"उठ सतसंगी, टिकट खरीदो,
नई शहर को जाना है!!
मन की गाड़ी, तन की ईंजन,
साँसों घड़ी चलाना है!!
पाप -पुण्य की गठरी लादकर,
बिल्टी साथ कराना है!!
गुरु दयाल जब घन्टी देँगे,
गाड़ी तुरत रवाना है!!/ उठ सतसंगी, टिकट खरीदो,/नई शहर को जाना है!
~प्रेम प्रचारक (1990"s)
भावार्थ~"हुजूर फ़रमाते हैं कि सत्संगियों जाग्रत हो और नाम दान की टिकट मतलब उपदेश की कार्यवाही करवाईए क्योंकि आपको नई शहर को जाना है यानि दुनियवी व पुरानी शहर को छोड़कर नई परमार्थी शहर को जाना है। मन रूपी ईंजन जो इधर उधर भटकता रहता है और तन जो सारे काम कराता है, उसे जब तक साँसे है, तब तक चलाना है। पाप और पुण्य की गठरी साथ बिल्टी (हिसाब-किताब) कराकर उसे ही साथ ले जाना है क्योंकि और कुछ इस दुनिया के साथ ले जाया नही जा सकता और गुरु दयाल का जब इशारा होगा, गाड़ी मतलब अपनी सूरत रूपी वाहन को ये देह छोड़कर तुरन्त चरणों की तरफ रवानगी करनी होगी।"
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