**परम गुरु हजूर साहबजी महाराज
- रोजाना वाकिआत-
कल से आगे-
रात के वक्त आदि हिंदू भाइयों की एक अपील पढी। यह अपील हिंदी जबान में छपी है और बादशाह सलामत व गवर्नमेंटहाय- आलिया हिंद व इंगलिस्तान के नाम है। इसमें पूना के आपसी समझौते के मुताबिक सख्त ऐतराजात किये गए हैं। डिस्ट्रिक्ट आदि हिंदू सभा कानपुर की जानिब से यह कॉपी मेरे पास आई है । पृष्ठ 75 पर लिखा है कि आदि हिंदू भाइयों आदि धर्म "संत मत" है।
गालिबन (संभवत:) इसी वजह से कानपुर सभा ने मुझे याद किया है । यह कहना तो बड़ी बात है कि उनका आदि धर्म संत मत है लेकिन यह जरूर सच है कि संत मत ही से इन बेचारे भाई दुखियां भाइयों को अव्वल अव्वल गले से लगाया और समान अधिकार दिये। मगर मुश्किल तो यह है कि उनसे उनमें से बहुत से अब महाशय कहलाने और मंदिरों में मूर्तियों के दर्शन की प्यास से बेताब है ।।
मेरी तरफ से आधे हिंदू सभा कानपुर को यही जवाब है कि राधास्वामी मत का दरवाजा उनके लिए हर वक्त खुला है। राधास्वामी मत अनुयायियों ने आप लोगों की खातिर बीते 70 सालों में जात पाँत के कैदी के घमंडी हिंदू भाइयों के हाथों से जो जो जो जुल्म उठाये उनका तहरीर मे लाना दिरघ प्रक्रिया है । लेकिन जो कुछ उन्होने किया जड़ता की वजह से किया । हम उन्हें उनकी जहालत की सजा में नुकसान पहुंचाना पसंद ना करेंगे । बुद्धि नष्ट हो जाने पर इंसान बेतुकी कार्यवाहीयाँ ही करता है। लेकिन अब दया से सूरज रोशन हो रहा है जो हिंदू भाइयों को आम तौर समझ आ रही है । अपने स्वयं को उनसे अलहदा करके उन्हें खत्म करने की तैयारियां मत करो।
बल्कि बदी का एवज नेकी देकर दुनिया को साबित करो कि तुम्हारे दिल नामधारी ब्राह्मणों से ज्यादा पार्क और नाम निहाद क्षत्रियों से ज्यादा दिलेर और नाम निहाद वेश्यों से ज्यादा अमीर है । अगर तुम सचमुच संत मत अनुयायी हो तो निस्सहाय व विवश हिंदुओं की मदद करके दिखलाओ की आड़े वक्त संतमत अनुयाई कैसे दीनों की सहायता करते हैं ।
और यह भी याद रखो कि हरचंद आज तुम्हें हिंदुओं से अलग हो जाने में अपना फायदा नजर आता है लेकिन मौजूदा हालत ज्यादा अच्छा तक कायम नहीं रह सकती? तुम्हारी संगत को अभी अपने पांव पर खड़ा होने में वक्त लगेगा। अगर आज तुमने हिंदुओं से अलहदगी अख्तियार करके उनका नाश करवा दिया तो तब तुम्हारे नाश होने के दिन आ जाएंगे।
तुम पूना के फैसले को मंजूर कर लो और इस दरमियान में अपना कदम आगे बढ़ाओ। हिंदू और तुम मिलकर मुल्क का और एक दूसरे का ज्यादा भला कर सकते हैं बमुकाबले अलग-अलग काम करने के तुमने दुख के दिन लाजवाब सब व दृढ़ता के साथ काटे।
इस मौके पर धीरे से काम लो। राधास्वामी मत तुम्हें यकीन दिलाता है तुम कभी अछूत नहीं थे। तुम्हारे अंदर से श्वपच ऋषि पैदा हुए, परम संत कबीर साहब पैदा हुए ,भगत रैदास पैदा हुए । तुम्हारे दिलों के अंदर दीन, गरीबी व भक्ति के अंग को खूब बढ़-चढ़कर मौजूद हैं। पॉलिटिकल लहर की लपेट में आकर इन दुख के दिनों के सहाई अंगो को नष्ट न होने दो। जो इस वक्त मिलता है ले लो।
10 बरस बाद जितने और के लिए अधिकार पैदा कर लो वह तलब करना तुम यकीन करो कि 10 बरस बाद जितने और के लिये अधिकार पैदा कर लो, वह तलब करना। तुम यकीन करो कि तुम 10 बरस बाद तुम अब से बेहतर और ज्यादा मजबूत होगें। फिर तुम्हें हिंदुओं से आशंका किस बात का?
काश मेरी यह सलाह आदि हिंदू भाइयों को पसंद आवे! मुझे पॉलिटिकल मामलात से कभी दिलचस्पी नहीं हुई और ना ही मालिक ने मुझे उनकी समझ दी है ।
लेकिन यह कि एक और एक दो होते हैं और एक से दो ज्यादा होते हैं मेरे जैसा पॉलिटिकल मामलात से अपरिचित भी समझ सकता है। घर की झाड़ू की तीलियाँ तक उपदेश करती है कि उनके एक साथ मिलकर जाने से घर का गर्दोगुबार दूर किया जा सकता है।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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**परम गुरु हुजूर महाराज
प्रेम पत्र- भाग-1-
कल से आगे-(9)
अब मालूम होगा कि त्रिकुटी को ब्रह्म पद कहते हैं और सहसदलकँवल के धनी यानी मालिक को ईश्वर कहते हैं । और इस स्थान से सुरत यानी जीव की धार और मन और माया की धार जुदा-जुदा प्रगट होकर नीचे उतरी और तीन लोक की रचना हुई।
जिन मतों की रसाई यहाँ तक हुई (और असल में सब मत इसी स्थान पर खत्म हो गये) उनको इसके ऊपर का हाल मालूम ना हुआ।
इस वास्ते उन्होंने ईश्वर और जीव और माया (यानी परमाणु को अनादि कहा, पर संत मत के मुआफिक माया और उसके परमाणु की आदि त्रिकुटी से हुई और सुरत सत्तपुरुष राधास्वामी के स्थान से आई और ईश्वर भी यारी निरंजन सत्य पुरुष से प्रगट हुआ। फिर किस तरह अनादि हो सकते हैं, क्योंकि सत्तलोक और उसके ऊपर के स्थानों में इनका अस्तित्व निशान भी नहीं है।।
(10) सुरत का बीजा आद्या मार्फत एक ही बार सतलोक से आया, अब बार-बार सुरतें वहां से नहीं आती है ।
(11) निरंजन यानी काल अंश भी एक ही दफा वहाँ से आया, अब वह उलट कर वहाँ नही जा सकता है।।
(12) संतो के मत के मुआफिक प्रलय के वक्त त्रिकुटी का स्थान भी सिमट जावेगा और उस वक्त ईश्वर और जीव यानी सुरत और माया ( मय अपने मसाले तीन गुण और पाँच तत्व के) दसवें द्वार में समा जाएगी, और उनका रुप, जो उस मुकाम के नीचे जाहिर हुआ है, अपने-अपने भंडार में लय हो जावेगा।।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -
【संसार चक्र】
कल से आगे:-
तुलसी बाबा- मुझसे अब गृहस्थी ना हो सकेगी।
राजा साहब- महाराज आपको गृहस्थी करने के लिए कौन कहता है ? एक दूसरे का दुख सुख में साथ देना एक बात है, मोह जाल में पड़ना दूसरी बात है।
तुलसी बाबा -मेरा एक भाई भी था जो मुद्दत हुई पुलिस में भर्ती होकर कुरुक्षेत्र चला गया था।
दुलारेलाल -क्या उसकी कोई औलाद भी थी?
तुलसी बाबा -चार छः महीने का एक लड़का था ।
इंदुमती-( दुलारेलाल से) हैं? कहींवही ना हो।
दुलारेलाल- बाबा जी शायद हमने तुम्हारे उस भाई और भतीजे को भी देखा है। हम यहाँ कुरुक्षेत्र तीर्थ यात्रा करके आये थे। ( राजासाहब से) श्रीमान जी! यह तो समुंदर की लहरों वाला ही हाल दिखाई देता है।
( तुलसी बाबा सोच में पड़ जाता है)
राजासाहब- यह संसार बड़ा विचित्र है। न इन चर्मेंद्रियों से इसका असली रूप नजर आ सकता है , न इस स्थूल बुद्धि से इसका तत्व समझ में आ सकता है।
दुलारेलाल- श्री महाराज! मैं आपसे क्या कहूं, कहते लज्जा भी आती है , हैरानी भी होती है।
राजा साहब -नहीं-नहीं फरमाइए लज्जा की क्या बात है।
दुलारेलाल बात यह है कि एक वक्त था कि हमारे यहां बच्चा पैदा हुआ और हमें नाच रंग की सूझी, वह बच्चा बीमार हुआ तो हमें खैरात की सूझी,बच्चा मर गया तो तीर्थयात्रा की सूझी, तीर्थयात्रा को कुरुक्षेत्र गये, वहां ठोकर लगी तो ज्ञान की सूझी, यहाँ आए तो बरामदे में बैठने की सूझी, दीवाने से हंसी की तो दरिया के किनारे लंबी सैर को करने की सूझी, सैर की तो कथा सुनने की सूझी, कथा सुनी तो हृदय की शुद्धता की सूझी, अब श्रीमानों से मुलाकात हुई तो आगे बढ़ने की सूझ रही है।
तुलसी बाबा- बड़े संस्कारी हो।
दुलारेलाल- समुंद्र की लहरें ठुकराते ठुकराते यहां तक ले आई हैं, अब इतनी कृपा और हो तक पहुंच जायँ।
राजा साहब- कहिये तुलसी बाबा ,महाराज की शांति कराओ ।
तुलसी बाबा- मुझे तो जो कुछ आता है महाराज कल सुन चुके हैं ,अब आप ही कुछ सुनाइये।
राजा साहब- आपने कल यह सत्य कहा था कि मन, इंद्रियाँ और बुद्धि आत्मा परमात्मा के संबंध में कुछ नहीं कह सकती। अब महाराज का प्रश्न है- संसार सत्य है या असत्य ? मैं कहता हूं साधारण मनुष्य को इस बारे में कुछ भी कहने या जानने का अधिकार नहीं है। संसार तो संसार है, न कम न ज्यादा। जो चीज हमें अच्छी नहीं लगती, हम उसे बुरा ठहरा देते हैं हालांकि वह बेचारी तो जो कुछ है सो है। दूसरे आदमी को या दूसरी हालत में अपने ही को अच्छी लग सकती है। बात यह है कि मनुष्य चाहता है संसार पर अपना राज चलाना। वह चाहता है कि संसार का सब कारखाना उसकी मर्जी के मुआफिक चलें और होता नहीं है। सो वह कभी निराश होता है और कभी संसार को नाशमान् कभी धोखेबाज, कभी मिथ्या कहता है और कभी आत्मा परमात्मा में दोस्त निकालता है। अगर मनुष्य अपनी मर्जी ना अडाये तो न यह हालतें पैदा हो ,न उल्टी-सीधी बातें सुनने में आवें।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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