प्रस्तुति-ममता दीपा सुनीता रीना शरण
[24/02, 04:01] +91 94162 65214:
**राधास्वामी!!
24-02-2020 -
आज सुबह के सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की। गुन गाऊँ उनका सार।। मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की हुई अब छिन छिन शुकरगुजार।। (सारबचन-शब्द-दूसरा,पे.न.38) (2)सुरतिया पूज रही। गुरु बचन बिरह धर चीत।। (प्रेमबानी-2,शब्द-74,पे.न. 192) 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[24/02, 06:21] +91 97830 60206: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात- 15 जुलाई 1932- शुक्रवार:- सुबह मालूम हुआ कि मिस्टर स्किप्सी चले गये। खैर उनकी मर्जी। सत्संग के ₹40 के करीब खर्च हो गए और नतीजा कुछ ना निकला। सूबा मद्रास से अनेक पत्र प्राप्त हुए जिनमें सत्संग के अनुभवों का जिक्र है। मालूम होता है कि मद्रासी भाइयों ने इस मर्तबा के दौरे से बहुत आनंद उठाया।। सेठ चमरिया ने लिखा है कि लैला मजनू की फिल्म का सब खर्चा वसूल हो चुका है ।भविष्य में आमदनी सत्संग को मिलेगी।। रात के सतसंग में ज्ञान हुआ कि सब सतसंगियों को अपनी रहनी गहनी सँवारनी चाहिए। रहनी गहनी सँवारने से न सिर्फ खुद को सुख होगा बल्कि जनसामान्य को राधास्वामी मत में शरीक होकर जीवन सफल करने का मौका मिलेगा।। 16 जुलाई 1932- शनिवार- सत्संग के कारोबार में बढ़ोतरी हो जाने से जरूरी हुआ कि एक और सहायक नियुक्त किया जावे। फिलहाल 6 माह के लिए प्रेमी बिहारी दास एम.ए. को मुकर्रर किया है ।और उनके जिम्मे दयालबाग प्रैस, पुस्तकों की छपाई वगैरह लीग आफ सर्विस कई विभाग सुपुर्द किये है। और चूँकि डेरी का काम किसी कदर ढीला चलता है इसलिए यह महकमा मैंने अपने अधीन में ले लिया है । हम लोगों का काम हाथ पाँव हिलाना है नतीजा मालिक के हाथ है ।। आज सेहपहर को डेरी का हिसाब किताब समझने में व्यय हुआ। डेरी के अफसरों ने अब तक काबिलेतारीफ हिम्मत दिखाई है लेकिन अभी और हिम्मत दिखलाई है लेकिन अभी और हिम्मत दिखलाने की जरूरत है । क्योंकि बिना काम को तरक्की किये डेरी अपने पांव पर खड़ी नहीं हो सकती। गोया इस वक्त तीन महकमें ऐसे हैं जिन पर खास तवज्जुह देने की जरूरत है । शू, फैक्टरी , टेक्सटाइल फैक्ट्री,और डेरी। अगर वह सब प्रस्तावों जो इन महकमों की विस्तार के लिए सोची गई है अमल में आ गई तो भारी उम्मीद है कि आइंदा साल सत्संग की माली मुश्किलात का अर्सा के लिये खात्मा हो जाएगा । इन बातों का इन्दराज इसलिए किया जाता है कि सतसंगी भाइयों को सतसंग की मुश्किलात की इत्तिला रहे।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
[24/02, 06:21] +91 97830 60206: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- सत्संग के उपदेश -भाग 2-(28)【 निन्दको के साथ हमारा बर्ताव किस प्रकार होना चाहिए ?】:-किसी भी साध संत या महात्मा की जिंदगी के हालात पढ़ने से मालूम होगा कि हरचंद वे महापुरुष निहायत सादी जिंदगी बसर करते थे और अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त मनुष्यमात्र के कल्याण की कोशिश में लगाते थे लेकिन फिर भी बहुत से लोगों को उनकी रहनी गहनी व परोपकार की कार्रवाई में सैकड़ों दोष नजर आते थे । इतना ही नहीं बल्कि आज दिन हालांकि वे महापुरुष संसार में मौजूद नहीं है और ना ही किसी इंसान से कुछ लेते हैं लेकिन तो भी हजारों दिलजले उनकी पवित्र रहनी और उच्च शिक्षा में बीसों ऐब निकाल कर अपना दिल ठंडा करते हैं मसलन कुरैशी लोग बहुत समय तक हजरत मोहम्मद की सख्त बुराई करते रहे और हजारों गैरमुस्लिम लोग अब तक पैगंबर साहब की पाक रहनी गहनी के मुतअल्लिक़ जवाँदराजी करते हैं । इसी तरह नानक साहब व कबीर साहब के मुतअल्लिक़ लोग जो मुँह में आया कह देते है इसलिए तअज्जुब नहीं अगर हुजूर राधास्वामी दयाल व राधास्वामीमत की निस्बत भी नामुनासिब अल्फाज़ सुनने में आवें। दूसरों को क्या कहें खुद अपने ही घर के बाज लोग जिन्हें न विशेष ज्ञान जिम्मेवारी का है और ना ही काबिलियत जरूरी मामलात के समझने की हासिल है , किसी वजह से नाराज होकर सत्संग की हर वक्त हर बात में दोस्त निकालते हैं और इस ढंग से वे न सिर्फ अपने तई सत्संग के लाभ और सेवा के मौके से महरूम करते हैं बल्कि अपने जहरीले ख्यालात का प्रचार करके अपने संगी साथियों व अजीजो व कुटम्बियो को भी सच्चे परमार्थ आला तालीम से दूर रखते हैं ।क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[24/02, 06:21] +91 97830 60206: **परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र - (भाग 1) -{8}:- 【भैद मत का】:- जिसने मत की दुनियाँ में जारी है सबका मतलब यह है कि मुक्ति या नजात हासिल हो। मुक्ति बंधन और जन्म मरण से छूटने और परम आनंद को प्राप्त होने को कहते है। इसके वास्ते उपाय करना जरुरी है कि कौन जुगत और तरतीब करके जीव को यह बात प्राप्त हो सकती है। दुनियाँ में जो जो सुख कि उम्र भर करके हासिल होते हैं सब नाशवान हैं। संत कहते हैं कि ऐसा देश भी है कि जहां अमर सुख और अमर आनंद है ।यहां इस लोक में दुख सुख मिला हुआ है । अगर चैतन्य आनंद स्वरूप है, पर उस पर माया के गिलाफ चढे हुए हैं। उनमें बंधन करके दुख सुख होता है। जैसे जागृत में देह का बंधन करके दुख सुख मालूम होता है पर स्वपन में जो कि सुरत की धार देह के मुकाम से किसी कदर हट जाती है, तो इस देह का दुख सुख मालूम नहीं होता। संत कहते हैं कि ऐसी तरकीब चाहिए कि गिलाफो के बंधन से रिहाई हो जावे। सब मतों में किसी न किसी सूरत की नकल की पूजा बताते हैं या किसी निशान की पूजा या पोधी वगैरह की, जैसे नानकपंथी ग्रंथ को गुरु मानते हैं । इसमें सुरत यानी जीव की तवज्जह बाहर मुखी रहती है और निज घर का पता और भेद नहीं मिलता। इस सबब से वहां सच्ची मोक्ष हासिल होने का रास्ता जाहिरा कोई मालूम नहीं होता है। और वास्ते हासिल होने सच्चे उद्धार या मुक्ति के जरूर है कि ऐसी तरकीब मालूम होना चाहिए की जिससे सुरत यानी रूह का भंडार की तरफ लौटना होवे।। सुरत का देह में दिमाग की तरफ से आना और मरते वक्त उसी तरफ ऊपर को खिंच जाना इन आंखों से साफ दिखाई देता है। और सब कहते हैं कि मालिक सब जगह है और जीव उसकी अंश है। वह मालिक आनंद स्वरूप है और जीव जो उसकी अंश है यह भी आनंद स्वरूप है ,यानी जीव एक किरण उसी आनंद स्वरूप सुरत यानी भंडार की है । पर इसका उस भंडार से जुदा होकर इस दुनिया में जड़ पदार्थों के साथ मुहब्बत करके बंधन हो गया है । और जितना कि स्वाद रस और मजा है सब सुरत की धार का है। इसकी धार जिस इंद्री के मुकाम पर आती है तब उस इंद्री के भोग का रस और मजा मालूम होता है । इससे जाहिरा है कि सब रस और मजे और स्वाद और आनंद इसी चैतन्य में है और जिस जिस में जिस कदर कि रुह चैतन्य की धार है उसी कदर और आनंद है। क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी**🙏🏻
[24/02, 08:52] +91 60005 38636: 🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏एेसे प्रीतम प्रान पियारे, पूरन धनी अनामी; तिनके चरन कमल सिर धरके, गाऊँ राधास्वामी: अगम गीत यह गाँववालों चाहूँ, तुम्हारी मौज निहारा; मौज होये तो सतगुरू स्वामी,करूँ सुपंथ बिचारा🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏
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