राधास्वामी!! 21-09-2020
आज सुबह के सतसंग में पढे गये पाठ-
(1) गुरु गुरु मैं हिरदे धरती। गुरु आरत की सामाँ करती।। जो अनुरागी बीरही भाई। भक्ति गुरु की उन प्रति गाई।।-(मन चूरे बिन सुरत न निर्मल। कैसे चढे और लगे शब्द चल।।) (सारबचन-शब्द-पहला, पृ.सं.174-175)
(2) राधास्वामी चरन में मन अटका।।टेक।। गुरु के बचन रसीले लागे। जग से अब छिन छिन झटका।।-(चरन सरन राधास्वामी धारी। काल करम को दिया झटका।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-41,पृ.सं.311)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[ **राधास्वामी!! 21-09-2020-
आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ
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(1) अर्श पर पहुँच कर मैं देखा नूर। काल को मार कर मैं फूँका सूर।।-(आगे चल सुर्त सुन्न में पहु्ची। धुन किंगरी व साँरगी की सुनी।। ) (प्रेमबानी-3-गजल-2, पृ.सं.375)
(2) सतगुरु परम पियारे की आरती सजावेंः आज मिल के दास सारे।।टेक।। -( सतगुरु दयाल दानी निज मेहर चित जगानी। इक इक को अँग लगाया कल मल से कीन न्यारे।।) ( प्रेमबिलास-शब्द-57,पृ.सं.75)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन
-कल से आगे -(116)
धर्म की अपेक्षा तथा गणना उत्पन्न कराने वाले अनेक कारणों का उल्लेख ऊपर हो चुका है। अनेक अतिरिक्त एक और कारण उल्लेखनीय है। और वह है रूस देश का धर्म के विरुद्ध युद्ध। हमारे देश के निवासियों में यह एक साधारण दोष है कि पश्चिम की प्रत्येक बात को बिना तर्क वितर्क किये ही उचित तथा उपयोगी मानकर अंगीकार कर लेते हैं।
इन दिनों प्रायः हमारे नवयुवक रूस के धर्म- विप्लव प्रसारण (प्रोपेगेंडा ) में प्रयुक्त शब्द तथा वाक्य दोहराते दृष्टिगत होते हैं । इतिहास बतलाता है कि रुसी जाति दीर्घकाल से देश के शासको के कठोर नियंत्रण से असंतुष्ट तथा रूष्ट थी ।
उनके संकेत से धर्म की ओट में प्रजा पर दिन रात न वर्णन करने योग्य निघृर्ण बलात्कार होते थे। गत महासमर में जब रूस की पराजय हुई तो जार की शक्ति को भारी धक्का लगा और देश भर में राज-विद्रोह फैल गया।
कुछ दिनों के अनन्तर जार और उसके घराने के सब लोग चुन चुन कर वध किए गये और श्रमजीवियों तथा कृषिकारों का शासन स्थापित हुआ। सो, अब ये लोग वंश- परंपरागत अत्याचारों का स्मरण करके धर्म के विरुद्ध युद्ध कर रहे हैं।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग पहला-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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