Tuesday, September 29, 2020

रोजाना वाकयात

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकिआत-

 23 जनवरी 1933- सोमवार

-   डेरी जाकर मालूम हुआ कि नई गाय अब बिल्कुल तंदुरुस्त है। मगर दूध अभी 30 सेर दैनिक ही देती है हमारे हिसाब से डेढ़ मन दैनिक देना चाहिये।।   

                                    

  मिस्टर भट्टाचार्य प्रिंसिपल ट्रेनिंग कॉलेज मिलने आये। 26 जनवरी को आपके कॉलेज में एंबुलेंस कोर का जलसा है । हमारे गर्ल्स स्कूल से भी 8 लड़कियां फर्स्ट एड के मुकाबले के लिए जा रही हैं । अगर दिल की हालत दुरुस्त रही तो जलसे में शरीक होने का इरादा है।।     

                                             

  रात के सत्संग में दयालबाग वालों की मुश्किलों के हल के मुतअल्लिक़ अनेक प्रस्तावों पर गौर किया गया। इंसान को चाहिए कि न तो मुश्किलों में घबराये और न ही लापरवाह हो। अकलमंदी इसी में है कि उनका साहस पूर्वक मुकाबला किया जावे। हमारी अधिकतर मुश्किलात हमारी नादानी से पैदा होती है। 

हमें जिंदगी बसर करने का ढंग नहीं आता । अंग्रेजों के घर जब बच्चा पैदा होता है तो शुरू ही से उसको अलग रहने अपनी फिक्र करने की आदत डलवाते है। विपरीत इसके हमारे यहाँ मातायें बच्चों को एकदम छाती से लगाये फिरती हैं जिससे वह परले दर्जे के बुजदिल बन जाते हैं। 

खाने पीने के मुतअल्लिक़ भी हम सख्त गलतियाँ  करते हैं। रुपया पैसा मिठाइयों और फुजूल  चटपटी चीजों पर नष्ट करते हैं और खाने में घी या मक्खन की किफायत करते है। घी व मक्खन के अंदर खास ताकत है घी का चिराग रोशन करके देखो कैसे जलता है। और उसके मुकाबले अनाज और मिठाई को जलाकर देखो। 

 घी के चिराग की लौ तेज रोशन, सीधी और अटूट होगी। घी हमारे जिस्म के अंदर दाखिल होकर जिस्म को ताकत से भर देता है। अलावा इसके हर मशीन का पुर्जा चिकना रखने ही से काम देता है फिर जिस्म के अवयव खुश्क रह कर कैसे काम कर सकते हैं?  जिस्म तो एक मशीन ही है । 

जो सत्संगी सख्त मेहनत मजदूरी करते हैं या जिन्हें दिमाग से ज्यादा काम लेना पड़ता है उन्हे खालिस घी या मक्खन जरूर इस्तेमाल करना चाहिये। जिनके जिम्मे सख्त मेहनत के काम नहीं है और परमार्थ का तेज शौक रखते हैं वह चिकनाई युक्त वस्तुओं के इस्तेमाल से परहेज कर सकते हैं । वरना तंदरुस्ती बिगड जाने पर इंसान न दुनिया का रहता है न दीन का।।                  

 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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