**राधास्वामी!! 14-02-2021-(रविवार) आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) सुरत तू कौन कहाँ से आई।।टेक।। जगत जाल यह मन रच राखा। क्यों या में भरमाई।।-(अनहद शब्द सुनो घट भीतर। राधास्वामी कहत बुझाई।।) (सारबचन-शब्द-दूसरा-पृ.सं.264)
(2) छबीले छबि लगे तोरी प्यारी।।टेक।। दर्शन कर मोहित हुई छिन में। मुखडे पर मैं वारी।।-(राधास्वामी अंग लगाओ मेहर से। तन मन से कर न्यारी।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-1 प्रेम बहार-पृ.सं.406) नोट:- आज विद्यार्थियों के पाठ नहिं पढे गये।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-
भाग 1- कल से आगे-(28)- 15 मई 1940
को फरमाया- आज जो आप हर रोज सुबह व्यायाम ग्राउंड पर जाकर व्यायाम करते हैं और इस समय आप सब साहबान मेरे जाने की खबर पाकर जो भेंट पेश करके अपने प्रेम व श्रद्धा को प्रकट किया उससे पता चलता है कि आप सब साहबान के दिल में मालिक का प्रेम मौजूद हैं और उनकी तवज्जह आप ही की तरफ है।
इसलिये आप तन, मन, धन से संबंध रखने वाली हर किस्म की तकलीफ और कष्ट को बर्दाश्त कर रहे हैं। लेकिन याद रखिए कि सतसंग के अंदर जो भी कार्रवाई की जाती है, चाहे वह तन व मन को तकलीफें देने के सिलसिले में हो, हर काम के अंदर मसलहत और दूरंदेशी शामिल रहती है।
इसलिये इस आधार पर यह दृढ़ता से कहा जा सकता है कि जो शारीरिक कष्ट आप इस वक्त बर्दाश्त कर रहे हैं या जो धन आप सत्संग के कामों या भेंट वगैरह में खर्च कर रहे हैं उनकी बदौलत कुछ अरसे में हुजूर राधास्वामी दयाल की दया से कोई ऐसी सूरतेहाल जरूर निकल आवेगी कि आपका शरीर मौजूदा कष्टों को बर्दाश्त कर सके और मजबूत हो जावे और आपकी तंदुरुस्ती अच्छी हो जावे।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
[भगवद् गीता के उपदेश]-
कल से आगे
:-उसे किसी चीज की चाह नहीं, उसके मन और आत्मा बस में है। उसे किसी किस्म का लोभ नहीं, वह सिर्फ शरीर से कर्म करता है इसलिए उसे कोई दोष नहीं लगता। जो कुछ उसे बिला तरद्दुद (अपने आप) मिल जाता है उसी में खुश रहता है।
द्वंदो (दुख सुख, नफा नुकसान, गर्मी सर्दी वगैरह) के बखेडो से परे, ईर्षा से रहित और कामयाबी और नाकामयाबी की सूरत में समानचित (अडोल) रह कर वह कर्म करता हुआ भी बंधन में नहीं पड़ता ।
जिसका चित्त राग से रहित और मुक्त हो गया है, जिसकी तवज्जुह ज्ञान में स्थिर है और जिसकी क्रियायें यज्ञ के लिये है उसके लिए किये हुए सब कर्म गल जाते हैं यानी उस पर उनका कोई असर नहीं पड़ता गौर करके देखो तो ब्राह्म की अहुति देने का पात्र (स्नुवा वगैरह) है , ब्रह्म ही आहुति का मसाला (सामग्री) है, ब्रह्म ही ब्रह्म की अग्नि में आहुति डालता है । इसलिये वही शख्स ब्रह्म में लीन होता है जो सब कर्म करता हुआ अपना ध्यान पूरे तौर ब्रह्म में जोड़े रहता है ।
अब मुख्तलिफ किस्म के यज्ञों का हाल सुनै। बाज योगी , जिनका कर्मयोंग में विश्वास है, यज्ञ करते देवताओं का पूजन करते हैं। और बाज, जिका ज्ञानमार्ग में निश्चय है धर्म अग्नि में यज्ञ ही की अहुति डालकर यज्ञ करते हैं।【 25】
क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज
- प्रेम पत्र- भाग्-1- कल से आगे:-
बहुतेरे लोग जो भेष्ट नेष्ठा (श्रद्धा) रखते हैं, वे कुल भेषो की बगैर दरियाफ्त किये जात पाँत के चरणमृत प्रसादी लेते हैं। और यह दस्तूर पंजाब और सिंध वगैरह में आमतौर पर जारी है ।
और मुसलमानों में भी गुरु का उलश यानी जूठन भाव के साथ लेकर खाते हैं।
खुलासा यह है कि गुरु और साध और महात्मा और गुसाईं और साहबजादे और हर एक पथं के महंतों और गद्दीनशीन की परसादी खाना आम तौर पर सब देशों और सब मतों में जारी है । फिर जो लोग इसको बुरा समझते हैं और इसकी निंदा करते हैं, वह परमार्थ के हाल और चाल से बिलकुल बेखबर हैं, और आप भी कुछ भी परमार्थ की करनी नहीं करते और जात पाँत या विद्या और बुद्धि या धन और हुकूमत के मान और अहंकार में डूबे हुए हैं।
फिर ऐसे लोगों की निंदा और तान और हँसी के बचनों का सच्चे परमार्थियो को किसी सूरत में ख्याल करना अपनी भक्ति और परमार्थ की कमाई में खलल डालना है।
देखो तमाशबीनों को कि मुसलमानी और ईयासन और नीच जात वाली औरतों के साथ मोहब्बत करते हैं और उनके घरों पर रात दिन पड़े रहते हैं और वही खाते पीते हैं। या ऐसी औरतों को अपने घरों में लाकर रखते हैं जो उनसे औलाद पैदा होती है और उसके साथ वैसा ही बर्तावा करते हैं जैसा की शादी की हुई बीवी की औलाद के साथ बरतते हैं और अपनी बिरादरी और जात वालों का कुछ भी खौफ या ख्याल न करके खुलाखुली ऐसे काम करते हैं। और फिर उनसे कोई कुछ नहीं कहता, और न उनको ऐसे काम से रोक सकता है।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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