सतसंग व्यवस्था की सफलता में पाँच सीढियाँ
रविवार 27 मार्च, सन् 1983 को शाम के सतसंग में बचन भाग-2 से परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज का बचन नं. 217 पढ़ा गया। सतसंग के बाद ग्रेशस हुज़ूर ने फ़रमाया:-
‘‘अभी आपने बचन सुना उसमें सतसंगियों के लिए हिदायतें (instructions) हैं। अगर उसको संक्षिप्त रूप (short form) में कहें तो पहला है- आदेश (order) दूसरा - आज्ञापालन (obedience) और तीसरा है- सहनशीलता (tolerance) यानी अगर कोई (अप्रिय) बात हो जाए तो उसे बरदाश्त कर लें। झगड़ा न करें।
अगर इसमें आप एक बात-सहयोग (Co-operation)और जोड़ (add कर) दें तो आप ‘न्यू वर्ल्ड आर्डर’ (New World Order - नवीन सांसारिक व्यवस्था) की तरफ़ क़दम रक्खेंगे और वह न्यू वर्ल्ड आर्डर होगा- भाईचारे (Brotherhood) का।
सहनशीलता में कभी-कभी ऐसा हो सकता है कि आपका रवैया नकारात्मक (negative approach) हो जाये अर्थात् चुप होकर बैठ गये। उतना काफ़ी नहीं है। प्रतिक्रिया अनुकूल (positive response) हो। एक-दूसरे से सहयोग (Co-operate) करो, ये ’अनुकूल रवैया’ ('positive response') है। अगर ऐसा होगा तो भाई-चारा क़ायम (brotherhood achieve) करने में सहूलियत होगी।
(1) आदेश (order), (2) आज्ञापालन (obedience), (3) सहनशीलता (tolerance), (4) सहयोग (co-operation) और (5) भाईचारा (brotherhood)- सफलता की ये पाँच सीढ़ियाँ हैं।
इसके बाद बड़ी पोथी से मौज से शब्द निकालने का आदेश दिया, शब्द निकला-
गुरु कहें पुकार पुकार। समझ मन कर लो सुमिरनियाँ।।
(सारबचन, ब.15, शब्द 21)
(प्रेम प्रचारक 4 अप्रैल, 1983)
(पुनः प्रकाशित 28 फ़रवरी, 2005)
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