राधास्वामी!! 27-09-2020- / शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) संत बचन हिरदे में धरना। उनसे मुख मोडन नहिं करना।। गिर समान उन छाया जग में। सुरत बिहंगम रहत अधर में।।-(रुप रंग उसका मत देख। सरधा भाव निशाना पेख।। ) (प्रेमबानी-3-अशआर सतगुरु महिमा-पृ.सं.382)
(2) है कोई ऐसी सुरत शिरोमन। अटल सुहाग जिन पाना है।।टेक।। धोय धाय कर चूनर अपनी। सतगुरु रंग चढाना है।।-(परस चरन प्रीतम राधास्वामी। बहुरि जन्म नहिं पाना है।।) (प्रेमबिलास-शब्द-62,पृ.सं.80-81)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
राधास्वामी!!
शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन
-कल से आगे-( 121) का शेष भाग:
- तुम वर्तमान विचारों में विश्वास करके अपने असली जोहर को भूल जाते हो और उस जौहर के जागृत करने के अवसर का तिरस्कार करते हो। तुम अखिल-विश्वव्यापी प्रकाश के केंद्र अर्थात अपने पालनकर्ता से मुंह मोड़ कर अपने मन की उपासना अंगीकार करते हो और शुद्ध आध्यात्मिक जीवन से वंचित रह कर मन और इंद्रियों के किंकर बनते हो। तुम स्वार्थपरक तथा वासना-पूर्ती-परायण जनों की गढंतो और मिलावटों को धर्म समझकर धर्म से घृणा करने लगते हो।
हजरत मसीह ने किसी समय पिपासाकुल तथा शीतलता के लिए व्याकुल संसार को हिम-शीला अर्पित की थी किंतु समय पाकर वह गल गई, उसकी शीतलता जाती रही, वह उष्ण जल में परिवर्तित हो गई और वायुमंडल की बहुत सी धूली उसमें ब्याप्त हो गई।
उसका वास्तविक स्वरूप, उसकी प्यास बुझाने की शक्ति और उसकी निर्मलता जाती रही। स्वार्थी लोग उसमें सांसारिक विषय-भोग की चीनी मिलाकर तुमको धोखा देते रहे, किंतु कलुषित जल निर्मल हिम का काम कैसे दे सकता है ? तुम जरा भारतवर्ष की ओर ध्यान दो और पूछो कि धर्म की यथार्थता क्या है।
और उत्तर पाकर कुछ काल विचार करो और फिर निश्चय करो कि किस मार्ग पर चलने से तुम्हारी मनःकामना पूर्ण हो सकती है। यह मार्ग, जो तुमने इस समय ग्रहण किया है, निःसन्देह तुम्हें अनभीष्ट पतन के स्थान की ओर ले जायगा, जैसा कि कहा हैः- तरसम् न रसी ब काबा ऐ अराबी। ईं रह कि तू मीरवी व तुर्किस्तान अस्त।।
भावार्थ- हे मूर्ख, जिस रास्ते पर तू चल रहा है वह तो तुर्किस्तान को जाता है । उस पर चल कर तू मक्का नहीं पहुँच सकता ।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश -भाग पहला -
परम गुरु साहबजी महाराज!
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