प्रस्तुति - अनिल / पुतुल
*(41) एक अन्य महत्वपूर्ण कदम इंडस्ट्रियल उत्पादन का विकेन्द्रीकरण रहा जिसका देश के विभिन्न भागों में कुटीर उद्योगों या लघु उद्योग के रुप में सगंठन किया गया है। इस प्रकार की 107 इकाइयाँ (दिसंबर 2001 तक) आजकल विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ जैसे अनेक डिजाइनों व रंगो मे सूती वस्त्र, होजरी का सामान, साबुन तेल, बुने कपडे, डिटरजेंट, चमडे का सामान, आयुर्वेदिक दवाइयां तधा अन्य उपभोक्ता वस्तुएं बना रहु है। इस समय 146 नियमित सटोर्स और 4 स्टोर ऐजेन्सीज है जो सम्पूर्ण देव में फैले हुए है और जो इकाइयों द्वारा निर्मित माल को उपल्बध कराते है इसके अतिरिक्त समय-समय पर इध उत्पादनों कु विभिन्न ब्राँचों और जिलों में प्रदर्शनियाँ लगाई जाती है जिनमें विभिन्न इकाइयों कै द्वारा निर्मित वस्तुओं का प्रदर्शन एवं विक्रय किया जाता है।। (42) इन सभी उपर्युक्त गतिविधियों में युवाओं और युवतियों को पूर्णतय: शामिल करने का प्रयास किया गया है। समाज के सेवा कार्यों जैसे भंडारे के मौके पर बाहर से आने वाले सतसंगियों की देख-भाल स्वचछता और नागरिक निर्माण-कार्य और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने के उद्देश्य से विशिष्ट समूह बनाये गये है। उन्हे सतसंग की कार्यवाही में शामिल होने के लिये प्रोत्साहित किया गया है. अधिकतर ब्राँचों में सामान्यत:विद्यार्थियों एवं छोटे बच्चो की पाठ पार्टियां है।। (43) सतसंगियों की बहुत सी महिला एसोसिएशंस बन गई है जो अच्छी गुणवत्ता की वस्तुएँ जैसे तैयारशुदा वस्त्र, मसाले, अचार आदि तैयार करके उन्हे बिना लाभ-हानि के आधार पर उपल्बध कराती है।**
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