Sunday, July 5, 2020

प्रेम प्रचारक का अंक Dr. लाल साहब को समर्पित




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 परम गुरु हुजूर डा० लाल साहबके भंडारा के पावन अवसर पर यह प्रेम प्रचारक-विशेषांक उनके चरण कमलों में अत्यंत श्रद्दा व दीनता के साथ सादर समर्पित है।। 
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××दयालबाग आगरा, सोमवार, 10 जुलाई, 2017:- 

        
   जीव चिताय रहे राधास्वामी। सतपुर निजपुर अगम अधामी।।।                   
भाग उदय जीवन भारी। राधास्वामी जिन घर चरन पधारी।।।                     
अपनी दया से गुरु दियो दाना। सेवक तो कुछ माँग न जाना।।। 
  दया करें जब सतगुरु अपनी। बिना मांग करवावें करनी।।।                   
नाम अनाम पदार्थ नयारा। सो सतगुरु दीन्हा कर प्यारा।।         
 अब देवें तो कुछ न रहाई। सतगुरु ही तेरे हुए भाई।।।।           
   ( सारबचन शब्द 6)...

    वैसे दुनिया में रहकर आराम तकलीफे और परेशानियों तो आती ही है ...

.ऐसे ही लाइफ में होते हैं ups and downs,जो भी ups and downs life  लाइफ के हैं उनसे यहां कोई रुकावट नहीं होती। prigress तो सत्संग में होती ही रहेगी, परमार्थी progress भी होती रहेगी । लेकिन इस तरह के ups and downs आ जाएं तो उनसे upset नहीं होना चाहिए बल्कि उससे यही interpret करना चाहिए कि किसी भी progress में ऐसे Movements  में,। इस तरह की चीजें पैदा हो सकती है।

साहबजी महाराज का यह फरमान, यह हुक्म  कि Satsang Community, Humanity की बड़ी-बड़ी सेवाओं के लिए चुन ली गई है और सुपरमैन की नसल कायम होगी, जैसा कि आपने सतसंग की पोथियों में पढ़ा होगा- कहीं बाहर से बनके नहीं आएगी, आप ही लोगों से यह नसल तैयार होंगी, इसका आप पूरा विश्वास रखें और इस विश्वास को लेकर अगर आप आगे बढ़ेंगे, काम करेंगे, तो आपको sucess जरूर मिलेगी।             

 आप सब दयालबाग में रहते हैं।दयालबाग का एक pattern of life है। आप सब लोगों के चेहरे पर दयालबाग की छाप होनी चाहिए ।आप कहीं भी जाएं, किसी सेsphere of life में enter करें ,कहीं भी कोई जॉब या काम टेक-अप करें, आप का रहन-सहन, खाने पीने का तरीका एक दूसरे से बर्ताव ऐसा होना चाहिए कि एक distinct pattern   मालूम हो, लोग कहे "अच्छा ये दयालबाग के है"। यह बहुत जरुरी चीज है।..... मुझे उम्मीद है जो आपने सेवा ली है और जिम्मेदारियाँ ली है, उनको और आगे बढ़ावेंगे,मालिक आपकी मदद करेंगे।

( प्रेम प्रचारक,25 दिसंबर 1978, पुनः प्रकाशित 17 फरवरी 2003)



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*परम गुरु हुजूर डा० लाल साहबजी के बचनांश-24 जनवरी 2007-

बुधवार -  लोग कहते हैं-सेवा करते हैः कभी कभी सोचता हूँ,कौन सैवा करता है,कौन सैवा कर सकता है हम क्या करेंगे,मेरे ख्याल से लोग मुगालते में है।

 मन में कुछ न कुछ,कहीं न कहीं किसी कोने में कोई न कोई स्वार्थी विचार मौजूद होता है। मैं तो कहूँगा मजदूरी करते है।किसी को advantage (सुविधा) चाहिए, कोई  benifit(फायदा) चाहिये consciously (जानते हुए) uncosciouslly (अनजानते हुए)ः

 असली सेवा तो यह है कि तन और मन दोनो सपुनमलि हो जावे,पानी पानी हो जायें।ऐसी सेवा करो।ऐसी सेवा अगर कर सकोगे तो सुरत को आजादी मिलेगी। फिर सुरत की सेवा अच्छी होगी।

 जब तन के और मन के झगडे में पडे रहे तो क्या फायदा।जब तक तन मन रगडोगे नही तब तक काम नही होगा।

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