Saturday, April 11, 2020

देव सूर्य मंदिर औरंगाबाद बिहार /




देव सूर्य मंदिर ☀️📯🐚🚩🙏🏻


बिहार के औरंगाबाद जिले में विश्व प्रसिद्ध सुर्य देव मंदिर है।
यह मंदिर में बहुत सत्य है और साथ में रहस्यमय भी है ।

यह मंदिर का निर्माण शिलालेख  पवित्र ब्रहम लिपि के अनुसार सत्ययुग में इला के पुत्र राजा  पुरूरवा ऐल नें भगवा विश्वकर्मा कृपा से निर्माण करवायें थें ।
 देव सुर्य मंदिर के तरह उनहोंने उमंगा में भी पहाड़ पर निर्माण करवायें थें, जो देव सें कुछ हीं दुर पर है।

* देव सुर्य देव मंदिर के सत्य और रहस्य - कथा मिलती है कि एक बार औरंगजेब मंदिरों को तोड़ता हुआ औरंगाबाद के देव पहुंचा। वह मंदिर पर आक्रमण करने ही वाला था कि वहां के पुजारियों ने उससे काफी अनुरोध किया कि वह मंदिर को न तोड़े। कहते हैं कि पहले तो औरंगजेब किसी भी कीमत पर राजी नहीं हुआ लेकिन बार-बार लोगों के अनुरोध को सुनकर उसने कहा कि यदि सच में तुम्‍हारे भगवान हैं और इनमें कोई शक्ति है तो मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा में हो जाए। यदि ऐसा हो गया तो मैं मदिर नहीं तोड़ूंगा।
स्‍थानीय निवासी बताते हैं कि औरंगजेब पुजारियों को मंदिर के प्रवेश द्वार की दिशा बदलने की बात कहकर अगली सुबह तक का वक्‍त देकर वहां से चला गया। लेकिन इसके बाद पुजारीजन काफी परेशान हुए और वह रातभर सूर्य देव से प्रार्थना करते रहे कि वह उनके वचन की लाज रख लें। कहते हैं कि इसके बाद जब पुजारीजन अगली सुबह पूजा के लिए मंदिर पहुंचे तो उन्‍होंने देखा कि मंदिर का प्रवेश द्वार तो दूसरी दिशा में हो गया है। तब से देव सूर्य मंदिर का मुख्‍य द्वार पश्चिम दिशा में ही है।

देव सुर्य देव मंदिर के पास हीं एक  राज़ के किला है ।
 उस क़िले में निवाश करने वालें राजा सुर्य भगवान के उपासक और बहुत बड़ा भक्त थें ।
वर्णन इतिहास में मिलती है कि  देव किला का सबसे अंतिम राजा जगन्नाथ सिंह थें।

बिहार के औरंगाबाद देव राज्य का इतिहास ।

देव राज विरासत,  राजा किला देव यह भारतीय राज्य बिहार के औरंगाबाद जिले में देव नामक स्थान पर स्थित है। ये राजपूत परिवार के माना जाता है की यह सिसोदिया वंस से जुड़ी हुई है। ये वर्णन इतिहास में मिलती है कि देव किला का सबसे अंतिम राजा जगनाथ जी थे जो काफी लंबे समय तक अपने राज्य में शांति और वह प्रजा लोगो के साथ शांति के साथ राज्य का जिम्मा अपने हाथ मे लेकर शासन किया। उनका कोई भी अपना संतान नही था। देव राज के संस्थापक राजाभान सिंह मेवाड़ के उदयभान सिंह के छोटे भाई थे। कहा जाता है कि वे जग्गनाथ पुरी जा रहे थे और रास्ते में उमंगा  रानी के यहां ठहर। रानी के खिलाफ प्रजा ने विद्रोह कर दिया था। भान सिंह ने रानी का पक्ष लिया और विद्रोह को कुचल दिया। रानी का कोई उत्तराधिकारी नहीं था। रानी ने भान सिंह को अपना उत्तराधिकारी बना लिया। देव में उन्होंने अपनी राजधानी बनाई। देव के राजा छत्रपाल सिंह के पुत्र फतेहनारायण सिंह ने राजा चेत सिंह के साथ मिलकर , अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़े थें । और उनहोंने अंग्रेजों को देव राज्य छोडने पर मजबूर कर दियें थें । राजा साहब नें अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दियें थें ।

राष्ट्रीय शान
देश का प्रथम फ़िल्म थी "छठ मेला " हीरो थे राजा जगन्नाथ सिंह किंकर।
बिहार का पहला फ़िल्म
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" छठ मेला " देव में ही बना था

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देव सूर्योपासना का केंद्र तो है ही, साथ ही साथ साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी विलक्षण रहा है। देव स्टेट के राजा जगन्नाथ सिंह ' किंकर ' साहित्य, कला और संस्कृति को देश-दुनिया में पहुंचाया था। वे अपने जमाने के एक बड़े राजा तो थे ही, एक बड़े हीरो के नाम से जाने जाते थे। उन्होंने मूक सिनेमा और चल सिनेमा भी बनाए थे।
यह बिहार राज्य का गौरव है कि बिहार की पहली फिल्म का नाम ‘छठ मेला’ है, जिसका निर्माण 1930 में हुआ था। यह मूक फिल्म थी। 16 mm की ये फिल्म केवल चार रील बनी थी। इस फिल्म को बनाया था देव (औरंगाबाद) के राजा जगन्नाथ प्रसाद सिंह " किंकर " ने।

देव में प्राचीन सूर्य मंदिर है, जहां छठ पूजा के समय भव्य मेला लगता है। राजा जगन्नाथ ने देव मंदिर और यहां के छठ मेला की महिमा को देश भर के लोगों तक पहुंचाने के लिए इस फिल्म का निर्माण किया था।
इस फिल्म के लिए उन्होंने लंदन से उपकरण खरीदे थे। फिल्म की एडिटिंग के लिए लंदन से जोसेफ ब्रूनो को पटना बुलाया गया था। फिर वे पटना से मोटर कार के जरिये देव पहुंचे थे। चूंकि मूक फिल्मों के दौर में राजा जगन्नाथ ने बिहार में पहली फिल्म बनायी थी, इसलिए उन्हें बिहार का " दादा साहेब फाल्के "कहा जाता है। दादा साहेब फाल्के ने ही भारत की पहली फिल्म मूक फिल्म बनायी थी। फिल्म ‘छठ मेला’ एक तरह से डॉक्यूमेंट्री फिल्म थी। चार रील की इस फिल्म को बनाने में 32 दिन लगे थे। इस फिल्म के निर्माता, निर्देशक और लेखक राजा जगन्नाथ ही थे।

फिल्म में राजा जगन्नाथ के पुत्र, वे खुद और गया के अवध बिहारी प्रसाद ने अभिनय किया था। फिल्म बनने के बाद इसका पहला प्रदर्शन राजा जगन्नाथ के महल के मैदान में किया गया था। इसको देखने के लिए गया, जहानाबाद औरंगाबाद, नवादा, सासाराम और पटना से लोग वहां पहुंचे थे। सबसे खास बात ये थी कि राजा जगन्नाथ ने इस फिल्म को बनाने के लिए एक स्टूडियो भी बनाया था। इसमें लंदन से मंगाये उपकरण रखे गये थे। फिल्म ‘छठ मेला’ का निर्माण और प्रोसेसिंग इसी स्टूडियों में हुई थी। यानी 1930 में ही बिहार में ही फिल्म बनाने की शुरुआत हो चुकी थी। 1934 में बिहार में भयंकर भूकंप आया था जिसमें यह स्टूडियो पूरी तरह तहस- नहस हो गया।
राजा जगन्नाथ प्रसाद सिंह " किंकर " साहित्य के अनुरागी थे। 1931 में जब बोलती फिल्म की शुरुआत हुई तो उन्होंने बोलती सिनेमा का भी निर्माण किया। उनकी बोलती फिल्म नाम था ‘विल्वमंगल’। यह एक धार्मिक फिल्म थी जिसमें भगवान शिव के प्रिय बेलपत्र का महत्व दिखाया गया था। उनके निधन से देव क्षेत्र के एक बड़े कलाप्रेमी युग का अंत हो गया।

देव के अंतिम राजा जगन्नाथ सिंह " किंकर " ही थे। वे राज्य में शांति, अमन चैन के साथ राज्य का संचालन करते थे। देव के लिए दुर्भाग्य था कि ऐसे मेधावी राजा निःसंतान थे। उनके निधन के साथ राजकुल का अंत हो गया।

1947 में देश के आजादी मिलने पर देवराज के अटार्नी जनरल मुनेश्वर सिंह ने इसे देश में विलय के लिए हस्ताक्षर कर दिए। सबसे देव राज्य भारत में विलय हो गया।
देव के स्वर्गीय राजा जगन्नाथ प्रसाद सिंह के स्मृति में एक हाई स्कूल संचालित है, जो राज्य सरकार के अधीन है। बताया जाता है कि देव राज महाराजा की बड़ी पत्नी विश्वनाथ कुमारी ने 7 जनवरी 1938 को 7 एकड़ 13 डिसमिल जमीन अपने भूतपूर्व अंग्रेज मैनेजर जे सि राइट के बंगले का विद्यालय के नाम से दान कर रजिस्ट्री कर दी। तब से लेकर यहां आज तक इस स्कूल से लाखों छात्र शिक्षा अध्ययन कर चुके हैं और कर रहे हैं। कई ऐसे   भी छात्र इस विद्यालय से निकले हैं, जो देश-विदेश में अपना नाम रोशन कर रहे हैं।

साभार-- विकाश सिंह सिसोदिया। 🙏🏼🙏🏼🙏🏼
                                                                          --AKHIL  PRIYADARSHI

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