Saturday, February 13, 2021

सतसंग शाम 13/02 RS

 **राधास्वामी!!-13-02-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                    

 (1) सुरतिया घट में आनँद पाय। निरख गुरु भक्ति रीत नई।।-(प्रेम रंग रहे सुरत रँगीली। राधास्वामी सरन पई।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-5-पृ.सं.107,108) 

                                           

  (2) गुरु की सरन सम्हालो। औसर न बार बारी।।टेक।। झूठी है सब यह आसा।नाहक़ सहो तरासा। अब भी धरो दिलासा। सुन लो अरज हमारी।।-(सतसंग रीति धारो। संशय सभी बिसारो। हिम्मत जरा सँभारो। राधास्वामी ओट धारी।।) (प्रेमबिलास-शब्द-5-पृ.सं.5,6,7)                          

  (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा- कल से आगे।     

            

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 13-02 -2021 आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:-( 154)- प्रश्न- आक्षेपक कहता है कि यहाँ 'जन्म' शब्द प्रयुक्त हुआ है । जन्म का अर्थ मंजिलें कैसे लिया जा सकता है?                                                                           

उत्तर-उससे कहें कि पहले अपनी धर्मपुस्तकें पढ़े और फिर आक्षेप करें। देखो 'द्विज' शब्द का अर्थ द्विजन्मा है- क्या द्विज सचमुच दो बार माता के गर्भ से जन्म लेते हैं? मनुस्मृति के दूसरे अध्याय के श्लोक नंबर 169 में कहा है कि वेद ने ब्राह्मण के तीन जन्म लिखे हैं- पहला जन्म माता से, दूसरा जनेऊ होने से, तीसरा यज्ञ करने से ( पृष्ठ 50 उर्दू अनुवाद पंडित कृपाराम शर्मा जगराँवी रचित)। यदि जन्म शब्द का अर्थ मंजिल नहीं है तो क्या ब्राह्मण यज्ञोपवीत और यज्ञ से उत्पन्न होते हैं? श्लोक नंबर 170 और 171 के अर्थ इस विषय को और भी स्पष्ट कर देते हैं।

कहा है-"तिस में जनेऊ होने से जो जन्मा होता है उसमें सावित्री माता है आचार्य पिता है (170)। वेद के पढ़ाने से आचार्य पिता (लिजिये आक्षेपक महाशय के विश्वास के अनुसार स्त्री(बालक की माता) के लिए एक और पति हो गया (देखो दफा १५२))। कहलाता है जब तक जनेऊ नहीं होता तब तक आदमी का अधिकार किसी द्विजो के काम में नहीं होता क्योंकि जनेऊ बगैर हर शख्स शुद्र है ( 171)"।  यदि यह उत्तर प्रयाप्त न हो तो उससे कहे कि ऐतरेय उपनिषद का अवलोकन करे। इस उपनिषद के दूसरे अध्याय के पहले खंड में 3 जन्मों का सविस्तार वर्णन है।

पंडित राजारामजी ने इस खंड का अनुवाद करते हुए अंत में निम्नांकित वाक्य लिखे हैं:-" मनुष्य के जब तीन जन्म- पिता के शरीर से माता के शरीर में आना, और माता के शरीर से लोक में आना, और इस लोक से दूसरे जन्म में जाना- सुधर जाते हैं, तो वह अपने परम उद्देश्य को पूरा कर लेता है"।

 कहिये अब तो 'जन्म' का अर्थ 'मंजिल' ठीक हो गया और तीन जन्म सुधरने पर चौथे जन्म में परम उद्देश्य अर्थात अभीष्ट पद का प्राप्त होना सिद्ध हो गया।   

                                  

   🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश

- भाग दूसरा- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!


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