*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
रोजाना वाकिआत-
1 नवंबर 1932 -मंगलवार:- एक ड्रामा लिखना शुरू किया है। उसमें दीन व दुनिया का मुकाबला करने की कोशिश की जाएगी। एक मुस्लिम अखबार देखने से मालूम हुआ हज के तीर्थयात्रियों की तादाद में जबरदस्त कमी हो गई है । पिछले समय में हिंदुस्तानी हज यात्रियों की तादाद 48000 प्रति वर्ष तक पहुंच गई थी लेकिन अब घटकर 8000 रह गई है। इससे समझ में आ सकता है कि हिंदुस्तान में निर्धनता किस कदर तरक्की की है।। मगर यह निर्धनता कहां से आ गई? इस जमाने की तहजीब की मशीन का कौन सा पुर्जा टूट गया जिससे यह सब तबाही हिन्दुस्तान के सर पर आ रही है? इन सवालों का असली जवाब तो विद्वान ही दे सकते हैं लेकिन मेरी तुच्छ राय यह है कि यह मुसीबत आकस्मिक क्या इत्तेफाकिया तौर से जाहिर नहीं हुई है। 40 ,50 बरस के अर्सा से बवायस(बायस का बहुवचन, कई कारण) काम कर रहे थे।
अब उनका खराब नतीजा निकलना शुरू हुआ है। मुल्क हिंदुस्तान में 85% लोग काश्तकार है। अर्सादराज से यही लोग मुल्क की दौलत पैदा करने वाले और मुल्क के अंदर दौलत तक्सीम करने वाले थे। और हिन्दुस्तान से कच्चा अन्न रूई, गेहूँ वगैरह की बाहरी दुनियाँ में माँग रहने की वजह से काम ठीक चलता रहा।
लेकिन इन सालों में मगरिबी तहजीब के प्रभाव में अहले हिन्द की जरूरियाते जिंदगी में दिन ब दिन इजाफा होता रहा। मगर चूँकि अन्न की कीमत रफ्ता रफ्ता बढ गई इसलिए भारत वालों को जरूरियात की बढोतरी की चुभन महसूस नही हुई। क्योंकि कच्चा अन्न की कीमत बढ़ने के काश्तकारान की आमदनी में इजाफा हो गया और काश्तकारान ज्यादा लगान देकर गवर्नमेंट का और अपनी जरुरियात पर ज्यादा रुपया खर्च करके बाकी आबादी का बोझ हल्का करते रहे।
लेकिन गत महायुद्ध के बाद बाहर दुनिया में कच्चा अन्न की पैदावार की जानिब खास तवज्जुह आकृष्ट की जिसका नतीजा यह हुआ कि हिंदुस्तानी रुई,गेहूं वगैरह के लिए कोई माँग न रही ।और उन चीजों के और भी दूसरी पैदावारो के भाव गिर गये। क्रमशः।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -
【संसार चक्र】- कल से आगे:-
पंडित जी- ऐरावत के।। दीवान साहब-( चिढ कर) और पंडित जी ! आप किसके अवतार हैं?
पंडित जी-( झपट कर) बज्र के।।
राजा दुलारेलाल और मुसाहिबीन हंस पड़ते हैं लेकिन दीवान साहब खिसयाने से हो जाते हैं।)
एक मुसाहिब- पंडित जी! अब कुछ दिलबस्तगी की बात होनी चाहिये। हम लोगों का धर्म अपने महाराज को प्रसन्नचित्त रखना है ।। पंडित जी- इससे किसको इंकार है ? संसार मिथ्या ही है ।।
राजा दुलारेलाल -(एक मुसाहिब को इशारा करके) हाँ बुलाओ -(फिर पंडित जी की तरफ मुखातिब होकर) तो संसार मिथ्या ही है और उसके सब लोग भी मिथ्या ही हैं।।
(इतने में कुछ नायिकाएँ गाने बजाने के सामान के साथ दाखिल होती है और नाचने लगती है। थोड़ी देर बाद राजा दुलारेलाल एक नायिका से कहते हैं )
राज दुलारेलाल - कुछ गाओगे भी या यूं ही धरती पीटोगे?
( नायिका गाना शुरू करती है )
बागों में आई बहार, बहार मेरे प्यारे, बागों में आई बहार। मेघन की घनघोर घटाएं छाय रही चहुँ ओर। रिमझिम रिमझिम बरखा होवे, हरखे दादुर मोर । बागों में आई बहार, बहार मेरे प्यारे, बागों में आई बहार।।।
राजा दुलारेलाल-( दूसरी नायिका से) कुछ बेहतर गाकर सुनाओ ।।
(दूसरी नायिका गाती है )
गुलशन में आई बहार, बहार मेरे प्यारे, गुलशन में आई बहार। बेला खिला और खिली चमेली, खिले नारंगी अनार। कोयल बोले पपीहा बोले, भँवर करें गुजांर। गुलशन में आई बहार, बहार मेरे प्यारे, गुलशन में आई बहार ।।।
राजा दुलारेलाल-( तीसरी नायका से)
इससे बढ़कर गा सकती हो?
( तीसरी नायिका गाती है )
मेरे जोबन पर आई बहार, बाहर मेरे प्यारे, जोबना पर आई बहार। इंद्रपुरी के दुलारे राजा, जिनकी बड़ी सरकार। प्रेम मगन होय नाचन लागे, देखे नर और नार। मेरे जोबन पै आई बाहर, बहार मेरे प्यारे जोबना पर आई बहार।। ( सिवाय पंडित जी के सब लोग खिलखिला कर हंसने लगते हैं और आपे से बाहर हो जाते हैं)
एक मुशाहिब- वाह! गजब कर दिया, फिर कहो, फिर कहो,( नायिका फिर गाती है और राजादुलारेलाल का हाथ पकड़ कर उठा लेती है। राजादुलारे लाल हालते मस्ती में खड़े हो कर बेसाख्ता गाते हैं।)
राजा दुलारेलाल- (गाकर) क्या पंडित जी अब भी कहोगे मिथ्या है संसार?
पंडित जी-( दबी जबान से ) जो मिथ्या सो मिथ्या ही है, महापुरुषों के वाक्य कभी व्यर्थ के नहीं होते। (थोड़ी देर तक राजा दुलारेलाल नाचते है और पंडित जी आंखें बंद करके अपना वक्त काटते हैं । इतने में एक बाँदी दाखिल होती है।)
बाँदी- श्री महाराज! आप जश्न मना रहे हैं, घर में राजकुमार को जोर से माता निकल आई है। और महारानी जी अति व्याकुल हो रही है? (बाँदी की बात सुनकर सब लोग सहम जाते हैं और गाना बजाना बंद हो जाता है) क्रमशः-
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे-( 3 )
कुछ अरसे के पीछे सच्चे योगियों ने अभ्यास मुद्राओं का जारी किया।
यह मुद्राएं पाँच है- इनमें से 2 मुद्राओं का अभ्यास अंतर में - एक दृष्टि का साधन और दूसरा शब्द का श्रवण - है । इन मुद्राओं की मदद से भी अभ्यासी अंतर में ऊँचे स्थान पर मन और दृष्टि को जमा कर पहुंचे और वहां शब्द का रूप लेकर समाधिस्थित हुए ।। (4) सिवाय प्राणायाम के योगी और योगेश्वर ज्ञानियों ने पांच उपासना मुकर्रर करी -
पहले गणेश जी की( जिनका बासा मूलाधार चक्र यानी गुदा चक्र में है), दूसरी विष्णु महाराज की( जिनका भाषा नाभि चक्र में है), तीसरी शिव की (जिनका बासा हृदय चक्र में है), चौथी आत्मा यानी शक्ति की (जिसका बासा कंठ चक्र में है), और पांचवी परमात्मा की (जिसका मुकाम छठे चक्र में है ),और योगी ज्ञानियों ने इस पद को सूरज ब्रह्म भी कहा है।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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