🙏 *क्या खोज रहे हो तुम....... ?* 🙏
खोज तो जरूर रहे हो। क्या खोज रहे हो ? अगर तुम्हारी सारी खोज का सार—निचोड़ निकाला जाए तो तुम आनंद खोज रहे हो।
कोई धन खोज रहा होगा ; लेकिन उससे भी आनंद खोज रहा है। कोई प्रेम खोज रहा होगा ; लेकिन उससे भी आनंद खोज रहा है। कोई यश, कीर्ति खोज रहा होगा ; लेकिन उससे आनंद ही खोज रहा है। तुम्हारी खोज के नाम कितने ही अलग—अलग हों, भीतर छिपा हुआ एक ही सूत्र है—वह आनंद है।
शराब घर जाता हुआ आदमी भी और मंदिर जाता हुआ आदमी भी, दोनों की खोज एक है—दोनों आनंद खोज रहे है। पुण्य करता हुआ आदमी, और पाप करता हुआ आदमी दोनों की खोज एक है—दोनों आनंद खोज रहे है। बुरा और भला, दोनों एक ही चीज की खोज में लगे हैं।
लेकिन क्या तुमने कभी पूछा कि तुमने आनंद को खोया कहां है....? जहां खोया है, वहीं खोजा जाय तो शायद मिल सकता है। लेकिन तुम वहाँ खोज रहे हो, जहां तुमने खोया ही नहीं है। बाहर तो तुमने निश्रित ही नहीं खोया है। क्यों कि अगर बाहर खोया होता तो ये बाहर की चीजों से मिल जाता ।
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