*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -【
संसार चक्र】
कल से आगे:-
तुलसी बाबा- मुझसे अब गृहस्थी ना हो सकेगी।
राजा साहब- महाराज आपको गृहस्थी करने के लिए कौन कहता है ? एक दूसरे का दुख सुख में साथ देना एक बात है, मोह जाल में पड़ना दूसरी बात है।
तुलसी बाबा -मेरा एक भाई भी था जो मुद्दत हुई पुलिस में भर्ती होकर कुरुक्षेत्र चला गया था।
दुलारेलाल -क्या उसकी कोई औलाद भी थी?
तुलसी बाबा -चार छः महीने का एक लड़का था ।
इंदुमती-( दुलारेलाल से) हैं? कहींवही ना हो।
दुलारेलाल- बाबा जी शायद हमने तुम्हारे उस भाई और भतीजे को भी देखा है। हम यहाँ कुरुक्षेत्र तीर्थ यात्रा करके आये थे। ( राजासाहब से) श्रीमान जी! यह तो समुंदर की लहरों वाला ही हाल दिखाई देता है।
( तुलसी बाबा सोच में पड़ जाता है)
राजासाहब- यह संसार बड़ा विचित्र है। न इन चर्मेंद्रियों से इसका असली रूप नजर आ सकता है , न इस स्थूल बुद्धि से इसका तत्व समझ में आ सकता है।
दुलारेलाल- श्री महाराज! मैं आपसे क्या कहूं, कहते लज्जा भी आती है , हैरानी भी होती है।
राजा साहब -नहीं-नहीं फरमाइए लज्जा की क्या बात है।
दुलारेलाल बात यह है कि एक वक्त था कि हमारे यहां बच्चा पैदा हुआ और हमें नाच रंग की सूझी, वह बच्चा बीमार हुआ तो हमें खैरात की सूझी,बच्चा मर गया तो तीर्थयात्रा की सूझी, तीर्थयात्रा को कुरुक्षेत्र गये, वहां ठोकर लगी तो ज्ञान की सूझी, यहाँ आए तो बरामदे में बैठने की सूझी, दीवाने से हंसी की तो दरिया के किनारे लंबी सैर को करने की सूझी, सैर की तो कथा सुनने की सूझी, कथा सुनी तो हृदय की शुद्धता की सूझी, अब श्रीमानों से मुलाकात हुई तो आगे बढ़ने की सूझ रही है।
तुलसी बाबा- बड़े संस्कारी हो।
दुलारेलाल- समुंद्र की लहरें ठुकराते ठुकराते यहां तक ले आई हैं, अब इतनी कृपा और हो तक पहुंच जायँ।
राजा साहब- कहिये तुलसी बाबा ,महाराज की शांति कराओ ।
तुलसी बाबा- मुझे तो जो कुछ आता है महाराज कल सुन चुके हैं ,अब आप ही कुछ सुनाइये।
राजा साहब- आपने कल यह सत्य कहा था कि मन, इंद्रियाँ और बुद्धि आत्मा परमात्मा के संबंध में कुछ नहीं कह सकती। अब महाराज का प्रश्न है- संसार सत्य है या असत्य ? मैं कहता हूं साधारण मनुष्य को इस बारे में कुछ भी कहने या जानने का अधिकार नहीं है। संसार तो संसार है, न कम न ज्यादा। जो चीज हमें अच्छी नहीं लगती, हम उसे बुरा ठहरा देते हैं हालांकि वह बेचारी तो जो कुछ है सो है। दूसरे आदमी को या दूसरी हालत में अपने ही को अच्छी लग सकती है। बात यह है कि मनुष्य चाहता है संसार पर अपना राज चलाना। वह चाहता है कि संसार का सब कारखाना उसकी मर्जी के मुआफिक चलें और होता नहीं है। सो वह कभी निराश होता है और कभी संसार को नाशमान् कभी धोखेबाज, कभी मिथ्या कहता है और कभी आत्मा परमात्मा में दोस्त निकालता है। अगर मनुष्य अपनी मर्जी ना अडाये तो न यह हालतें पैदा हो ,न उल्टी-सीधी बातें सुनने में आवें।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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