Thursday, July 2, 2020

संसार चक्र नाटक





**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

【 संसार चक्र 】-

कल से आगे-


इंदुमति-धन्यवाद!

( कुछ दूर इधर उधर बचाव करके चोर गठरी फेंक कर भाग जाता है ।दुलारेलाल गठरी लेकर वापिस आता है और साथियों से मिल जाता है।)   

पहला शख्स -वह आ गये राजा साहब।। 

  दूसरा शख्स-  वाह वा वाह, राजा जी! आपने तो आज खूब धर्म कमाया, राजा हों तो ऐसे हों।।           

बूढा म्हाराज! थारी लाख बरस की उमर हो। रानी जी की लाख बरस की उमर हो। तम्हने बड़ा अपकार किया है। मैं लुट गया था। ना घर का रह्या था ना घाट का।

 ( गठरी अपने हाथ में लेकर इम्तिहान करता है और मुस्कुरा कर शुकराना अदा करते हुए कहता है।) 

                 

बूढा- सभ चीजाँ पूरी हैं कोई नुकसान नहीं हुआ, थारी जै हो ।
पहला शख्स-बुड्ढे! अब संभल कर चलना, बार-बार तुम्हारे लिए कौन दौडेगा?  देखो राजा जी और रानी जी को आगे आगे चलने दो , तू बीच में हो जा और हम पीछे पीछे चलते हैं।

 दुलारेलाल-(इंदुमती से) यह कौन है?

 इंदुमती यात्री है, जब आप चोर के पीछे भागे थे तो हमसे आ मिले थे और हमारी रक्षा के लिए ठहर गए थे।

 दुलारेलाल-अच्छा अब चलो।

(सब रवाना होते है।कुछ दूर चल कर)

                            

बूढि-जी मेरे ते तो इबजा चल्या नीं जाँदा,कोई निगीच का रास्ता नहीं है ?

एक साथी है - नजदीक का रास्ता है। यह दाहिनें हाथ का रास्ता सीधा रास्ता है ।

 दूसरा शख्स-  महाराज जी ! चलो न इधर ही से निकल चले। जहाँ इस बूढे पर इतना एहसान किया जरा सा और भी सही।

 बूढा-(दुलारेलाल से) किस मुँह से थारी बड्याई करूँ, साचछात ईशर हो ईशर।

(सब लोग दायें मुड जाते हैं।

कभी कोई आगे होया है कभी कोई, मगर कुछ दूर जा कर दुलारेलाल, इंदुमती और गोविंद आगे आगे और बूढा और दोनों अजनबी पीछे पीछे चलते हैं ।)

बूढा-वाह साम्हने क्या है उन्ह पेड्याँ माँ?

 एक शख्स- वही कुंड का किनारा है।

दूसरा शख्स-  तब तो आ पहुंचे।

 एक शख्स- महाराज जी ! देखा आपने पेड़ों का झुंड?  वही कुण्ड है ।

दूसरा शख्स रानी जी देखा आपने?

क्रमशः                   

   🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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