**राधास्वामी!!
12-04 -2020 - आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन
- कल से आगे -(107 )
संसार में दो विरोधी विचारों का प्रचार हो रहा है। एक तो इस विचार का कि मनुष्य आजाद रहे, अपनी जरूरतों को ज्यादा ना बढावे और मोटा झोटा खाकर व पहन कर गुजारा करें किसी दूसरे के रूबरु हाजतमंद बन कर ना जावे और स्वतंत्रता का आनंद ले। दूसरे इस विचार का कि मनुष्य अमीरों ,हिकिमों और गुणवानों से मेलजोल रखें और उनको प्रसन्न करें ताकि मौका पड़ने पर उनकी दौलत हुकूमत से और उनके गुणों से मदद हासिल करके सुख के साथ जिंदगी बसर कर सके। यह दोनों ही विचार दुरुस्त हैं और दोनों ही मनुष्य को आराम पहुंचाने वाले हैं लेकिन आम लोग इन विचारों का सही इस्तेमाल नहीं करते । चुनांचे अक्सर ऐसे आदमी दिखलाई देते हैं जो आजाद तो रहते हैं लेकिन जबान के ऐसे कडवे और स्वभाव के ऐसे खराब है कि कोई शख्स उनसे मिलना नहीं चाहता । दूसरी तरफ ऐसे आदमी मिलते हैं जब परले दर्जे के खुशामदी है और झूठ बोलते वक्त न मालिक का खौफ दिल में लाते हैं और न अपनी इज्जत आबरू का। बडढाकर बातें सुनाना और धोखे व फरेब से काम निकालना उनका दस्तूरूल अमल है।ये दोनो किस्म के लोग असली विचारों से घिर गए हैं। राधास्वामी दयाल का उपदेश यह है कि मनुष्य स्वाधीन भी रहे और दीन अधीन भी यानी आजाद भी रहे और जवान व स्वभाव का मीठा भी। जैसा कि फरमाया है- दीन गरीबी मत इस जुग का, और गुरुभक्ति का परमान।
🙏🏻 राधास्वामी 🙏🏻
सत्संग के उपदेश -भाग तीसरा**
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