*राधास्वामी!! 04-02-2021- आज शाम सतसँग में पढे गये पाठ:-
(1) भोग बासना छोड पियारे। इसमें क्या फल पावेगा।।-
(राधास्वामी सरन धार दृढ मन में। भौजल पार सिधारेगा।।
(प्रेमबानी-4-शब्द-14-पृ.सं.100-101)
(2) क्यों सोच करे मन मेरे ऋतु आई बसंत।।टेक।।
आलस तजो प्रेम रँग राचो साज सजो मनभावन कंत।
मूरखता बस उमर गवाँई मनमुख होय दुख सहे अनन्त।।-
(सतगुरु सरन गही मैं जब से सीख सुनी मैं सतगुरु संत।
सहज सहज मेरी बुधि बदलानी श्रद्धा आस की धरी धरंत।।
(प्रेमबिलास-शब्द-137-पृ.सं.201,202)
(यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
04- 02 2021-आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:-( 143)- अब जरा इस शब्द का अर्थ भी देखें। यह आरती का शब्द है जिसे सत्संगी अंतर्मुख खोकर पढ़ते और सुनते हैं और जब ऐसे शब्दों का पाठ होता है तो अपने मन में वैसे ही भाव उठाते हैं जिनका शब्द में वर्णन हो। संत सतगुरु के चरणों में तो थोड़े ही सत्संगियों को रहने का अवसर मिलता है। अधिकतर सत्संगी दूर स्थानों में रहते हुए अपने तौर पर इन शब्दों का नित्यप्रति पाठ करते हैं। इस शब्द में यह वर्णन हुआ है कि कोई प्रेमी जन आरती करने की इच्छा करता है और कहता है कि मैं गुरु की शरण सँभाल कर आरती करूँगा क्योंकि अपने बल से आरती करना अर्थात् अंतर्मुख चित्तवृत्ति उनके चरणों में जोड़ना अत्यंत कठिन काम है । प्रेमीजन कहता है कि मैं उनकी महिमा के गीत गाऊँगा और उनकी नीच सेवाएँ करूँगा। उनके चरणों में प्रेम बढाऊँगा। और सदैव चित्त उनके चरणों में जोड़ें रहूँगा। और किसी दूसरी वस्तु की प्रीति हृदय में न आने दूँगा, और जब दया से अंतर में दिव्य स्वरुप प्रकट होगा तो दिन-रात दर्शन का आनंद लूँगा। और फिर सुरत की धार को, जो अब बहिर्मुख होकर तन और इन्द्रियों में फैल रही है, समेट कर आकाश मार्ग की ओर प्रेरित करूँगा और अपने कुटुंब अर्थात इंद्रियों को अंतर्मुख करके गुरु के चरणों में जोड़ूँगा। और सुरत को अपने नयन-कमल में एकत्र करूँगा (ज्ञानेंद्रियों तथा कर्मेंद्रियों की धारें ही सुरत का नयन-कमल में जमाना सहज हो जाता है) और संसार की चाल के अनुसार थाली के अंदर घी की ज्योति जगाकर आरती करने के स्थान में मैं दिव्य ज्योति अर्थात् घट का दीपक प्रकाशित करूँगा और इस प्रकार राधास्वामी दयाल की आरती करूँगा। कहिए इस प्रेम भरे शब्द में क्या आक्षेप करने के योग्य बात है और कहाँ वह विषय वर्णित है जो आक्षेपक महाशय के शब्दों में लिखा गया है? 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा परम गुरु हुजूर साहब जी महाराज!**
[2/5, 04:24] +91 97176 60451: **राधास्वामी!! 05-02-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:- (1) गुरु सोई जो शब्द सनेही। शब्द बिना दूसर नहि सेई।। दर्शन करे बचन पुनि सुने। फिर सुन सुन नित मन में गुने।।-(जब सतगुरु प्रसन्न होय, देयँ नाम का दान। दीन होय हिरदे धरे, करे नाम पहिचान।।) (सारबचन-शब्द पहला-पृ.स.257,258) (2) सुनो मन घट में गुरु बानी।।टेक।। समझ सतसँग के बचन अमोल। प्रीति गुरु चरनन में आनी।।-(मेहर से दया सतपुर बिसराम। मिले गुरु राधास्वामी महा दानी।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-49-पृ.सं.400,401) 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज -भाग- 1- कल से आगे:- (22)-" सत्संग के उपदेश" से 'गुरु गोविंद सिंह साहब के जीवन चरित्र में से एक वर्क' नामक बचन पढ़ा गया। इस बचन में लिखा हुआ है कि " इस तरह पाँच सरदारों को चुनकर उनकी कमांड में संगत को संगठित करके गुरु गोविंदसिंह ने तमाम सिक्ख जमाअत को खालसा फौज में बदल दिया और संगत को बर्बादी और मौत से बचा लिया।" हुजूर मेहताजी महाराज ने इस बचन पर अपने विचार प्रकट करते हुए फरमाया कि आप लोगों ने यह वचन सुन कर यह महसूस किया होगा कि किस तरह सिक्ख जमाअत पर जबरदस्त खतरा और तबाही आने पर गुरु साहब ने लोगों की कुर्बानियाँ तलब की और सच्चे सरदार चुन कर कुल जमाअत को सुरक्षित और सुव्यवस्थित कर दिया। ठीक ऐसा ही वक्त हमारे संगत के सामने हैं। इस वक्त तुर्कों या किन्ही और कौमो का जुल्म और सितम नहीं है इसलिए हमको तलवार उठाने की जरूरत नहीं है, लेकिन संगत को और मुल्क पर आर्थिक संकट आ रहा है। रोटी और रोजगार का सवाल महत्वपूर्ण और मुश्किल होता जा रहा है। जो जातियाँ आगे बढ़कर परस्परिक सहयोग से और पेश्तर ही से इस खतरे का मुकाबला और निराश न करेंगी, वह तबाही का शिकार हो जावेंगी। इसी वजह से राधास्वामी संगत को भविष्य में बचाने के लिए यह आर्थिक और औद्योगिक प्रोग्राम आपके सामने रक्खा गया है। गुरु गोविंदसिंह जी ने तो सिर्फ पांच सरदार ही तलब किये थे लेकिन इस समय 5000 ऐसे सरदारों की जरूरत है जो मैदाने अमल में मर्दानावार आगे बढ़ कर इंडस्ट्रीज और फरोक्त के कामों को अपने हाथों में ले और उस प्रोग्राम को पूरा करके और अपनी संगत के लिए रोजी व रोजगार का इंतजाम करके संगत को तबाही और बर्बादी के खतरे से बचायें। गुरु गोविंदसिंह जी ने पाँचों जाँबाज सिक्खों को इस तरह से चुन करके कैंप के बाहर जलसे में लाकर खड़ा कर दिया और सबके सामने उन से मुखातिब हो कर फरमाया कि गुरु नानक के वक्त सिर्फ एक यानी गुरु अंगद ही उनके शिष्य निकले थे लेकिन अब मेरे जमाने में पाँच सिक्ख निकले हैं। ये लोग मत नई बुनियाद कायम करेंगे और यह सच्चा मजहब चारों तरफ फैलेगा। इस बचन का हवाला देते हुए हुजूर ने फरमाया कि हमारी संगत भी दुनियाँ में महत्वपूर्ण सेवायें करने के लिए चुनी जा चुकी है, इसलिए इस समय जो भी जाँबाज सेल्समैन व इंडस्ट्रीज में हिस्सा लेने वाले व्यक्ति, जो मौजूदा जमाने के बहादुर सिपाही है, कुर्बानी देने के लिए आगे बढ़ेंगे उनका दर्जा हरगिज उन पाँच प्यारों से कम न होगा। ये बहादुर लोग आइंदा सतसंग नेशन के मशाल बरदार (मशाल ले कर चलने वाले) होंगे और मालिक उनको इस सेवा का जबरदस्त फल देगा। क्या आप साहबान इस स्पर्द्धनीय दर्जै को हासिल करना चाहते हैं? अगर हिम्मत व हैसियत है तो हाथ उठाइए। ( तमाम प्रेमी भाइयों व बहिनों ने अपने हाथ ऊँचे कर दिये।) क्रमशः 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-[ भगवद् गीता के उपदेश]- कल से आगे:- जो काम बड़े आदमी करते हैं वह दूसरे भी करने लगते हैं क्योंकि साधारण लोग बड़े आदमियों के पीछे पीछे ही चलते हैं। हे अर्जुन! तीन लोक में ऐसा कौन काम है जो मुझे करना लाजिमी हो या ऐसी कौन सी वस्तु है जिसके हासिल करने के लिए मुझे कोशिश करना वाजिब है लेकिन तो भी मैं कर्म करता हूँ, क्योंकि मैं जानता हूँ कि अगर मैं सुस्ती छोड़ कर कर्म में न बर्तू तो मेरी देखा देखी मेरे आस-पास वाले सभी हाथ पर हाथ धरकर बैठ जायंगे और नतीजा यह होगा कि जल्द ही तीन लोक नष्ट हो जायंगे। दुनिया में वर्ण नष्ट होकर प्रजा का खात्मा हो जाएगा और इसके लिए जिम्मेदार मैं ठहरूँगा। जैसे अज्ञानी आसक्त यानी बधुँआ होकर कर्म करते हैं ऐसे ही ज्ञानी बिना प्रयोजन या ताल्लुक के और सिर्फ संसार की भलाई के निमित्त कर्म करते हैं। 【25】. क्रमशः . 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1-( 50)-[ राधास्वामी अथवा संत मंत की निंदा का सबब और निंदको का हाल]-(1)- मालूम होवे कि संत अथवा राधास्वामी मत में (१)- केवल प्रेम का मार्ग है, और (२)- इस मत में अभ्यास अंतर के अंतर में यानी निज घट में किया जाता है, और (३)- बाहर सिवाय सतगुरु या साध के सत्संग और साध और प्रेमी जन की सेवा के और कोई रस्म या किसी किस्म का बर्ताव और ब्योहार जारी नहीं है, और (४)- जो अभ्यास कि इस मत में कराया जाता है वह मन और रूह यानी सुरत के साथ किया जाता है, और (५)- इष्ट और निशाना सच्चे और कुल मालिक राधास्वामी दयाल के चरणों का ऊँचे से ऊँचे देश में बाँध कर और शब्द की डोरी( जिसकी धुन घट घट में हर दम और हर वक्त हो रही है) पकड़ कर मन और सुरत को चढ़ाया जाता है, ताकि महा निर्मल और निर्माया परम चैतन्य के देश में पहुँच कर सुरत अपने सच्चे माता पिता राधास्वामी दयाल के चरणों का दर्शन पाकर अमर और अजर आनंद को प्राप्त होवे और काल और माया के जाल और कष्ट और क्लेश और जन्म मरण के दुख सुख से पूरी और सच्ची रिहाई पावे । क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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