*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
रोजाना वाकिआत- कल का शेष:-
रात के सत्संग में बयान हुआ कि इंसान कतई बेसरोसामान दुनिया में आता है। और जब सामान कुदरत से पाकर इंसान बनता है । लेकिन जल्द ही अपनी तुच्छता व लाचारी को भूलकर सृष्टि के कर्ताधर्ता में दोष निकालने लगता है और अपनी निगाह में किसी को नहीं लाता ।
मालिक ने इंसान के लिए सूरज, जमीन, हवा, पानी, आग, वगैरह सामान मुहैया किये। इंसान सिर्फ उनका इस्तेमाल करता है लेकिन न कोई चीज पैदा कर सकता है न नष्ट कर सकता है। सिर्फ मालिक की पैदा हुई चीजों की शक्लों में परिवर्तन करने की काबिलियत रखता है। बेहतर हो कि अभी अपनी जड़ता से बाज आवे और दीनता का सबक सीखे और भी मालिक के इंतजाम को ख्याल में लाकर और यह देखना करके कि मालिक के इंतजामात कैसे विस्तृत पैमाने पर चल रहे हैं और अनंत जीव जंतु का कैसे पालन पोषण हो रहा है सबक ले कि संसार में जन्म लेने और जिंदगी बसर करने के लिए मालिक ने उसके लिए पूरा इंतजाम फरमाया है तो उसकी परमार्थी चाह यानी यानी मालिक के दर्शन की प्राप्ति की इच्छा के मुतअल्लिक़ भी मालिक की जानिब से मुकम्मल इंतजाम होगा।
स्पष्ट हो कि जैसे दुनिया का अंधेरा दूर करने के लिए मालिक ने सूरज, चांद ,और बिजली वगैरह तैनात किए हैं ऐसे ही अंतरी अंधेरा दूर करने के लिए मालिक साध,संत ऋषि,मुनि और पैगंबर औलिया वगैरह तैनात करता है ।
मुनासिब है कि हम जैसे प्रकृति के नियमों की तामील करके सूरज, चांद व बिजली वगैरह के प्रकाश से फयदा उठाते हैं ऐसे ही उन महापुरुषों की मौजूदगी से भी रूहानी लाभ हासिल करें। उपस्थित जन सत्संग की तादाद 4000 से ज्यादा थी और सब लोग एकाग्रता से सतसंग के उपदेश सुनते थे।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
【 संसार चक्र 】-
कल से आगे :-(सातवां दृश्य)-
(कुरुक्षेत्र की बड़ी सड़क पर राजा दुलारेलाल ,रानी इंदुमती और गोविंद चल रहे हैं।)
दुलारेलाल- देखो गोविंद! मैं आगे आगे चलूँगा, इंदुमती बीच में रहे और तुम पीछे पीछे चलना और खबरदार रहना, रात की रुमाल वाली बात का ख्याल रखना।
गोविंद- जैसी आज्ञा महाराज की ।
(कुछ फासला चलने पर सामने एक बूढ़ा यात्री दिखलाई देता है। सिर पर गठरी लिए है। टांग चौड़ी करके किसी कदर लंगडा कर चलता है।)
इंदुमती-(दुलारेलाल से) आपने देखा इस बूढे यात्री को, कैसे चलता है? टाँगों से लाचार है, सिर पर गठरी है। श्रद्धा में बडी शक्ति है ।
दुलारेलाल-मैं तो बार बार कहता ह्ँ कि इस संसार का कुछ पता ही नहीं चलता । किसी पर भगवान की कृपा ही हो तो वह ग्रंथि खोल सके। देखो वह गिरा! खैर सँभल गया।
(इतने में एक शख्स इस बूढे की गठरी पर झपटता है। बूढ़ा चिल्लाता है, दुलारेलाल उसकी मदद को दौडता है। वह शख्स गठरी छीन कर भाग निकलता है। बूढा सिर पीटता है और चिल्लाता है।)
दुलारेलाल उस शख्स का पीछा करता है। रानी इंदुमती और गोविंद बूढे के नजदीक पहुँच कर उसे तसल्ली देते है।
दो और यात्री,जिन्होनें यह सब वारदात फासले से देखी है,आ मिलते है।)
बूढा जी देख्या तम्हने, मन्नों दिन दिहाडे लुट लिया, सत्यानाश हो इस पापी का, सारी उमर का जोडया सँगोडया ले गयाः हाय! हाय!!
(जमीन पर बैठता है।)
पहला शख्स-(गोबिन्द से) यह कौन था चोर के पीछे भागा ?
गोविंद-हमारे राजा साहब हैं।
दूसरा शख्स-तभी! मैं भी कहूं इतना दयावान और दिलेर यह कौन है।
पहला शख्स-और यह तुम्हारी रानी जी है?
गोविंद - हाँ। दूसरा शख्स-यह संसार ऐसे धर्मावतारों ही के प्रताप से खडा हे, नही तो कब का नष्ट हो गया होता।
पहला शख्स - हम भी यात्री हैं, हम चोर के पीछे तो नहीं भागें पर जब तक राजा जी न लौटेंगे आप लोगो के साथ रहेंगे।
दूसरा शख्स-सबसे बड़ा धर्म तो दूसरे की रक्षा और सहायता करना ही है। हम रानी जी की रक्षा करेंगे, इनके लिए अपने प्राण तक दे देंगे।
इंदुमती धन्यवाद ।
क्रमश:
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज
-प्रेम पत्र- भाग 1- कल का शेष-( 11)
जब इन पाँच बातों की संभाल थोड़ी बहुत दुरूस्ती से बराबर जारी रहेगी, तो यकीन है कि ऐसे अभ्यासी व्यक्ति को मन और माया और दुनियाँ के विघ्न बहुत कम से कम सतावेंगे और उसका अभ्यास दिन दिन दुरुस्ती से बनेगा, और थोड़ा रस और आनंद के साथ बढ़ता जावेगा।।
और मालूम होवे कि ध्यान में यह सब काम शामिल है :- (1) सुमिरन करना, (2) ध्यान करना,(3) भजन करना , (3) पोथी का थोड़ा बहुत समझ समझ कर पाठ करना या सत्संग में बैठ कर सुनना,( 5 ) राधास्वामी मत की चर्चा करना या सुनना (6) राधास्वामी मत उसके अभ्यास के ताल्लुक की बातों का विचार और ख्याल करना , (7) अपने मन को इंद्रियों की चाल की हर रोज निरख परख करते रहना और जिस कदर मुमकिन होवे उसकी सँभाल रखना। (12) अभ्यासी को बेफायदा जल्दी इस काम में नहीं करनी चाहिए और गौर करना चाहिए कि दुनिया के काम भी , जैसे विद्या सीखना, जल्दी के साथ दुरुस्त नहीं बनते। इसमें 15 और 18 वर्ष शहर में गुजर जाते हैं जबकि विद्यार्थी कुल वक्त अपनी इसी काम में लगाता है, बल्कि घरबार और कुटुम परिवार से भी जुदा होकर मदरसे में रहना कबूल कलता है ।
फिर यह भारी प्रमार्थ का काम, जब कि सिर्फ दो तीन या चार घंटे उस में दिक्कत से लगाए जाते हैं बाकी वक्त दुनियाँ के काम और दुनियादारों के संग में गुजरता है , किस तरह से ऐसी जल्दी बन सकता है। बड़ी दया राधास्वामी दयाल की समझनी चाहिए कि वे ऐसी थोड़ी मेहनत पर भी अपनी दया करते हैं और सच्चे अभ्यासी को थोड़ा बहुत अंतर में सहारा थोड़े दिनों में बख्शते हैं।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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