हैं ? दीवाना- क्योंकि ये खुद दीवाने हैं।( सब हंस पड़ते हैं) दुलारेलाल -अच्छा तुम इस हाल में क्यों फिरत हो? दीवाना- अच्छा तुम इस हाल में क्यों फिरते हो? दुलारेलाल- इसलिए कि भगवान ने हमें इस हाल में रक्खा है।। दीवाना -इसलिए कि भगवान ने हमें इस हाल में रक्खा है।( सब हंस पड़ते हैं।) दुलारेलाल- तुम कभी नहाते क्यों नहीं? दीवाना- तुम नहाते क्यों हो? दुलारेलाल- बदन साफ रखने के लिये। दीवाना- बदन मैला रखने के लिए। ( सब हँस पडते हैं।) लड़के -तुम गंदे हो। दीवाना- तुम अंधे हो। लड़के- तुम पागल हो। दीवाना- तुम जाहिल हो। लड़के - तुम बैल हो। दीवाना- तुम बछड़े हो। इंदुमती -नहीं यह शख्स पागल नहीं है, दुखिया है।लोग इसे नाहक दिक करते हैं। मालूम होता है इसका कुछ खो गया है उसके दुख से यह ऐसा हो गया है। भाई तुम्हारा कुछ खो गया है ? दीवाना -हाँ खो गया है, ढूंढ दोगे ? दुलारेलाल -कोशिश करेंगे, बतलाओ क्या खो गया है? दीवाना -मेरा पिस्सू खोगया है, आओ ढूँढो।( सब हंस पड़ते हैं।) क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज
प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे :-
(6) तीसरी कुव्वत रूहानी यानी चेतन सुरत यह आत्मा की- यह ताकत पूरे और सच्चे परमार्थी गुरू से मिलकर और उनका और प्रेमी अभ्यासियों का सत्संग करके और अपने मालिक के चरणो में मोहब्बत और दुनिया से वैराग्य करने से और मन और सुरत को साफ करके घट में ऊँचे की तरफ चढ़ाने से जागती है। जो कोई अपने मन और इंद्रियों को रोक कर और सच्चे मालिक और सतगुरु का प्रेम हृदय में धर कर बराबर अभ्यास करे, वह एक दिन अपनी सचरत की ताकत को जगा सकता है और फिर बिना उसके मांगे देशों में नामवरी फैलती है और दूर-दूर से मर्द और औरत और लडके वाले उसके पास आकर उसकी पूजा और प्रतिष्ठा करते हैं और अपने जीव के वास्ते मुक्ति और नजात हासिल करने के लिए उस को एक बड़ा वसीला अपना समझ कर उसकी सेवा और खिदमत तन मन और धन से करते हैं। और सिर्फ उसकी जिंदगी में नहीं बल्कि उसके नाम और निशान की पूजा और अदब कसरत से मुल्कों में जारी होता है और हर एक देश के लोग, मर्द और औरत और लड़के, उसके नाम और उसकी बानी को गा कर अपना जन्म सुफल करते है। इस किस्म के लोग अपने-अपने दर्ज के मुआफिक संत और साध और औतार स्वरुप और महात्मा ओंर पैगंबर और औलिया कहलाते हैं। उनका मालिक आप उनको प्यार करता है और उनकी इज्जत और महिमा और बढ़ाई बढाता है और उनके मत को, जो अपने मालिक के हुक्म से जारी करें दूर-दूर तक फैलता है क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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