परम गुरु हुज़ूर डॉ. लाल साहब के पवित्र भंडारे के सुअवसर पर ग्रेशस हुज़ूर डा. प्रेम सरन सतसंगी साहब का महत्वपूर्ण और सारगर्भित बचन
10 जुलाई, 2005
अगर गुरु स्वरूप उपस्थित है तो आपको क्या करना चाहिए ?
आप प्रथम आँखें खोल करके ध्यान गुरु स्वरूप पर केन्द्रित करके सुमिरन कीजिए। अगर अनायास ही आप की आँखें बन्द हो जाती हैं और सुमिरन ध्यान बनने लगता है तो आँखें बन्द करके करिये। अंतर में गुरु स्वरूप प्रकट हो गया आप उसके दर्शन कीजिए। सुमिरन करिये फिर जो कुछ भी शब्द सुन सकते हैं सुनिये।
उसके बाद सतसंग होता है। मंगलाचरण पढ़ा जाता है। मंगलाचरण सबके साथ मिलकर पढ़िये और अंतर में भाव, जैसी व्याख्या परम गुरु हुज़ूर डॉ. लाल साहब ने दी, उसके अनुसार रखिये।
पहले भाग में सुमिरन करिये। दूसरे भाग में ध्यान करिये कि अंतर में गुरु स्वरूप प्रकट हो। देदीप्यमान लौ के समान गुरु स्वरूप विभिन्न नाड़ी केन्द्रों पर आप का मार्ग दर्शन करे। तो यह आवश्यक है कि जब आप सतसंग में बैठे हैं तो मंगलाचरण हो या अन्य शब्द का पाठ हो या बचन हो या बिनती हो,सबको पूरी तरह से आत्मसात् करके, समझ करके सुनें, यह नहीं कि आप का मन तो कहीं और चला गया, आप शारीरिक रूप से यहाँ ज़रूर विद्यमान हैं।
तो पूरा लाभ आपको तभी प्राप्त होता है जब आप इन शब्दों के अर्थ के अनुसार आचरण करते हैं,सतसंग में बैठे हुए। जैसा परम गुरु हुज़ूर डॉ लाल साहब ने कहा अगर ऐसा किया तो सुमिरन, ध्यान और भजन तीनों को आपने मंगलाचरण के दौरान ही कर लिया और फिर जहाँ तक भी, जिस स्थान तक भी आपकी रसाई है, वहाँ केन्द्रित हो करके, किसी धाम तक नहीं हैं तो सुरत के स्थान पर केन्द्रित हो करके, अगर उपदेश प्राप्त नहीं है तो बाहरी रूप से गुरु स्वरूप पर ध्यान केन्द्रित करके सतसंग कीजिए, शब्दों के अर्थ के अनुसार आचरण कीजिए, जिससे आपको पूरा लाभ प्राप्त होगा।
यह बताया गया है कि सतसंगियों के लिए जो आचरण वांछ्य है- सतसंग, सेवा और अभ्यास का है, तो सतसंग और अभ्यास की बात हो गई। सेवा का भी जैसा मैंने पहले निवेदन किया, अवसर प्राप्त है।
ब्रांच में भी सेवा की जाती है। जब आप हेडक्वार्टर में आते हैं तो यहाँ भी सेवा करते हैं। यह अक्सर पूछा जाता है कि आज कल ई-सतसंग शुरू हो गया तो क्या उससे प्रत्यक्ष सतसंग का ही पूरा लाभ प्राप्त हो जाता है?ऐसा है कि ई-सतसंग में ध्यान केन्द्रित करने के लिए तो आपको गुरु स्वरूप की छबि दीख जाती है, तो जैसा मैंने आरंभ में शिशुओं के विषय में निवेदन किया, सतसंग में, प्रत्यक्ष सतसंग में, जो गुरु स्वरूप के प्रभामण्डल से किरणें फैलती हैं वे किरणें ई-सतसंग में नहीं प्राप्त होतीं।
तो इसलिए प्रत्यक्ष सतसंग की महिमा तो कुछ और ही है। यह तो एक आध्यात्मिक क्षेत्र है जैसे चुम्बकीय क्षेत्र होता है। एक बहुत शक्तिशाली चुम्बक के पास आने पर लोहे के कण भी चुम्बक के गुण ग्रहण कर लेते हैं। वैसे ही सतसंग में आने पर विशेषकर राधास्वामी सतसंग, दयालबाग़ हेडक्वार्टर में सतसंग करने से आपको जिस आध्यात्मिक क्षेत्र शक्ति का प्रभाव प्राप्त होता है वह ई-सतसंग में नहीं प्राप्त हो सकता।
राधास्वामी।
(प्रेम प्रचारक 15 अगस्त, 2005)
राधास्वामी
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