**राधास्वामी!! 03-02-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) जो मेरे प्रीतम से प्रीति करे। मोहि प्यारा लागे री।।-(भौजल से जो तरना चाहे। राधास्वामी राधास्वामी गावे री।। ) (प्रेमबानी-4-शब्द-13-पृ.सं.100)
- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:- (1)
जो मेरे प्रीतम से प्रीति करे। मोहि प्यारा लागे री।।-(भौजल से जो तरना चाहे। राधास्वामी राधास्वामी गावे री।। )
(प्रेमबानी-4-शब्द-13-पृ.सं.100)
(2) हर सू है आशकारा जाहिर जहूर तेरा। हर दिल में बस रहा है जलवा व नूर तेरा।।-(ऐ साहबे करामत! वै मायए अतूफत! सद जान तेरे सदके सुबहान नूर तेरा!)
(प्रेमबिलास-शब्द-136-पृ.सं.200,201) (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 03- 02-2021-
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन
- कल से आगे-( 142)
- बृहदारण्यक उपनिषद के तीसरे अध्याय में पाँचवें ब्राह्मण में सच्चे ब्राह्मण के लिए यह प्रश्न पूछकर कि वह किस आचरण से रहे, उत्तर दिया है कि वह जिस भी आचरण से रहे वह सच्चा ब्राह्मण ही रहेगा।
इस पर टीकाकार पंडित राजा रामजी ने निम्नलिखित फुटनोट दिया है- "जो ऐसा पहुँचा हुआ है उसके लिए कोई बंधन नहीं। वह हर एक अवस्था में एकरस ही है। हर एक हालत इसके लिए एक जैसी है। यह उसकी प्रशंसा है यह अभिप्राय नहीं कि वह विरुद्ध आचरण भी कर सकता है । क्योंकि विरुद्ध आचरण तो होता ही आत्मा की दुर्बलता में है जिसको मैं बहुत पहले तर ( पार कर ) चुका है"।
क्या यह फुटनोट लिखने वाले पुरुष को ध्यान नहीं था कि वह क्या लिख रहा है? अवश्य था किंतु वह एक शुद्धचित्त व्यक्ति है इसलिए उपनिषद के वास्तविक अभिप्राय को समझता है। मलिन- चित्त पुरुष हर एक में मलिनता ही देखते हैं।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**2) हर सू है आशकारा जाहिर जहूर तेरा। हर दिल में बस रहा है जलवा व नूर तेरा।।-(ऐ साहबे करामत! वै मायए अतूफत! सद जान तेरे सदके सुबहान नूर तेरा!) (प्रेमबिलास-शब्द-136-पृ.सं.200,201) (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।
5 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 03- 02-2021- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे-( 142)- बृहदारण्यक उपनिषद के तीसरे अध्याय में पाँचवें ब्राह्मण में सच्चे ब्राह्मण के लिए यह प्रश्न पूछकर कि वह किस आचरण से रहे, उत्तर दिया है कि वह जिस भी आचरण से रहे वह सच्चा ब्राह्मण ही रहेगा। इस पर टीकाकार पंडित राजा रामजी ने निम्नलिखित फुटनोट दिया है- "जो ऐसा पहुँचा हुआ है उसके लिए कोई बंधन नहीं। वह हर एक अवस्था में एकरस ही है। हर एक हालत इसके लिए एक जैसी है। यह उसकी प्रशंसा है यह अभिप्राय नहीं कि वह विरुद्ध आचरण भी कर सकता है । क्योंकि विरुद्ध आचरण तो होता ही आत्मा की दुर्बलता में है जिसको मैं बहुत पहले तर ( पार कर ) चुका है"। क्या यह फुटनोट लिखने वाले पुरुष को ध्यान नहीं था कि वह क्या लिख रहा है? अवश्य था किंतु वह एक शुद्धचित्त व्यक्ति है इसलिए उपनिषद के वास्तविक अभिप्राय को समझता है। मलिन- चित्त पुरुष हर एक में मलिनता ही देखते हैं। 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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