Saturday, July 4, 2020

परम् पुरुष हुजूर डॉ लाल साहब के अनमोल वचन





- 10 फ़रवरी, 1983-

आज सुबह ‘परम गुरु मेहताजी महाराज के बचन’ से एक बचन पढ़ा गया, जिसमें ज़िक्र था कि किसी बड़े प्रोग्राम के काम में हमें माल, पूँजी और आदमियों की ज़रूरत पड़ती है। अतः आपको आदमियों की ज़रूरत है और आपको अनुशासित रहना है। सतसंग प्रोग्राम को पूरा करने के लिये हम अनुशासित लोग चाहते हैं। आपको सतसंग का सिपाही बनना है इसलिये केवल अनुशासित ही नहीं बल्कि शरीर से स्वस्थ तथा दिल व दिमाग़ से रोशन भी होना है। अगर आप सतसंग में शामिल हुए हैं तो आपका फ़र्ज़ है कि सतसंग के सिपाही बनें। हुज़ूर राधास्वामी दयाल की योजना मानव-मात्र के उद्धार की है। आप को सतसंग के सिपाही की तरह अपना कर्त्तव्य पालन करना है। प्रोग्राम पूरा अवश्य होगा- चाहे आप राज़ी से करें या बेराज़ी से, आप लोगों को करना ही है। अगर आप ख़ुशी से करेंगे तो आनन्द मिलेगा। अगर आप हिचकिचायेंगे और प्रोग्राम में हिस्सा नहीं लेंगे तो आपसे ज़बरदस्ती करवाया जायेगा और तब आप उसे सजा समझेंगे। लेकिन हुज़ूर राधास्वामी दयाल सजा नहीं देते, लेकिन आप लोग ऐसा महसूस करते हैं क्योंकि आप उनके आदेशों का पालन नहीं करते। बल्कि इससे एक सच्चे सतसंगी और हुज़ूर राधास्वामी दयाल के भक्त की तरह आपको सतसंग के भविष्य के प्रोग्रामों में ख़ुशी से पूरी तरह शामिल होने में सहायता मिलेगी। अगर आप सब लोग आपस में सहयोग से काम करें तभी यह सम्भव हो सकता है। सतसंगियों का आपस में मतभेद और झगड़ा नहीं होना चाहिए। आप लोगों को प्रेम-प्रीति से व्यवहार करना चाहिये। अगर आप लोग इन निदेर्शों (directions) का पालन करेंगे, तो मुझे यक़ीन है कि मालिक की दया आपके साथ रहेगी।

(परम गुरु हुज़ूर डॉ. लाल साहब के बचन, प्रेम प्रचारक 21 मार्च, 1983 का अंश)
[7/1, 21:57] Mamta Vodafone: ’परम गुरु मेहताजी महाराज के बचन’ भाग-2 से बचन नं. 130 पढ़ने की हिदायत दी गई। फ़रमाया कि उसका आख़िरी पैराग्राफ़ बहुत महत्वपूर्ण (important) है। वह इस प्रकार है-

’’अगर कोई मनुष्य अपने आपको इस तरीक़े के मुताबिक़ जिसका कि ज़िक्र ऊपर किया गया है स्वभाव से और इरादे से किफ़ायतशार बनाने की कोशिश करता है और वह अपनी साँस और निगाह को जाया नहीं करता यानी वह एक भी ऐसा साँस नही लेता जिसके साथ-साथ पवित्र नाम का जाप नहीं करता और एक भी निगाह किसी चीज़ पर नहीं डालता बग़ैर यह महसूस किये कि वह कुल मालिक की बनाई हुई है और आँख बन्द करने पर उसी मालिक का ध्यान करता है, तो इस तरह से प्रकृति और कुल मालिक के साथ अनुकूलता व एकता करता है। ऐसी दशा में वह बीच की सारी मंज़िलें चाहे कितनी ही कठिन व दुर्गम हों तय करके अन्त में अपनी मंज़िल यानी राधास्वामी धाम में आसानी से पहुँच जाता है, जहाँ पर पहुँच जाने के बाद वह अपनी सख़्त मेहनत व मशक्कत और मितव्ययिता के मीठे और स्वादिष्ट फल खाता है यानी अमृत पान करता है और पूरी तरह से हुज़ूर राधास्वामी दयाल के साथ एक हो जाता है।’’
[7/1, 21:57] Mamta Vodafone: सतसंग व्यवस्था की सफलता में पाँच सीढियाँ

रविवार 27 मार्च, सन् 1983 को शाम के सतसंग में बचन भाग-2 से परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज का बचन नं. 217 पढ़ा गया। सतसंग के बाद ग्रेशस हुज़ूर ने फ़रमाया:-

‘‘अभी आपने बचन सुना उसमें सतसंगियों के लिए हिदायतें (instructions) हैं। अगर उसको संक्षिप्त रूप (short form) में कहें तो पहला है- आदेश  (order) दूसरा - आज्ञापालन (obedience) और तीसरा है- सहनशीलता (tolerance) यानी अगर कोई (अप्रिय) बात हो जाए तो उसे बरदाश्त कर लें। झगड़ा न करें।

अगर इसमें आप एक बात-सहयोग (Co-operation)और जोड़ (add कर) दें तो आप ‘न्यू वर्ल्ड आर्डर’ (New World Order - नवीन सांसारिक व्यवस्था) की तरफ़ क़दम रक्खेंगे और वह न्यू वर्ल्ड आर्डर होगा- भाईचारे (Brotherhood) का।

सहनशीलता में कभी-कभी ऐसा हो सकता है कि आपका रवैया नकारात्मक (negative approach) हो जाये अर्थात् चुप होकर बैठ गये। उतना काफ़ी नहीं है। प्रतिक्रिया अनुकूल (positive response) हो। एक-दूसरे से सहयोग (Co-operate) करो, ये ’अनुकूल रवैया’ ('positive response') है। अगर ऐसा होगा तो भाई-चारा क़ायम (brotherhood achieve) करने में सहूलियत होगी।

(1) आदेश (order), (2) आज्ञापालन (obedience), (3) सहनशीलता (tolerance), (4) सहयोग (co-operation) और (5) भाईचारा (brotherhood)- सफलता की ये पाँच सीढ़ियाँ हैं।

इसके बाद बड़ी पोथी से मौज से शब्द निकालने का आदेश दिया, शब्द निकला-

गुरु कहें पुकार पुकार। समझ मन कर लो सुमिरनियाँ।।

(सारबचन, ब.15, शब्द 21)



(प्रेम प्रचारक 4 अप्रैल, 1983)

(पुनः प्रकाशित 28 फ़रवरी, 2005)



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