**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
रोजाना वाकियात- 30-
31 अगस्त 1932- मंगलवार व बुधवार:- 31 अगस्त की सुबह बेंगलुरु के लिए रवाना होने का इंतजाम हो गया है। साथ में सिर्फ तीन आदमी जाएंगे। इरादा है कि खामोशी से काम करके सभा के समक्ष रिपोर्ट पेश की जावे।
दिसंबर के जलसे के मुततअल्रिक सर्कुलर तैयार हो गया है। उम्मीद है कि तीन-चार दिन के अंदर कुल ब्रांच सत्संगों में नकलें पहुंच जाएगी। सेक्रेटरी साहबान ब्राँच सत्संग- हा से खास तौर पर प्रार्थना की गई है कि किसी भाई पर रुपया हासिल करने के लिए कतई जोर ना डाला जाये। तारीख इमरोजा तक 7000 से ज्यादा रुपए वसूल हो गया हैं ।। रात के के सत्संग में शमा व लम्प की मिसालों से मन को बस करने के तरीके का बयान हुआ।
इंसान का मन दिन-रात शमा की तरह जलता रहता है और उससे काम क्रोध वगैरह की तरंगे निकलती रहती है जैसे शमा पर कीडे और परवानज गिरते हैं ऐसे ही मन पर संसार के पदार्थों के नक्स पडते रहते हैं। जैसे लैंप की बत्ती सरकारने से लैम्प की रोशनी गर्मी व धुआँ कम हो जाते हैं ऐसे ही मन को रोकने से मन के विकारों में कमी आ जाती है । शुरू में मन के रोकने के लिए मन के बिकारों में कमी आ जाती है।
शुरु में मन को रोकने के लिये यह आदत डालनी चाहिए कि सिर्फ जरूरी व मुनासिब कामों को हाथ लगाया जाए और कोई गैर मुतअल्लिक़ या बेमतलब काम छुआ ना जाए। उसके बाद मन को अंतर्मुख करने की कोशिश करनी चाहिए।
मन को अंतर्मुख करने के लिए ध्यान का अभ्यास निहायत लाभप्रद व प्रभावी है मगर ध्यान ऐसी वस्तु का करना चाहिए जो मन को प्यारी हो और जिसकी याद से मन को एकाग्रता हासिल करने का शौक पैदा हो। संतों ने फरमाया है कि अगर किसी को भाग से सच्चे गुरु मिल जाए तो उनके स्वरूप का ध्यान करना सबसे या ज्यादा कारगर है।।
शाम के वक्त एक जर्मन मिस्टर Paz नौकरी की तलाश में आये। बेचारे बड़ी मुश्किल में है लेकिन क्या किया जाए यहां भी लोग बेकार बैठे हैं । यह साहब सिनेमा फिल्म निर्माण के माहिर है। उनको कहीं से पता चल गया कि दयालबाग का सेठ मोतीलाल से ताल्लुक है। मैंने समझाया कि सेठ मोतीलाल के कारोबार का हमसे कोई संबंध नहीं है और हम लोग किसी सत्संगी के प्राइवेट मामलात में दखल नहीं देते। मिस्टर Paz के मजबूर करने पर एक चिट्ठी सेठ मोतीलाल के नाम लिख दी कि अगर उन्हें जरूरत हो तो इनसे खतों किताबत करें।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
सतसंग के उपदेश-भाग-2-
कल का शेष:-
चुनाँचे महात्मा बुद्ध और जैनों के ऋषभदेव ने, जो कि वेदों और शास्त्रों का जोर शोर से खंडन करते थे, अलग फिर्के कायम किये लेकिन कुछ मुद्दत गुजरने के बाद महात्मा बुद्ध की हिंदुओं के दस अवतारों में ऋषभदेव की हिंदुओं के 24 अवतारों में शुमार होने लगी। इसी तरह 19वीं शताब्दी के आखिरी हिस्से में आर्य समाजी भाई हिंदू नाम से सख्त परहेज करते थे लेकिन अब चंद साल से अपनेतई बखुशी हिंदू तस्लीम करते हैं।
यह सच है कि लफ्ज़ हिंदू के मानी चोर, लुटेरा, गुलाम और नौकर है और नामुमकिन नहीं है कि मुसलमान बादशाहों ने यह नाम भारतवासियों को दिली नफरत के इजहार से इनायत किया हो लेकिन तारीख बतलाती है कि जहां बहुत से नाम धीरे धीरे गिरते जाते है वहां बाज नाम रफ्ता रफ्ता चढते भी जाते है।
मसलन लफ्ज ' गवाँर ' के असली मानी गांव का रहने वाला है लेकिन रफ्ता रफ्ता इस लफ्ज़ के मानी गिरकर बेवकूफ हो गए। 'हलालखोर' के मानी हलाल रोजी खाने वाला और 'मेहतर' के मानी बहुत बड़ा है, लेकिन अकबर बादशाह ने भंगियों पर तरस खाकर उनका नाम हलाल खोर और मेहतर रख दिया तब से यह शब्द उन्हीं के लिए नियत है।'
हरजाई ' के मानी हर जगह रहने वाला है और यह लफ्ज़ खुदा के लिए इस्तेमाल किया जाता था, मगर अब व्यभिचारिणी औरत को कहते हैं। बरखिलाफ इसके लफ्ज " शौक" के मानी दरअसल ढीठ, गुस्ताख थे लेकिन अब चढ़कर माशूकेहकीकी यानी खुदा की शान में आता है।
इसी तरह लफ्ज़ 'बंगाली' से पहले डरपोक व यंत्र मंत्र जानने वाला समझा जाता था लेकिन अब उसके मानी अक्लमंद, होशियार और बहादुर समझे जाते हैं।
अगर हम लोग अपनी रहनी गहनी अच्छी बनाएं और अपने शरीर को तंदुरुस्त और मन को निर्मल बनाकर सच्चे परमार्थियों की सी जिंदगी बसर करने लगें तो लफ्ज हिदूं के मानी भी चढ सकते हैं।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- भाग 1-
कल से आगे -(8) इससे साबित होता है कि संतों का मत कुदरती है उसमें किसी तरह के बनावट या मन और बुद्धि की चतुराई और छल बल को दखल नहीं है और जितनी कार्रवाई उसकी है कुदरती कानून के मुआफिक है ।
पर मन और माया के कानून के बरखिलाफ है, क्योंकि इनका रुझान और झुकाव बाहर और नीचे की तरफ है । और इसी सबब से सब जीवों की सुरत माया की रचना में और पिंड के नीचे के अंगों में फैल कर फँस गई। अब जो कोई संतो के वचन के मुआफिक अपने निज घर की यानी दयाल देश की( जहां से कि आदि में धार प्रकट होकर ब्रह्मांड की रचना करती हुई उतर आई) सुध लेकर और इन बड़े दर्जों की रचना का और हर एक छोटे दर्जे का, जिनको स्थान करके वर्णन किया है , भेद लेकर उसी धार पर (जो कि शब्द की धार है) सवार होकर कुल भंडार यानी राधास्वामी दयाल के चरणों में प्रेम अंग के साथ चले, तो मन और माया की हद से पार होकर एक दिन दयाल देश में पहुंचकर अमर आनंद को प्राप्त होगा।।
(9)और मालूम होवे कि माया की हद में जो दर्जे हैं, यानी पिंड और ब्रह्मांड, उनमें चलने वाली सुरत को जरूर मन और माया से मुकाबिला करके उनके बल को राधास्वामी दयाल की दया की ताकत लेकर तोड़ना पड़ेगा यानी उनके रुख को, जो नीचे और बाहर की तरफ को झुकाव रखता है, जरूर उलटना पड़ेगा । यह काम अलबत्ता मुश्किल है , पर राधास्वामी दयाल की दया से, जो उनके चरणों का प्रेम पैदा हो जावे, आसानी से आहिस्ता आहिस्ता बन सकता है।।
(10) जो जीव की माया के भोग और बिलास में फंस गए और उसी की आशा और मंसा दिल में रखते हैं, उनका छूटना उनके पंजे से मुश्किल है, क्योंकि वे संतो के बचन को नहीं मानेंगे और न उनके हुकुम के बमूजिब कार्रवाई यानी अभ्यास करने को तैयार होंगे। इस वास्ते ऐसे जीव जाहिरी और विद्या बुद्धि के परमार्थ में अटक कर रह गए और सच्चे परमार्थ की कमाई उनसे ना हो सकी। यही सबब है कि दुनिया में कसरत इसी कास्म के जीवो की है और उन्होंने अपने मन और इच्छा के मुआफिक विद्या और बुद्धि से बहुत से मत गढ लिये और उसी में राजी और मगन हैं और नतीजे से बिलकुल बेखबर हैं। और सच्चे परमार्थ का हाल उनसे कहा जावे तो बजाएं मानने के अपनी समझ से उसमें दोष निकालने को तैयार होते हैं और अपना असली नफा नुकसान नहीं बिचारते हैं ।
क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
"दुर्लभ मनुष्य-जन्म """"*
*संसार में मनुष्य-जन्म प्राप्त करना बहुत ही दुर्लभ है चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद बड़े भाग्य से मुक्त्ति का फल देनेवाला यह मनुष्य-जीवन प्राप्त होता है इस चौरासी से छुटकारा पाने का ज्ञान हमें किसी ऐसे गुरु से ही मिल सकता है जो स्वयं सच्चा जानकर हो जो चौरासी से मुक़्त होने का निजी सच्चा ज्ञान रखता हो इसलिए आज अगर हम संसार की जिम्मेदारियों को निभाते हुए गुरु की बताई भक्त्ति में लगे रहेंगे तो हमारे द्वारा किये गये अच्छे या बुरे कर्मो का हम पर कोई असर नहीं होंगा ......*।।
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