**राधास्वामी!! 06-02-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) गुरु सोई जो शब्द सनेही। शब्द बिना दूसर नहिं सेई।। अंतरमुख बैठे एकान्त।
अभ्यास करे पावे मन शान्त।।-
(अलख अगम और मिला अनामी।
अब कहूँ धन धन राधास्वामी।।)
(सारबचन-शब्द-
पहला-पृ.सं.258,259)
(2) शब्द धुन सुनो त्याग मन काम।।टेक।।
जब लग चित भोगन में बहता। बसे न हिरदे नाम।।-
(राधास्वामी मेहर बसै जाय सतपुर।
जहाँ नहिं काल कृष्ण और राम।।)
(प्रेमबानी-2-शब्द-50-पृ.सं.401)
आज डी० ई०आई० के हीरक जयंती के अवसर पर (स्पेशल डे) सतसंग के बाद -
बचन:-
प्रगट होना परम पुरुष पूरन धनी परम पुरुष राधास्वामी दयाल का- राधास्वामी का संदेश:-
सरन तेरी हम आये प्रभु जी लाज हमारी तुमको।
दीन दुखी होय आज दोबारा पढे गये।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर मेहताजी
महाराज-भाग-1- कल से आगे:-( 23)-
19 अप्रैल 1940
-शाम को सत्संग के वक्त हुजूर ने फरमाया- इस दफा सूबा मद्रास का दौरा करके तबीयत बड़ी खुश हुई । वहाँ की भूमि सत्संग प्रगति की उन्नति और वृद्धि के लिए निहायत मौँजू है। हुजूर साहबजी महाराज जो बार बार इस सूबे में तशरीफ ले जाते थे वह गर्मी गुजारने या जलवायु परिवर्तन के लिए नहीं जाते थे बल्कि यह देख कर कि मद्रास की भूमि सत्संग का बीज बोने के लिए बहुत दुरुस्त है, वह दयाल वहाँ पर सत्संग का बीज डालने जाते थे। जो बीज हुजूर साहबजी महाराज ने इस जमीन में डाले थे वह अब आये हैं।
अब उनके पालन पोषण व विकास के लिये सिंचाई की आवश्य कता है। पानी देने से पौधे बढ़कर वृक्ष बन जाएंगे और मीठे फलों से लग जावेंगे और मीठे फलों से लद जावेंगे, जिससे तमाम संगत और मुल्क लाभ उठावेगा। इस दफा वहाँ के लोगों से बातचीत करके यह मालूम होता था कि उनके हृदय प्रेम व श्रद्धा से भरे हुए हैं और वह अधिक प्रेम में भक्ति की दात के लिये तैयार है। इन लोगों के इस परमार्थी अंग को देखकर प्रत्येक मनुष्य को यह स्वीकार करना पड़ता है कि यह लोग दरअसल इस काबिल है कि उनकी पूरी तौर से मदद की जावे। मेरी राय में, अगर अमृतसर में काम जारी करने के सिलसिले में एक कदम उठाया गया तो मद्रास में काम करने के लिए चार कदम उठाने चाहिए ।
अब इस पर कोई फैसला करना इस तरफ कोई कदम उठाना आपका काम है । याद रखिए कि सिर्फ बातें बनाने से काम नहीं चलेगा। इसके लिए कुर्बानी और सेवा की आवश्यकता होगी। अगर आपका हौसला और मुस्तकिल इरादा आपको इस तरफ कमली कदम बढ़ाने के लिए तैयार करें तो आप उधर रुख करें, नहीं तो चुपचाप बैठे।
जब आप काम शुरू करेंगे तो लोग आपके काम पर लान-तान करेंगे, उसकी हँसी और मजाक उड़ावेंगे और कहेंगे कि 'अब तो सतसँग उत्तर से हटकर समुंद्र की तरफ जा रहा है; वगैरह, लेकिन आप याद रक्खें कि हजूर साहब जी महाराज ने जो मौज आखिरी वक्त में यहाँ से मद्रास जाकर वहाँ पर चोला छोड़ने की फरमाई थी, वह बिना मतलब नहीं थी।
साफ तौर पर इसके मानी यही थे कि अब सत्संग का काम मद्रास की तरफ बढ़ेगा और सत्संग की वहाँ पर खूब उन्नति व वृद्धि होगी।क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -[भगवद् गीता के उपदेश]- कल से आगे:- लेकिन मालूम हो कि यह मुनासिब नहीं है कि ज्ञानी उनको, जो कर्मों में लगे हैं, अपना ज्ञान सुनाकर कर्मों से विमुख कर दें। उन्हें चाहिये कि सावधान होकर खुद कर्म करके उनके अंदर कर्म करने का शौक बढावें। कर्म अस्ल में प्रकृति के गुणों से बन पड़ते हैं लेकिन अहंकारबस भूला जीव अपने को कर्मों का कर्ता समझता है। मगर जो शख्स गुणों और कर्मों के भेद की अस्लियत से वाकिफ है और समझता है कि कर्म करने में दरअसल गुण ही गुणों में बर्रते हैं उसके दिल पर कोई असर नहीं होता। प्रकृति के गुणों से भरमाए हुए मूर्ख जीव गुणों की क्रियाओं से (शरीर के कर्मों से) प्रेम करते हैं लेकिन किसी बुद्धिमान् को यह शोभा नहीं देता कि उनकी गलती जतलाकर उनका प्रेम खुश्क करदे। पस तुम्हारे लिए वाजिब है कि अपने सब कर्मों को मेरे अर्पण करके तवज्जुह आत्मा में जोड़ कर, आशा ममता से आजाद और शांतचित्त होकर युद्ध करो।【30】 क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज -
प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे-(६) -
इसी नजर से अभ्यासी को शुरू से धुरपद में पहुंचने और अपने सच्चे और कुल मालिक के चरणों के दर्शन की प्राप्ति की अभिलाषा और आशा बँधवाई जाती है और दूसरी इच्छा और ख्वाहिश का, चाहे किसी किस्म की होवे,अभाव कराया जाता है, और
(७)- संसार और उसके भोग बिलास और माया के सामान और पदार्थों की तरफ से उनकी नाशमानता और तुच्छ कीमत और कदर समझा कर सच्चे परमार्थी के चित्त में थोड़ा बहुत सच्चा वैराग्य दिलाया जाता है, और
(८)- सच्चे मालिक राधास्वामी दयाल और संत सतगुरु अथवा साधगुरु के चरणों की सच्ची प्रीति और इस तरह की प्रतीति दिल में पैदा की जाती है कि वे हर वक्त परमार्थी जीव के अंग संग और अंतर में हाजिर नाजिर और हरदम रक्षक और सहाई मौजूद है। और यह प्रीति और प्रतीति सिर्फ जबानी बातों और उपदेश से नहीं आती हैं, बल्कि थोड़ा बहुत अभ्यास सुरत शब्द मार्ग का करके और अंतर में आनंद और रस और परचे पाकर आपही आप सच्चे अभ्यासी के हृदय में जगाती है और दिन दिन बढती और पकती जाती है और उसके साथ ही अभ्यासी की हालत और उसका बरताव और ब्यौहार भी थोडा बहुत अंतर और बाहर बदलता जाता है, यानी कुल मालिक और सतगुरु और सतसंग में प्रीति ज्यादा होती जाती है और उसी कदर संसार और संसारियों से मेल मिलाप कम होता जाता है।क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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