||शब्द||
*(*परम पुरुष पूरन धनी हुजूर स्वामीजी महाराज)
प्रेमी सुनो प्रेम की बात।।।
सेवा करो प्रेम से गुरु की ।और दर्शन पर बल बल जात।। बचन पियारे गुरु के ऐसे। जस माता सुत तोतरि बात।।।
जस कामी को कामिन प्यारी ।अस गुरमुख को गुरु का गात।।।
खाते-पीते चलते-फिरते। सोवत जागत बिसर न जात।।
खटखत रहे भाल ज्यों हियरे । दर्दी के जो दर्द समात।।
ऐसी लगन गुरु संग जाकी। वह गुरमुख परमार्थ पात।।
जब लग गुरु प्यारे नहीं ऐसे। तब लग हिरसी जानो जात।। मन्मुख फिरे किसी का नाही। कहो क्यों कर परमारथ पात।।
राधास्वामी कहत सुनाई । अब सतगुरु का पकड़ो हाथ।।
( सारबचन, वचन 8)
परम गुरु हुजूर डॉक्टर लाल साहब के बचन:-
22 अप्रैल 1981 को शाम के सत्संग के बाद "प्रेम उपदेश" का पहला बचन पढ़ा गया जो इस प्रकार है:- "दीनता और दासानुदासता से सतगुरु और सत्यपुरुष राधास्वामी राजी होते हैं और प्रमाण इसका प्रगट है कि सबको दीनता पसंद है और दीनता और दासानुदासता में निहायत शीतलता और आराम और बेफिक्री है और आपा ठानने और अहंकार करने में निहायत तकलीफ और निरासता है।"
सत्संग के पश्चात ग्रैशस हुजूर ने दया करके फरमाया- "आपने अभी सुना की दीनता और दासानुदासता से कैसी बड़ी शीतलता, बेफिक्री और चित्त को शांति मिलती है परंतु जो आपा ठानकर या जिद करके कोई काम अपनी मर्जी से करना चाहते हैं तो उसमें तकलीफ है ।यह वचन कल भी पढ़ा गया था और आज भी आप लोगों के फायदे के लिए पढवाया गया है। साउथ इंडिया से जो सत्संगी भाई और बहनों आए हैं उनके फायदे के लिए अंग्रेजी में ऐसा कह सकते हैं:-
Humility and submissiveness lead of calmness,peace of mind and tranquility. While egotism and arrogance lead to trouble.".
इस सिद्धांत को अगर सेवा के कामों में भी लागू करें तो लाभदायक शिक्षा मिलती है। जब किसी को सेवा मिलती है या सेवा करने का मौका मिलता है उस समय अगर उसने सेवा दीनता और दासनुदासता के भाव से की तब तो उसका नतीजा अच्छा होता है और अगर सेवा करने में उसको अहंकार या घमंड हो गया या कुछ जीद भी हो गई तो उसका नतीजा खराब होता है ।
सेवा परमार्थ की तरक्की के लिए एक जरिया है पर अगर एहतियात ना करें, सतर्क ना रहे तो वह परमार्थी तरक्की में नुकसान भी पहुंचा सकती है। क्योंकि अगर सेवा करने वाले को अपने कार्य कुशलता का घमंड हो गया तो उसकी सेवा सब बेकार।
अगर 10 काम अच्छे किए मगर एक काम खराब किया जो अच्छे कामों का असर मिट गया और खराब वाले का असर ऊपर आ गया। इसी बात पर यह बचन दोबारा पढ़वाया गया कि लोग इसको समझ ले और इसका फायदा उठावें।।
इसके बाद प्रेमबानी भाग 3, बचन 19 गजल 10 की कड़ियां 7-8 और 9 पढवाई गई :-
"कभी मेहर से शहद देवें तुझे ।मुनासिब समझ जहर देवें तुझे ।।।
तू चुप होके ले और भ सिर पर चढ़ा। तू खुश हो के पी और कह यह सदा।।।
कि धन धन है धन धन है सतगुरु मेरे । उतारेंगे भौजल से बेशक परे।।
(प्रेम प्रचारक 11 मई 1981),( पुनः प्रकाशित 12 अप्रैल* 2004)
**(परम गुरु हुजूर डा० लाल साहब के बचन -स्पेनिश पर्यटक खेतों में ग्रैशस हुजूर से मिले)----
16 अगस्त 1980:- सबह खेतों में 4 नौजवान लडके और एक लडकी आये। उनमें से दो इण्डियन नस्ल के भाई भाई थे जो स्पेन में बस गये है और बाकी दो लडके और लडकी स्पेनिश नस्ल के थे।
वे ग्रैशस हुजूर के पास गये एक इण्डियन नस्ल के लडके ने जो इग्लिश बोल सकता था, कहा कि वे सब स्पेन से आ रहे है और दयालबाग के बारे में उन्होंने कुछ पुस्तकें पढी है और राधास्वामी मत में अभिरुचि रखते है। वे भारत वर्ष दो माह के लिये आये है और भिन्न भिन्न स्थानों का पर्यटन कर रहे है। दरयाफ्त करने पर उसने कहा पॉल ब्रन्टन द्वारा रचित "A search in secret India" और एक स्पेनिश औथर द्वारा रचित " India of saints" में दयालबाग के बारें में पढा है।
ग्रैशस हुजूर ने उन्हें "राधास्वामी-मत- दर्शन" जो कि अंग्रेजी में भी मिलती है और जिसमें सादा अंग्रेजी में राधास्वामी सिद्धांत वर्णन किये है , पढ़ने का परामर्श दिया। ग्रैशस हुजूर ने यह भी फरमाया कि संपूर्ण मत को कुछ मिनटों में समझ लेना संभव नहीं है और इसलिए उनके लिए यह आवश्यक है कि पहले वह पुस्तक पढ़े। राधास्वामी-मत- दर्शन सारांश बतलाती है और जिज्ञासु के मन में जो प्रश्न उठते हैं उनमें से बहुत अधिक के उत्तर देती है।
निस्सन्देह दयालबाग के सामाजिक आर्थिक विकास के विषय में, जो कि बाद की बातें हैं कुछ वर्णन नहीं करती है । परंतु लड़कों की प्रार्थना पर कि वे दयालबाग से कुछ घंटे बाद चले जाएंगे इसलिए राधास्वामी मत को उनके सामने संक्षेप में वर्णन किया जावे। ग्रैशस हुजूर ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और जो सारांश वर्णन किया उसे हम नीचे अपने शब्दों में लिखते हैं:-
राधास्वामी मत को हुजूर स्वामीजी महाराज ने संस्थापित किया वह सच्चे कुल मालिक के अवतार थे। वह दया करके सर्वोच्च राधास्वामी धाम से इस संसार में मनुष्य- रूप में मानवता की रक्षा के लिए पधारे । हम उनको भी राधास्वामी कहते हैं।।
राधास्वामी शब्द रचना से संबंधित आध्यात्मिक धार से उत्पन्न होने वाले प्रथम शब्द को प्रकट करता है समस्त रचना राधास्वामी शब्द से प्रकट हुई।।
आप राधास्वामी शब्द के उचित आंतरिक जप(सुमिरन) द्वारा इस लोक को सर्वोच्च धाम के बीच आने वाले लोको की यात्रा कर सकते हैं। हमारे शरीर के अंदर इन सबके केंद्र विद्यमान हैं। जैसे भौतिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए आपके पास ज्ञानेंद्रियां- जैसे कान, नाक ,आंख आदि हैं उसी प्रकार हमारे शरीर में यह भी व्यवस्था है कि हम ध्यान के द्वारा अपने आदि भंडार तक यात्रा कर सकते हैं।
उचित ध्यान द्वारा मनुष्य सर्वोच्च धाम को जहां से वह उत्पन्न हुआ वापस जाने के योग्य हो सकता है। इंडियन नस्ल के लड़के ने अर्ज की कि उसकी माता और नानी व्यास की सतसंगिन है और पूछा कि दयालबाग की शिक्षाओं में और व्यास की शिक्षाओं में अंतर क्या है?
ग्रैशस हुजूर ने फरमाया कि ब्यास सत्संग- कुछ भिन्न हैं ।वह अभिन्न नहीं है । आप इसे मुख्यधारा की शाखा कह सकते हैं। हमारे प्रथम गुरु महाराज के जमाने में ही उन्होंने इसे शाखा के रूप में जारी कर दिया था और अब विकास करके वर्तमान रुप में हो गया है। आप कह सकते हैं कि भौतिक रूप से एक मुख्य धारा है और दूसरी शाखा है।।
थोड़े थोड़े समय के अंतर से इंडियन लड़का उपयुक्त बातों को स्पेनिश में दूसरों को समझाता रहा। स्पेनिश लडका जानना चाहता था कि यह कैसे मालूम किया जाए कि वह जिज्ञासु है।।
ग्रेशस हुजूर ने फरमाया कि आप यदि मूल प्रश्नों पर विचार करें तो आप अपने आप जान जाएंगे कि आप क्या है ? यदि ऐसे प्रसन्न जैसे आप संसार में क्यों आए हो, आप इस कष्ट व क्लेश के संसार में क्यों रहे हो, आप यहां क्यों भेजे गये, सुख के स्थान में आप वापस कैसे जा सकते हैं आदि-आदि आपके मन में प्रश्न उत्पन्न होते हैं तब आप सच्चे जिज्ञासु है।
उपर्युक्त बातों के बाद स्पेनी नस्ल के लडके ने फिर पूछा क्या एक जिज्ञासु ये सब समस्याएं स्वयं हल कर सकता है या उसको सहायता लेनी पड़ेगी और पथ पर्दशक के आश्रित होना पड़ेगा? ग्रैशस हुजूर ने फरमाया यदि आप उस बात को जिसे आप नहीं जानते जानना चाहते हैं तो आपको पथ पर्दशक की आवश्यकता होगी। ठीक जैसे बच्चा स्कूल जाता है और एक शिक्षक से सहायता लेता है (इससे पहले घर पर भी माता पिता से पथ पर्दशन प्राप्त करता है) इसी प्रकार यदि आप भी एक सच्चे जिज्ञासु है आपको भी किसी दूसरे से, जो इन सब बातों को ज्यादा और विस्तार से जानता है सहायता लेनी होगी। इस प्रकार आप को एक पथ पर्दशक की आवश्यकता है। (प्रेम प्रचारक 25 अगस्त 1 सितंबर 1980)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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