परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र-
भाग-1- कल से आगे-( 5)
अजपा जाप यानी स्वाँसा से सोहं शब्द के सुमिरन का ऊपर के दर्जे से कुछ ताल्लुक नहीं है और इस अभ्यास की पहुंच किसी मुकाम पर नहीं है। सिर्फ थोड़ी सफाई बल्कि इससे हो सकती है।।
(6) यही भारी सबूत आवागमन की है कि जब तक निर्मल चेतन देश में सुरत न पहुंचेगी, तब तक किसी न किसी किस्म के खोल में रहेंगी और वह खोल या गिलाफ उसकी देह समझनी चाहिए। और जन्म मरण गिलाफ का है न कि सुरत या रुह का।
फिर सुरत जो एक देह को छोडती है तो जरुर दूसरी देह उसको धरनी पड़ती है, चाहे इस लोक में चाहे ऊँचे या नीचे के लोक में। और जिन मतो में आवागमन नहीं मानते हैं, उनसे पूछना चाहिए कि स्वर्ग और नरक और स्वर्ग और नर्क के बीच का स्थान ,में यह रूहें कौन और किस किस्म की देह रख कर दुख सुख पावेंगी।
इस बात का वे जवाब साफ तौर पर नही नहीं दे सकते हैं, क्योंकि सुरत बगैर देह के तो पूर्ण आनंद स्वरूप है, उसको किसी सूरत में दुख सुख नहीं हो सकता है। और दुख सुख के भोगने के वास्ते देह का होना जरूरी है और रुह या सुरत जब स्वर्ग और नरक में,जो तीन मुकाम जुदा इस लोक से है,जाती है और वहां दुख सुख भोगती है, तो कोई न कोई देह में जरूर उसकी बैठक होगी।
तो इस लोक की देह से उस देह में उन स्थानों में जाना आवागमन को साबित करता है। और इल्म नजूम पढने से बहुत सा हाल रचना का कि किस तौर से शुरू हुई और किस कदर अरसे दराज से चली आती है, मालूम हो सकता है और उससे किसी कदर अनुमान ऊँचे की रचना का हो सकता है।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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