Sunday, February 23, 2020

सत्संग के उपदेश




प्रस्तुति - रेणु दत्ता /आशा सिन्हा


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- सत्संग के उपदेश- भाग 2- कल का शेष:- "कहता हूँ कह जात हूँ कहा बजाऊं ढोल। स्वाँसा खाली जात है तीन लोख का मोल।।  कबीर सोता क्या करे जागन से कर चौंप। यह दम हीरि लाल है गिन गिन गुरु को सौंप।।" माना कि कोई शख्स ज्यादा धनवान या पूँजीदार नही है, माना कि वह मोटा झोटा कपडा पहनकर और रुखा सूखा टुकडा खाकर अपने दिन काटता है लेकिन वाजह हो कि मनुष्यशरीर के अंदरुनी फायदे उसे सबके सब भरपूर हासिल है इसलिये संतमत शिक्षा देता है कि ऐ गरीब व दीन अधीन प्रेमीजन! तू मत घबरा, तेरा मेहनत मुशक्कत करके चार पैसे कमाना और उसी कमाई में (जो हक व हलाल की है ) गुजर करना दुनिया की निगाह में ओछा हो सकता है लेकिन परमार्थी लक्ष्य में निहायत मुबारक है । जो शख्स हक हलाल की कमाई खाता है वही अपने मन को काबू में रखकर अपने जिस्म के अंदर छिपी हुई शक्तियों व चक्रों को जगा सकता है। संसार के भोग विलासों में जरूर खास किस्म की लज्जत है लेकिन तवज्जो के जरा अंतर्मुख होने पर जो रस व आनंद प्राप्त होता है उसके मुकाबले में उसकी कोई हकीकत नहीं है। तू जरा हिम्मत कर और सुमिरन ध्यान की दृष्टि को अंतर की जानिब फेर ! तेरे घट में दो रास्ते चलते हैं- एक नरक की जानिब और दूसरा सच्चखंड की जानिब ले जाने वाला है । तू लोक लाज और मूर्खों की तान का ख्याल छोड़ छोड़कर इन रास्तों का भेद दरिया कर। तू नाहक दूसरों की देखा देखी सुख के लिए सांसारिक पदार्थों की जानिब दौड़ता और परेशान होता है। तेरे घट में सुख के सब सामान रक्खे हैं। तू  जरा होश कर और दृष्टी को घट में उलट।।                                    "बड़ा जुल्म है मेरे यार यह, कि तू जाय सैर को बाग़ के।।                         तू कँवल से आप ही कम नहीं, हिये में उलट के चमन में आ।। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


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