चलते चलते...
खोज महाभारत के समय की
बी आर चोपड़ा का लोकप्रिय टीवी धारावाहिक महाभारत एक बार फिर टीवी पर प्रसारित हो रहा है। विदेश में भी इसे लगातार दिखाया जा रहा है। रोचक कहानी होना इसकी मुख्य वजह है। यही वजह है कि इस धारावाहिक की कहानी और चरित्रों को लेकर शो के शुरू होने से पहले दर्शक आपस में खूब बातें करते दिखते थे। लेकिन ज्यों ही धारावाहिक का टाइटिल ट्रैक यानी अथ श्री महाभारत कथा.... के बाद युगे युगे... होता था, दर्शक एकदम खामोश हो जाते थे। ऐसा क्यों होता था?
इसकी वजह थी टीवी स्क्रीन पर कुछ ऐसा आना, जिससे महाभारत के आगे की कहानी को समझना दर्शकों के लिये आसान होता था। हम बात कर रहे हैं समय की। मैं समय हूं..., तब पर्दे पर एक चक्र का घूमना, मूर्ति की आकृति का आना, तारे ग्रह नक्षत्र का आकाश में भ्रमण करना, जैसे सब आपस में बातें कर रहे हों, कोई रणनीति बना रहे हों, इन कारणों से दर्शकों के मन में उत्सुकता भर जाती थी। फिर उस संवाद की भी बड़ी भूमिका थी यानी मैं समय हूं... की और इससे भी ज्यादा बड़ी भूमिका उस आवाज़ की थी, जिसे सुनते हुए ऐसा लगता था, मानो यह टीवी से नहीं आ रही हो, सीधे आकाशवाणी हो रही हो।
लोगों को यह शायद मालूम न हो, इस आवाज के लिये पहले बी आर कैम्प में एक बैठक हुई। बैठक में यूनिट के तमाम बड़े लोग शामिल थे, मसलन खुद चोपड़ा साहब, पटकथा व संवाद लेखक राही मासूम रज़ा, गीतकार व संवाद लेखक पंडित नरेंद्र शर्मा, यूनिट में अहम पद संभालने और मामा शकुनि की भूमिका निभाने वाले गुफी पेंटल के साथ ही रवि चोपड़ा। तब इस आवाज के लिए जिन लोगों का कागज़ पर चयन हुआ था, वे थे दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, रज़ा मुराद, कबीर बेदी, ओमपुरी और शत्रुघ्न सिन्हा। सबने अपनी अपनी बात रखी, लेकिन चोपड़ा साहब का मानना था कि यह आवाज़ आम लोगों में पहचान रखने वाली है। खास अंदाज वाली आवाज़ नहीं है। इन लोगों की आवाज़ अनोखी नहीं हो सकती दर्शकों के लिए। लोग कहेंगे, यह फलां की आवाज़ है, जो मेरे ख्याल से सही नहीं होगा और यदि आप सब इनमें से ही किसी को लेना चाहते हैं, तो फिर दिलीप कुमार को ही क्यों न लिया जाये?
उनकी बात सुनकर एक पल को सब खामोश हो गए। जाहिर था, चोपड़ा साहब की बात को कौन काटे? सबको पता था कि दिलीप कुमार और चोपड़ा साहब के रिश्ते कितने गहरे हैं। फिर उन्होंने खासकर रज़ा साहब और पंडित जी से राय ली। दोनों ने माना तो, लेकिन पंडित नरेन्द्र शर्मा ने कहा, चूंकि यह आवाज़ अलौकिक होनी चाहिए, एक तरह से आकाशवाणी जैसी, तो हमें अभी कुछ सोचना चाहिये। रज़ा साहब ने भी उनकी बात का स्वागत किया।
कुछ दिन बीत गए, तो एक दिन चोपड़ा साहब ने दिलीप कुमार से इस बारे में बात की। उन्होंने कहा कि हम महाभारत के सूत्रधार के लिए आपकी आवाज़ का इस्तेमाल करना चाहते हैं। दिलीप कुमार ने पूरी बात सुनी तो कहा, बेहतर होगा कि इसके लिए आप किसी प्रोफेशनल वॉइस आर्टिस्ट की आवाज़ का इस्तेमाल करें। यही ज़्यादा सही होगा। जब दिलीप कुमार की राय चोपड़ा साहब ने लेखक राही मासूम रज़ा को बताई, तो उन्हें भी दिलीप कुमार की राय सही लगी।
अब लगातार कुछ दिनों तक बी आर चोपड़ा टीवी और रेडियो पर ध्यान लगाकर उन आवाजों को सुनते रहते। जो उन्हें कुछ सही लगे, उनका नाम लिखा। उन्होंने अपने पास में एक ऐसा व्यक्ति बिठा लिया, जो यह बता सके कि यह आवाज़ किसकी है। एक ऐड फ़िल्म की आवाज सुनकर बी आर चोपड़ा ने पूछा कि ये किसकी आवाज़ है? उन्हें नाम बताया गया। अगले दिन आवाज़ सुनकर अन्य लोगों से भी राय ली गयी। फिर तय हुआ कि इस कलाकार को बुलाया जाए। फिर क्या था, महाभारत के कास्टिंग डायरेक्टर गुफी पेंटल ने उनसे संपर्क किया और रिकार्डिंग के लिए उन्हें बुलाया गया।
उस कलाकार ने कहा, चूंकि मुझे रात को दस बजे रिकॉर्डिंग के लिए बुलाया गया था, तो मैंने मना कर दिया। मैंने गुफी पेंटल को कहा कि शाम को सात बजे के बाद रिकॉर्डिंग नहीं कर सकता, क्योंकि दिन भर बोलते बोलते मैं थक जाता हूँ और तब मेरी आवाज भी सही नहीं रह जाती। गुफी ने कहा, नखरे मत कर। सीधे आ जा। मैं रिकॉर्डिंग के लिए स्टूडियो पहुँच गया हूं और वहां बी आर चोपड़ा, डॉक्टर राही मासूम रजा और पंडित नरेंद्र शर्मा बैठे हुए हैं। अब कुछ बताने को बचा ही नहीं। मैं सीधे पहुंच गया स्टूडियो। देखा कि सभी बैठे हैं। औपचारिक बातों के बाद सीधे मुझे स्क्रिप्ट दी गयी और माइक पर बोलने को कहा गया। मैंने जितना समझा, पढ़ दिया, जो किसी को पसंद नहीं आया।
रजा साहब ने कहा, सुनकर ऐसा लग रहा है जैसे आप डॉक्यूमेंट्री पढ़ रहे हैं। थोड़ा आराम से पढिये। फिर एक के बाद एक, चार बार पढ़ाया गया। उसके बाद मुझे गाड़ी से घर भेज दिया गया। मैं भी निश्चिंत था कि शायद लोगों को पसंद नहीं आया होगा, लेकिन कुछ दिनों बाद गुफी जी का कॉल आया। मैं वहां गया। मुझसे स्क्रिप्ट दी गयी, पढ़ा, लेकिन फिर रज़ा साहब राजी नहीं हुए। उन्हें मज़ा नहीं आया। मुझे फिर घर भेज दिया गया। दो दिन बाद फिर बुलाया गया और वही सिलसिला शुरु हुआ। बुलाया जाता, रिकॉर्डिंग होती और फिर भेज दिया जाता। अंत में जब चौदह दिन बीत गए ऐसा होते, तो मैंने हिम्मत कर पूछ लिया कि आखिर ये समय है क्या?
तब रज़ा साहब ने विस्तार से समझाया कि ये महाभारत के समय की आवाज़ है। एक तरह से सूत्रधार, आकाशवाणी। फिर मैंने पूछा स्क्रीन पर क्या होगा? तो जवाब आया कुछ खास नहीं। कुछ चक्र ग्रह तारे आदि दिखाए जा सकते हैं। फिर इसको लेकर काफी चर्चा हुई। अंत में फिर कोशिश हुई, तो रज़ा साहब ने कहा, आपकी आवाज पसंद है, अंदाज़ नहीं। इस बार मैं काफी सोच समझकर माइक पर गया। ये जेहन में चल रहा था कि इस अंदाज से बोलूं जैसे आम इंसान नहीं बोलता है। ऐसा कुछ जो ईश्वर की आवाज़ लगे, समय की आवाज़ लगे। यह सोचकर जब मैंने संवाद को बोला, तो वहां रिकॉर्डिंग में मौजूद लोगों को पसंद आया। लेकिन रिकॉर्डिंग सुनने की उत्सुकता सभी में थी कि वहां आवाज़ का अंदाज़ क्या और कैसा है? जब लोगों ने सुना, तो सभी खुश हो गए। सबने कहा, हमें समय की आवाज़ मिल गयी। जब काम पर्दे पर आया और लोगों ने सुना, फिर क्या कहना था। यह आवाज़ दर्शकों के दिलों में उतर गई और समय की आवाज़ ने इतिहास रच दिया।
समय में आवाज़ मशहूर वॉइस ओवर आर्टिस्ट हरीश भिमानी की थी, जो लोगों की जुबान पर तब चढ़ गए थे, मैं समय हूं....
-रतन
No comments:
Post a Comment