**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1-
कल से आगे-(3)
पहले इस मन में इच्छा उठती है, यानी एक किस्म की हिलोर पैदा होती है और जिस किस्म की वह इच्छा है यानी जिस इंद्री के भोग की चाह है ,उसी इंद्री की तरफ पहले मन में हिलोर उठ कर और फिर धार पैदा होकर जारी होती है।
और जो भोग का पदार्थ सन्मुख है, तो उसका वह इंद्री भोग करती है और जो भोग का पदार्थ मौजूद नहीं है तो उसकी प्राप्ति के लिये जो जतन जरूरी है उस जतन में कारज करने वाली इंद्री के द्वारा लग जाती है।।
(4) सुरत की शक्ति की धार सिर्फ मन तक आती है और उस चैतन्य को , जो मन आकाश में है , मदद और ताकत देती है। फिर वहाँ से मन -आकाश के चैतन्य की धार पैदा होकर इंद्री द्वार पर आती है और इंद्री द्वार से , जो इस आकाश के चैतन्य की धार है उससे मिलकर भोगों और पदार्थों में बाहर जाती है, और इसी तरह आकाश से मुआफिक इच्छा या चाह के धार पैदा होकर पिंड में इंद्री द्वारा और नीचे की तरफ जाती है और अंग अंग को ताकत देती है।
क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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