भारत के इन मंदिरों के चमत्कारी रहस्य के आगे विज्ञान भी हैरान, खास 20 प्रसिद्ध रहस्यमय मंदिर
धर्म, भक्ति, अध्यात्म और साधना का देश है भारत, जहां प्राचीन काल से पूजा-स्थल के रूप में मंदिर विशेष महत्व रखते रहे हैं। यहां कई मंदिर ऐसे हैं, जहां विस्मयकारी चमत्कार भी होते बताए जाते हैं। जहां आस्थावानों के लिए वे चमत्कार दैवी कृपा हैं, तो अन्य के लिए कौतूहल और आश्चर्य का विषय। आइए जानते हैं, भारत के कुछ विशिष्ट मंदिरों के बारे में, जिनके रहस्य असीम वैज्ञानिक प्रगति के बाद कोई नहीं जान पाया है। कई प्राचीन मंदिर आज भी भारत की सर्वश्रेष्ट धरोहर है जिनसे जुड़े रहस्य आज तक राज बने हुए हैं। भारत में वैसे तो हजारों रहस्यमय मंदिर हैं लेकिन आज हम आपकों कुछ खास 20 प्रसिद्ध रहस्यमय मंदिरों की जानकारी देंगे जो आपको हैरान कर जाएंगे।
1) ज्वालादेवी से ज्वाला निकलना
इस मंदिर में अनंत काल से ज्वाला निकल रही है इसी कारण इसे ज्वालादेवी का मंदिर कहते हैं। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कालीधार पहाड़ी के बीच बसा हुआ है। देवी के शक्ति पीठों में से एक इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां पर माता सती की जीभ गिरी थी। इसलिए यहां पर ज्वाला निकलती रहती है। इसके अलावा यहां पर एक और चमत्कार देखने को मिलता है। मंदिर परिसर के पास ही एक जगह है ‘गोरख डिब्बी’ जो कि एक जल कुंड है। इस कुंड में गर्म खौलता हुआ पानी है, जबकि छूने पर कुंड का पानी ठंडा लगता है।
किसी को यह ज्ञात नहीं है कि ये ज्वालाएं कहां से प्रकट हो रही हैं? ये रंग परिवर्तन कैसे हो रहा है? आज भी लोगों को यह पता नहीं चल पाया है यह प्रज्वलित कैसे होती है और यह कब तक जलती रहेगी? कहते हैं, कुछ मुस्लिम शासकों ने ज्वाला को बुझाने के प्रयास किए थे, लेकिन वे विफल रहे।
हजारों वर्षों से यहां स्थित देवी के मुख से अग्नि निकल रही है। कहा जाता है कि इस मंदिर की खोज पांडवों ने की थी।इस जगह का एक अन्य आकर्षण ताम्बे का पाइप भी है जिसमें से प्राकृतिक गैस का प्रवाह होता है। इस मंदिर में अलग अग्नि की अलग-अलग 9 लपटें हैं, जो अलग-अलग देवियों को समर्पित हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार यह मृत ज्वालामुखी की अग्नि हो सकती है।
कहते हैं कि सतयुग में महाकाली के परम भक्त राजा भूमिचंद ने स्वप्न से प्रेरित होकर यह भव्य मंदिर बनवाया था। जो भी सच्चे मन से इस रहस्यमयी मंदिर के दर्शन के लिए आया है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
2) माँ रतनगढ़वाली मन्दिर; मध्य प्रदेश
रतनगढ़ माता मंदिर रामपुरा गांव से 5 किमी और दतिया (मध्य प्रदेश) से 55 किमी दूर स्थित है. यह पवित्र स्थान घने जंगल में और “सिंध” नदी के किनारे पर है, हर साल हजारों भक्त इस मंदिर में आते हैं ताकि वे माता रतनगढ़ वाली और कुंवर महाराज का आशीर्वाद पा सकें।
हर साल भाई दूज (दीपावली के अगले दिन) के दिन लाखों श्रद्धालु यहां माता और कुंवर महाराज के दर्शन करने के लिए आते हैं.
हर साल भाई दूज (दीपावली के अगले दिन) के दिन लाखों श्रद्धालु यहां माता और कुंवर महाराज के दर्शन करने के लिए आते हैं.
माँ रतनगढ़वाली की कथा कुछ ऐसी है कि मुगलो से युद्ध के दौरान शिवाजी विंध्याचल के जंगलों मे भूखे- प्यासे भटक रहे थे. तभी कोई कन्या उन्हें थाली मे भोजन लेकर आई़़ और जब शिवाजी ने अपने गुरू स्वामी रामदास से उस कन्या के बारे मे पूछा तो उन्होने अपनी दिव्य दृस्टि से देखकर बताया कि वो कोई सामान्य कन्या नही अपितु साक्षात जगत जननी माँ जगदम्बा हैं.
3) मैहर माता का मंदिर
मध्य प्रदेश में रीवा के पास सतना जिले सतना जिले की मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित मैहर की माता शारदा का प्रसिद्ध मंदिर है। बताया जाता है यहां पर जब मंदिर बंद हो जाता है अंदर से घंटी और पूजा करने की आवाज आती है। मान्यता है कि मां का भक्त आल्हा अभी भी यहां पूजा करने आता है, लेकिन मंदिर खोलने पर कोई नहीं दिखाई देता। कई बार जांचने की कोशिश की गई लेकिन असफलता ही हाथ लगी।
आज भी यही मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और उदल ही करते हैं। मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है, जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। यही नहीं, तालाब से 2 किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे।
1063 सीढ़ियां लांघ कर भक्त माता के दर्शन करने जाते हैं। सतना जिले की मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का मंदिर कहा जाता है। मैहर का मतलब है मां का हार। मैहर नगरी से 5 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत पर माता शारदा देवी का वास है। पर्वत की चोटी के मध्य में ही शारदा माता का मंदिर है।
त्रिकूट पर्वत पर मैहर देवी का मंदिर भू-तल से छह सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर तक जाने वाले मार्ग में तीन सौ फीट तक की यात्रा गाड़ी से भी की जा सकती है। मैहर देवी मां शारदा तक पहुंचने की यात्रा को चार खंडों में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम खंड की यात्रा में चार सौ अस्सी सीढ़ियों को पार करना होता है। मंदिर के सबसे निकट त्रिकूट पर्वत से सटा मंगल निकेतन बिड़ला धर्मशाला है। इसके पास से ही येलजी नदी बहती है। द्वितीय खंड 228 सीढ़ियों का है। इस यात्रा खंड में पानी व अन्य पेय पदार्थों का प्रबंध है। यहां पर आदिश्वरी माई का प्राचीन मंदिर है। यात्रा के तृतीय खंड में एक सौ सैंतालीस सीढ़ियां हैं। चौथे और अंतिम खंड में 196 सीढ़ियां पार करनी होती हैं। तब मां शारदा का मंदिर आता है।
पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है। इसी पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही श्री काल भैरवी, भगवान, हनुमान जी, देवी काली, दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेष नाग, फूलमति माता, ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है।
4) कालभैरव का मदिरा पीना
मध्य प्रदेश के शहर उज्जैन से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है भगवान काल भैरव का एक प्राचीन मंदिर। परंपरा के अनुसार, श्रद्धालु उन्हें प्रसाद के तौर पर केवल शराब ही चढ़ाते हैं। आश्चर्यजनक यह है कि जब शराब का प्याला काल भैरव की प्रतिमा के मुख से लगाया जाता है, तो वह एक पल में खाली हो जाता है।
मध्यप्रदेश के उज्जैन में कालभैरव के मंदिर में उन्हें मदिरा पिलाई जाती है। क्योंकि यहां भगवान कालभैरव को मदिरापान कराने की परंपरा हैं। इसकी वैज्ञानिक जांच भी हुई कि आखिर ये मदिरा कहां जाती है, लेकिन कुछ नहीं पता चल सका। कालभैरव का यह मंदिर लगभग 6,000 साल पुराना है। मदिरा पिलाने की प्रथा भी काफी पुरानी हो चुकी है।
5) पुरी का जगन्नाथ मंदिर
ओडिशा के नगर पुरी के तट पर भगवान जगन्नाथ का एक प्राचीन मंदिर स्थापित है। यहां आज भी भक्तों की काफी भीड़ होती है। यहां भी कई चमत्कारी रहस्यों की बातें होती हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर के गुंबद की छाया नहीं बनती है। इसके अलावा इस मंदिर के ऊपर लगा झंडा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है। इसके अलावा इसके गुंबद के आसपास कोई पक्षी नहीं उड़ता है। काफी जांच पड़ताल के बावजूद भी इन रहस्यों का खुलासा नहीं हो सका है।
6) मेहंदीपुर बालाजी मंदिर
राजस्थान के दौसा जिले में स्थित मेहंदीपुर का बालाजी धाम भगवान हनुमान के 10 प्रमुख सिद्धपीठों में गिना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर हनुमानजी जागृत अवस्था में विराजते हैं। यहां देखा गया है कि जिन व्यक्तियों के ऊपर भूत-प्रेत और बुरी आत्माओं का वास होता है, वे यहां की प्रेतराज सरकार और कोतवाल कप्तान के मंदिर की जद में आते ही चीखने-चिल्लाने लगते हैं और फिर वे बुरी आत्माएं, भूत-पिशाच आदि पल भर पीड़ितों के शरीर से बाहर निकल जाती हैं।
ऐसा कैसे होता है, यह कोई नहीं जानता है? लेकिन लोग सदियों से भूत-प्रेत और बुरी आत्माओं से मुक्ति के लिए दूर-दूर से यहां आते हैं। इस मंदिर में रात में रुकना मना है।
7) कामाख्या मंदिर
पूर्वोत्तर भारत के राज्य असम में गुवाहाटी के पास स्थित कामाख्या देवी मंदिर देश के 52 शक्तिपीठों में सबसे प्रसिद्ध है। लेकिन इस अति प्राचीन मंदिर में देवी सती या मां दुर्गा की एक भी मूर्ति नहीं है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार इस जगह देवी सती की योनि गिरी थी, जो समय के साथ महान शक्ति-साधना का केंद्र बनी। कहते हैं यहां हर किसी कामना सिद्ध होती है। यही कारण इस मंदिर को कामाख्या कहा जाता है।
8) करणी माता मंदिर
राजस्थान के बिकानेर से 30 किलोमीटर दूर देशनोक शहर में स्थित है करनी माता मंदिर। जिसे चूहों वाली माता, चूहों वाला मंदिर और मूषक मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में बीस हजार से ज्यादा चूहे हैं और इन्हें ‘कब्बास’ कहा जाता है। मंदिर में इनकी पूजा की जाती है क्योंकि माना जाता है कि वे करणी माता के परिजन हैं, जिन्होंने चूहों के रूप में जन्म लिया है। यह मंदिर तीन हिस्सों में बना है। इसका पहला हिस्सा सबसे बड़ा है, जहां पर हर शख्स को जाने नहीं दिया जाता है। दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं, जहां एक पत्थर से हर समय पानी निकलता है। कहते हैं कि महीने में एकबार इस पत्थर से खून की धारा निकलती है। ऐसा क्यों और कैसे होता है, यह आजतक किसी को ज्ञात नहीं है?
इस मंदिर को चूहों वाली माता का मंदिर, चूहों वाला मंदिर और मूषक मंदिर भी कहा जाता है, जो राजस्थान के बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर देशनोक शहर में स्थित है। करनी माता इस मंदिर की अधिष्ठात्री देवी हैं, जिनकी छत्रछाया में चूहों का साम्राज्य स्थापित है। इन चूहों में अधिकांश काले है, लेकिन कुछ सफेद भी है, जो काफी दुर्लभ हैं। मान्यता है कि जिसे सफेद चूहा दिख जाता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
इस मंदिर में सफेद चूहों को और भी आदर दिया जाता है क्योंकि उन्हें कर्णी माता और उनके बेटों का अवतार माना जाता है। वैसे तो यहां अत्यधिक काले चूहे ही हैं पर बहुत थोड़ी मात्रा में सफेद चूहे भी हैं। माना जाता है जिस किसी श्रद्धालु को सफेद चूहा दिख जाए उसकी मन्नत पूर्ण हो जाती है।आश्चर्यजनक यह है कि ये चूहे बिना किसी को नुकसान पहुंचाए मंदिर परिसर में दौड़ते-भागते और खेलते रहते हैं। वे लोगों के शरीर पर कूदफांद करते हैं, लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। यहां ये इतनी संख्या में हैं कि लोग पांव उठाकर नहीं चल सकते, उन्हें पांव घिसट-घिसटकर चलना पड़ता है, लेकिन मंदिर के बाहर ये कभी नजर ही नहीं आते।
इस मंदिर में सफेद चूहों को और भी आदर दिया जाता है क्योंकि उन्हें कर्णी माता और उनके बेटों का अवतार माना जाता है। वैसे तो यहां अत्यधिक काले चूहे ही हैं पर बहुत थोड़ी मात्रा में सफेद चूहे भी हैं। माना जाता है जिस किसी श्रद्धालु को सफेद चूहा दिख जाए उसकी मन्नत पूर्ण हो जाती है।आश्चर्यजनक यह है कि ये चूहे बिना किसी को नुकसान पहुंचाए मंदिर परिसर में दौड़ते-भागते और खेलते रहते हैं। वे लोगों के शरीर पर कूदफांद करते हैं, लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। यहां ये इतनी संख्या में हैं कि लोग पांव उठाकर नहीं चल सकते, उन्हें पांव घिसट-घिसटकर चलना पड़ता है, लेकिन मंदिर के बाहर ये कभी नजर ही नहीं आते।
9) रामेश्वरम का मंदिर
रामेश्वरम में भगवान श्रीराम ने शिवलिंग की स्थापना की थी। कहा जाता है कि आज भी रामेश्वरम में समुद्र अपने पूरे अदब और संयम के साथ ही रहता है। यहां समुद्र कभी उफान पर नहीं आता है। यहां पर श्रीरामेश्वरमजी का मंदिर 1,000 फुट लंबा है। इसके अलावा यह 650 फुट चौड़ा तथा 125 फुट ऊंचा है। इस मंदिर में प्रधान रूप से एक हाथ से भी कुछ अधिक ऊंची शिवजी की लिंग मूर्ति स्थापित है।
10) केदारनाथ का मंदिर
केदारनाथ मंदिर एक चमत्कारिक मंदिर है। इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि इस पर कभी कोई परेशानी नही आती है। यह हमेशा से जैसा का तैसा खड़ा है। पांडवों द्वारा निर्मित इस मंदिर का शंकराचार्य के बाद राजा भोज ने जीर्णोद्धार करवाया था। जुलाई 2013 में केदारनाथ में जो जलप्रलय हुई थी उसमें लगभग 10,000 लोग मौत की नींद में सो गए थे लेकिन मंदिर का बाल भी बांका नहीं हुआ। आज भी यहां लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।
11) रामसेतु के पत्थर
पूरी दुनिया में एकमात्र रामसेतु का स्थान ऐसा है। जहां के पत्थर पानी में तैरते हैं। यहां स्थित चट्टानों और पत्थरों को बेचने पर रोक लगा रखी गई है फिर भी गाइडों के माध्यम से स्थानीय लोग चोरी-छुपे ये पत्थर बेचते हैं। आजकल ये पत्थर बहुत से संतों और कुछ लोगों के पास देखे जा सकते हैं। ऐसी मान्यता है कि रामसेतु या नलसेतु को बनाने के लिए जिन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था वे पत्थर पानी में फेंकने के बाद समुद्र में नहीं डूबे, बल्कि पानी की सतह पर ही तैरते रहे।
12) कन्याकुमारी मंदिर, दक्षिण भारत:
कन्याकुमारी प्वांइट को इंडिया का सबसे निचला हिस्सा माना जा है। यहां समुद्र तट पर ही कुमारी देवी का मंदिर है। यहां मां पार्वती के कन्या रूप को पूजा जाता है। यह देश में एकमात्र ऐसी जगह है जहां मंदिर में प्रवेश करने के लिए पुरूषों को कमर से ऊपर के क्लॉथ्स उतारने होंगे।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर देवी का विवाह संपन्न न हाे पाने के कारण बचे हुए दाल-चावन बाद में कंकड़-पत्थर बन गए। कहा जाता है इसलिए ही कन्याकुमारी के बीच या रेत में दाल और चावल के रंग-रूप वाले कंकड़ बहुत मिलते हैं। आश्चर्य भरा सवाल तो यह भी है कि ये कंकड़-पत्थर दाल या चावल के आकार जितने ही देखे जा सकते हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य : यदि आप मंदिर दर्शन को गए हैं तो यहां सूर्योदय और सूर्यास्त भी देखें। कन्याकुमारी अपने ‘सनराइज’ दृश्य के लिए काफी प्रसिद्ध है। सुबह हर विश्रामालय की छत पर टूरिस्टों की भारी भीड़ सूरज की अगवानी के लिए जमा हो जाती है। शाम को अरब सागर में डूबते सूरज को देखना भी यादगार होता है। उत्तर की ओर करीब 2-3 किलोमीटर दूर एक सनसेट प्वॉइंट भी यहां है।
कन्याकुमारी अपने सूर्योदय के दृश्य के लिए काफी प्रसिद्ध है। सुबह हर होटल की छत पर पर्यटकों की भारी भीड़ सूरज की अगवानी के लिए जमा हो जाती है। शाम को अरब सागर में डूबते सूरज को देखना भी यादगार होता है। उत्तर की ओर करीब 2-3 किलोमीटर दूर एक सनसेट प्वॉइंट भी है।
13) मेरू रिलीजन स्पॉट, कैलाश पर्वत:
हिमालय पर्वत के उच्चतम श्रंखला में मानसरोवर में यह बहुत पवित्र जगह है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां भगवान महादेव स्वंय विराजमान हैं। यह धरती का केंद्र है। दुनिया के सबसे ऊंचे स्थान पर स्थित कैलाश मानसरोवर के पास ही कैलाश और आगे मेरू पर्वत स्थित हैं। यह संपूर्ण क्षेत्र शिव और देवलोक कहा गया है। रहस्य और चमत्कार से परिपूर्ण इस स्थान की महिमा वेद और पुराणों में भरी पड़ी है।
कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22,068 फुट ऊंचा है तथा हिमालय के उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत में स्थित है। चूंकि तिब्बत चीन के अधीन है अतः कैलाश चीन में आता है, जो चार धर्मों- तिब्बती धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दू का आध्यात्मिक केंद्र है। कैलाश पर्वत की 4 दिशाओं से 4 नदियों का उद्गम हुआ है- ब्रह्मपुत्र, सिंधु, सतलुज व करनाली।
14) तनोट माता का मंदिर, राजस्थान:
तनोट माँ (तन्नोट माँ) का मन्दिर जैसलमेर जिले से लगभग एक सौ तीस कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित हैं । तनोट राय को हिंगलाज माँ का ही एक रूप कहा हैं , हिंगलाज माता जो वर्तमान में बलूचिस्तान जो पाकिस्तान में है , वहाँ स्थापित है ।भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने वि.सं. 828 में तनोट का मंदिर बनवाकर मूर्ति को स्थापित कि थी । इसी बीच भाटी तथा जैसलमेर के पड़ौसी इलाकों के लोग आज भी पूजते आ रहे है । सितम्बर 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हुआ। तनोट पर आक्रमण से पहले शत्रु (पाक) पूर्व में किशनगढ़ से 74 किमी दूर बुइली तक पश्चिम में साधेवाला से शाहगढ़ और उत्तर में अछरी टीबा से 6 किमी दूर तक कब्जा कर चुका था। तनोट तीन दिशाओं से घिरा हुआ था। यदि शत्रु तनोट पर कब्जा कर लेता तो वह रामगढ़ से लेकर शाहगढ़ तक के इलाके पर अपना दावा कर सकता था। अत: तनोट पर अधिकार जमाना दोनों सेनाओं के लिए महत्वपूर्ण बन गया था।
दुश्मन ने तनोट माता के मंदिर के आसपास के क्षेत्र में करीब 3 हजार गोले बरसाएँ पंरतु अधिकांश गोले अपना लक्ष्य चूक गए। अकेले मंदिर को निशाना बनाकर करीब 450 गोले दागे गए परंतु चमत्कारी रूप से एक भी गोला अपने निशाने पर नहीं लगा और मंदिर परिसर में गिरे गोलों में से एक भी नहीं फटा और मंदिर को खरोंच तक नहीं आई।
दुश्मन ने तनोट माता के मंदिर के आसपास के क्षेत्र में करीब 3 हजार गोले बरसाएँ पंरतु अधिकांश गोले अपना लक्ष्य चूक गए। अकेले मंदिर को निशाना बनाकर करीब 450 गोले दागे गए परंतु चमत्कारी रूप से एक भी गोला अपने निशाने पर नहीं लगा और मंदिर परिसर में गिरे गोलों में से एक भी नहीं फटा और मंदिर को खरोंच तक नहीं आई।
सैनिकों ने यह मानकर कि माता अपने साथ है, कम संख्या में होने के बावजूद पूरे आत्मविश्वास के साथ दुश्मन के हमलों का करारा जवाब दिया और उसके सैकड़ों सैनिकों को मार गिराया। दुश्मन सेना भागने को मजबूर हो गई। कहते हैं सैनिकों को माता ने स्वप्न में आकर कहा था कि जब तक तुम मेरे मंदिर के परिसर में हो मैं तुम्हारी रक्षा करूँगी।
15) खजुराहो का मंदिर, मध्यप्रदेश:
आखिर क्या कारण थे कि उस काल के राजा ने सेक्स को समर्पित मंदिरों की एक पूरी श्रृंखला बनवाई? यह रहस्य आज भी बरकरार है। खजुराहो वैसे तो भारत के मध्यप्रदेश प्रांत के छतरपुर जिले में स्थित एक छोटा-सा कस्बा है लेकिन फिर भी भारत में ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा देखे और घूमे जाने वाले पर्यटन स्थलों में अगर कोई दूसरा नाम आता है तो वह है खजुराहो। खजुराहो भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की एक नायाब मिसाल है।
चंदेल शासकों ने इन मंदिरों का निर्माण सन् 900 से 1130 ईसवीं के बीच करवाया था। इतिहास में इन मंदिरों का सबसे पहला जो उल्लेख मिलता है, वह अबू रिहान अल बरुनी (1022 ईसवीं) तथा अरब मुसाफिर इब्न बतूता का है। कला पारखी चंदेल राजाओं ने करीब 84 बेजोड़ व लाजवाब मंदिरों का निर्माण करवाया था, लेकिन उनमें से अभी तक सिर्फ 22 मंदिरों की ही खोज हो पाई है। ये मंदिर शैव, वैष्णव तथा जैन संप्रदायों से संबंधित हैं
16) सोमनाथ मंदिर
सोमनाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिर है जिसकी गिनती 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में होती है। प्राचीनकाल में इसका शिवलिंग हवा में झूलता था, लेकिन आक्रमणकारियों ने इसे तोड़ दिया। माना जाता है कि 24 शिवलिंगों की स्थापना की गई थी उसमें सोमनाथ का शिवलिंग बीचोबीच था। इन शिवलिंगों में मक्का स्थित काबा का शिवलिंग भी शामिल है। इनमें से कुछ शिवलिंग आकाश में स्थित कर्क रेखा के नीचे आते हैं।
गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था। इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। इस स्थान को सबसे रहस्यमय माना जाता है। यदुवंशियों के लिए यह प्रमुख स्थान था। इस मंदिर को अब तक 17 बार नष्ट किया गया है और हर बार इसका पुनर्निर्माण किया गया।
यहीं भगवान श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे, तब ही शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिह्न को हिरण की आंख जानकर धोखे में तीर मारा था, तब ही कृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से वैकुंठ गमन किया। इस स्थान पर बड़ा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है।
यहीं भगवान श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे, तब ही शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिह्न को हिरण की आंख जानकर धोखे में तीर मारा था, तब ही कृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से वैकुंठ गमन किया। इस स्थान पर बड़ा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है।
17) अजंता-एलोरा के मंदिर
अजंता-एलोरा की गुफाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के समीप स्थित हैं। ये गुफाएं बड़ी-बड़ी चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं। इनमें से 29 गुफाएं अजंता में तथा 34 गुफाएं एलोरा में हैं। इन गुफाओं को वर्ल्ड हेरिटेज के रूप में संरक्षित किया गया है। इन्हें राष्ट्रकूट वंश के शासकों द्वारा बनवाया गया था। इन गुफाओं के रहस्य पर आज भी शोध किया जा रहा है। यहां ऋषि-मुनि और भुक्षि गहन तपस्या और ध्यान करते थे।
सह्याद्रि की पहाड़ियों पर स्थित इन 30 गुफाओं में लगभग 5 प्रार्थना भवन और 25 बौद्ध मठ हैं। घोड़े की नाल के आकार में निर्मित ये गुफाएं अत्यंत ही प्राचीन व ऐतिहासिक महत्व की हैं। इनमें 200 ईसा पूर्व से 650 ईसा पश्चात तक के बौद्ध धर्म का चित्रण किया गया है। इन गुफाओं में हिन्दू, जैन और बौद्ध 3 धर्मों के प्रति दर्शाई गई आस्था के त्रिवेणी संगम का प्रभाव देखने को मिलता है। दक्षिण की ओर 12 गुफाएं बौद्ध धर्म (महायान संप्रदाय पर आधारित), मध्य की 17 गुफाएं हिन्दू धर्म और उत्तर की 5 गुफाएं जैन धर्म पर आधारित हैं।
18) शनि शिंगणापुर
महाराष्ट्र का यह गांव पूरे देश में शनि मंदिर के लिए जाना जाता है। इसे भारत का सबसे सुरक्षित गांव माना जाता है। इस गांव में किसी घर में दरवाजा नहीं है और किसी अखबार में इस गांव में चोरी की खबर नहीं छपी। इस गांव में कोई पुलिस चौकी नहीं है और न ही लोग इसकी जरूरत समझते हैं।
यह अहमदनगर से 35 किमी दूर है। इस गांव में कभी कोई अपराध नहीं हुआ और इसे शनिदेव का आशीर्वाद माना जाता है। गांव के लोगों को अपने देवता पर भरोसा है और उन्होंने गांव की रक्षा को उनके भरोसे छोड़ रखा है। इस कारण से गांव के घरों और कारोबारी इमारतों में दरवाजे नहीं है। इस गांव की सबसे हैरानी वाली बात ये है कि यहाँ पर एक पोस्ट ऑफिस और यूको बैंक की एक शाखा है और इनमें भी कोई गेट नहीं है।
इस गांव में बने शनि मंदिर को देखने के लिए रोज 30 से 45,000 श्रद्धालु एकत्रित होते है और गांव के लोग आज भी पानी पीने के लिए कुओं का ही इस्तेमाल करते है। जाहिर है यह कमाल गांव के लोगों के सदव्यवहार से ही मुमकिन हुआ होगा।
19) चमत्कारी हनुमान मंदिर – शाजापुर स्थित बोलाई गांव
आपने बहुत सारे चमत्कारी मंदिरों के बारे में सुना होगा। जहां आपको भगवान की शक्ति दिखाई देती है। मध्य प्रदेश में एक ऐसा चमत्कारी मंदिर कि जहां इंसान तो इस बात को मानता ही है कि यह मंदिर चमत्कारी है। बल्कि उस मंदिर के आगे जब कोई तेज रफ्तार से ट्रेन आती है। वह भी धीमी हो जाती है। मानो ऐसा लगता है कि वह ट्रेन रुक कर उस मंदिर को प्रणाम कर रही हो।
इस तरह का उदाहरण आपको मध्यप्रदेश के शाजापुर स्थित बोलाई गांव में देखने को मिलेगा। यहां पर एक हनुमान जी का मंदिर स्थित है यहां पर तेज रफ्तार से आने वाली ट्रेन भी धीमी हो जाती है। इसके अलावा इस मंदिर से भविष्य में होने वाली घटनाओं के संकेत भी लोगों को पहले से मिल जाते हैं। इस मंदिर को श्री सिद्ध वीर खेड़ापति हनुमान मंदिर के नाम से भी लोग जानते हैं। आप भी इस चमत्कारी मंदिर के दर्शन के लिए जरूर जाएं और श्रद्धा के साथ उनके चमत्कार को भी देखेंगे।
20) अमरनाथ गुफा – हिमालय
जब भी कश्मीर में किसी प्राचीन गुफा की बात होती है जो सबसे पहले नाम आता है अमरनाथ का . लोगों का मानना है कि शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बनता है. ऐसा भी माना जाता है कि अमरनाथ गुफा में एक-एक बूंद पानी नीचें गिरता है और वही धीरे-धीरे बर्फ के रूप में बदल जाता है. हिन्दू धर्म में अमरनाथ को एक पवित्र स्थान के रूप में पूजा जाता है. हर साल लाखों लोग अमरनाथ की यात्रा करने जाते है. इसकी यात्रा चालीस दिनों तक चलती है.
भारत के कोने-कोने से और विदेशों से असंख्य शिव भक्त लगभग 14 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित श्री अमरनाथ की गुफा में प्रकृति के इस चमत्कार के दर्शन करने के लिए अनेकों बाधाएं पार करके भी पहुंचते हैं। श्री अमरनाथ गुफा में स्थित पार्वती पीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि यहां भगवती सती का कंठ भाग गिरा था। कश्मीर घाटी में स्थित पावन श्री अमरनाथ गुफा प्राकृतिक है। यह पावन गुफा लगभग 160 फुट लम्बी, 100 फुट चौड़ी और काफी ऊंची है। कश्मीर में वैसे तो 45 शिव धाम, 60 विष्णु धाम, 3 ब्रह्मा धाम, 22 शक्ति धाम, 700 नाग धाम तथा असंख्य तीर्थ हैं पर श्री अमरनाथ धाम का सबसे अधिक महत्व है।
मूर्तियों का दूध पीना
हालाकि ये किसी एक मंदिर विशेष की बात नहीं है, पर कहा जाता है कि 1 सितंबर 1995 में और 2006 दुनियाभर में मूर्तियों ने दूध पिया था। भारत सहित नेपाल, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि में भी इस चमत्कार के दौरान मूर्तियों के कई किलो दूध पीने का दावा किया गया। हालांकि इसके पीछे वैज्ञानिकों ने तर्क दिए थे कि शायद गर्मी के कारण मूर्तियों की नमी समाप्त हो गई हो और इस वजह से ऐसे संभव हुआ हो। हालांकि काफी जांच की गई कि आखिर इतना सारा दूध कहां गया लेकिन आज तक यह रहस्य नहीं खुला है।
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