*परम गुरु हजूर साहबजी महाराज
-【संसार चक्र】-
कल से आगे
:-( पांचवा दृश्य)-
(तीसरे पहर का वक्त है। राजा दुलारेलाल, रानी इंदुमती और राजा साहब पेद्दापुरम बँगले के कमरे में बैठे हैं।) दुलारेलाल -(राजा साहब पेद्दापुरम से) अपने बड़ी कृपा की जो हम नाचीजों को घर बैठे दर्शन दिये।
राजासाहब -आपके दर्शन करके चित्त बड़ा प्रसन्न हुआ। जब मैंने सुना कि आप जल्दी देश को लौटने वाले हैं यही जी चाहा कि फौरन् चल कर दर्शन कर लूँ। इसलिए बिलाइत्तिला दिये चला आया।
दुलारेलाल व इंदुमती- कृपा ,कृपा।
दुलारेलाल- मगर आप हिंदी बहुत साफ बोलते हैं हालांकि आपकी देशभाषा तैलंग है।
राजासाहब- मैं इस विचार का आदमी हूं जब तक सारे भारत की एक भाषा ना होगी इसका उबार न होगा। इसलिए मैंने परिश्रम करके हिंदी भाषा सीख ली है और यह भाषा है भी बड़ी सरल।
दुलारेलाल- हम लोगों ने आप के बँगले में रह कर बड़ा आराम पाया है, आपका किस जबान से शुकराना अदा करें?
राजासाहब-( मुस्कुराकर) बँगला वँगला आप ही का है मगर यह तो बतलाइए आपके प्रश्न का क्या फैसला हुआ ? संसार सत्य ठहरा या मिथ्या?
( तीनों हंसने लगते हैं।)
दुलारेलाल- यहाँ कोई तुलसी बाबा रहते हैं, उनकी कथा में गये थे, इसी विषय पर बहस थी मगर कुछ तय नहीं हुआ।
राजासाहब- असल में यह विषय है ही बड़ा कठिन। लोग इस पर शास्त्रार्थ तो करने लगते हैं पर इसके अंदर में नहीं जाते। कल की कथा का हाल मेरे सुनने में आया। तुलसी बाबा को उत्तर अच्छा तो था पर अधूरा था।
इंदुमती- कथा में जाने से पहले दरिया के किनारे जो बातें परमात्मा के बारे में मैंने कही वहीं तुलसी बाबा ने कहीं।
दुलारेलाल-( हंसकर) तो क्या तुलसी बाबा ने कोई नई बात नहीं कही? ऐसे तो उस दीवाने ने भी कह दिया था कि गोदावरी के किनारे जाकर पिस्सू ढूँढो। क्या दीवाने को मेरे प्रश्न की और कथा की खबर थी। नही नही, यह महज इत्तेफाक है।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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