Saturday, April 4, 2020

सलाह अरदास और बचन



**राधास्वामी!!
 सभी सतसंगी भाई बहनों से निवेदन है कि क्यूँ न हम एक छोटा सा प्रयास करें। उपरोक्त प्रार्थना आपके पास आ रही है। हम सब मिल कर रोजाना सुबह व शाम के सतसंग पूरा होने के तुरंत बाद इस प्रार्थना को अपने अपने मोबाइल पर चलायें। "राधास्वामी रक्षक जीव के,जीव न जाने भेद"  केवल 2 : 50 मिनट का समय लगता है। हमने ये प्रयास किया मन को बहुत शांति मिली तो मन में आया क्यों न हम सब इस लाभकारी अवसर का लाभ उठाये। आप सबसे केवल निवेदन है अगर हम सब एक साथ मिलकर सुबह व शाम के सतसंग के बाद ये प्रार्थना रोजाना अपने अपना मोबाइल पर चलाकर हम सभी मिलकर सच्चे मन से इस प्रार्थना को गायें तो कितने सतसंगी एक साथ इस प्रार्थना को मालिक के चरनों में पेश करें। तो दाता दयाल की दया व मेहर हम सब प्राप्त कर सकते है।केवल छोटा सा प्रयास मिलकर करे शुरुआत।।🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 कल से सुबह व शाम के सतसंग के फौरन बाद ।हम सबका सहयोग, संगठन में रहकर अनुशासन मे किया गया प्रयास हमको सफलता व राधास्वामी दयाल की दया व मेहर की दात मिलती है**
[04/04, 01:57] गौरवी सत्संगी: **राधास्वामी!! आप सभी सतसंगी भाइयों व बहिनों को निवेदन याद दिलवाना चाहते है। कि आज सतसंग पूरा होने के बाद "राधास्वामी रक्षक जीव के" जो आपको दिन में बताया गया था। कृपया सब मिल कर आज प्रयास करते है। राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय।🙏🏻🙏🏻**
[04/04, 15:52] गौरवी सत्संगी: **राधास्वामी!! 04-04-2020-                        आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-                                                                                 (1) मूरख मनुआँ भोग न छोडै। याहि कस समझाऊँ री। (प्रेमबानी-3,शब्द-5,पृ.सं.213)                                                                                                                    (2) मनुआँ हठीलि माने न बात, भोगन में रस लेत।।टेक।। (प्रेमबिलास-शब्द-93,पृ.सं-134)                                 (3) सतसंग के उपदेश-भाग तीसरा -कल से आगे।                                                                                                                                   🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**राधास्वामी!! 04- 04-2020                         आज शाम के सतसंग में पढा गया बचन- कल से आगे:- (101)  अगर किसी मनुष्य की सुरत के ऊपर से सब के सब शारीरिक व मानसिक खोल उतार दिए जावें तो नतीजा यह होगा कि उसकी सुरत हर प्रकार के शारीरिक व मानसिक दुखों से, स्थूल व सूक्ष्म शक्तियों के असरों से और शरीर व मन के सभी कैदो से आज़ाद हो कर अपने निर्मल चेतन स्वरूप में प्रकट हो जावेगी और बेरोक अपने असली अंगों यानी सत्ता, चेतनता और आनंद वगैरह में बरतने लगेगी और अगर उस वक्त उस सुरत का सच्चे मालिक से जो, सुरतशक्ति का भंडार है, वस्ल हो जाए तो उसकी वही हालत हो जाएगी जो मिट्टी से अलग होकर समुंद्र में पहुंच जाने पर पानी के कतरे की होती है । यह दुरुस्त है कि पानी का कतरा समुंदर नहीं है और उसमें समुंद्र की सी शान नहीं लेकिन बालियान जौहर के दोनों एक ही हैं और समुंद्र से मिलने पर कतरा समरूप हो जाता है।  इसलिए कहा जाता है कि मालिक से मिलने पर सुरत मालिकरूप हो जाती है। जिस महापुरुष को यह गति जन्म से प्राप्त रहती है उसको संत अथवा राधास्वामी अवतार पुरुष मानते हैं और जो जन्म लेने के बाद साधन करते इस गति को प्राप्त होते हैं उन्हें गुरुमुखसंत कहते हैं। ऐसे महापुरुष केवल जीवो की सहायता के निमित्त संसार में तशरीफ लाते हैं और कयाम करते हैं। जो शख्स उनकी गति हासिल किया चाहता है मुनासिब की वह खोज करके उनकी शरण इख्तियार करें और उनकी आज्ञा अनुसार साधन करके अपनी अभिलाषा पूरी करें।।      🙏 राधास्वामी🙏**

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